सम्पादकीय

ता​लिबान का दानवी चेहरा

Triveni
2 Aug 2021 2:04 AM GMT
ता​लिबान का दानवी चेहरा
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यह भ्रम दूर हो चुका है कि अफगानिस्तान में ​तालिबान अब बदल चुका है।

आदित्य चोपड़ा| यह भ्रम दूर हो चुका है कि अफगानिस्तान में ​तालिबान अब बदल चुका है। गुड तालिबान और बैड तालिबान की अवधारणा अब पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। पहले कहा जा रहा था कि आधुनिक तकनीक की कुशलता से इस्तेमाल करने वाली नई पीढ़ी के उदय के कारण तालिबान बदल गया है लेकिन तालिबान का दानवी चेहरा सामने आ चुका है। न तो तालिबान की क्रूरता कम हुई और न ही उसके आतंक फैलाने का तरीका बदला। तालिबान का लोकतंत्र पर भरोसा पहले भी नहीं था, न अब है।

पुल्तिजर पुरस्कार प्राप्त भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की अफगानिस्तान में मौत किसी गोलाबारी में फंस कर नहीं हुई थी, ​बल्कि उसे जानबूझ कर मौत के घाट उतारा गया था। एक अमेरिकी मैगजीन वाशिंगटन एम्जामितर ने रहस्योद्घाटन किया है कि दानिश सिद्दीकी को कंधार शहर में स्थित बोल्डक की मस्जिद से पकड़ा गया था और भारतीय के रूप में उनकी पहचान होने के बाद भी तालिबानियों ने क्रूरता से हत्या कर दी। दानिश की तस्वीरों आैर शव के वीडियो की समीक्षा करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि सिद्दकी के सिर पर हमला किया गया और ​फिर उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया गया। दानिश सिद्दीकी के शव को क्षत-विक्ष​प्त करना दिखाता है कि तालिबान युद्ध के नियमों और वैश्विक साथियों का सम्मान नहीं करता।
आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता, वे केवल आतंकवादी होते हैं। तालिबानियों की क्रूरता से अफगानिस्तान की महिलाएं और बच्चे सहमे हुए हैं। देश के उत्तरी और उत्तरी-पूर्वी इलाकों में ता​लिबान का कहर टूटने लगा है। तालिबान ने हर परिवार को निर्देश दिया है कि वे अपने घर की एक युवती का निकाह तालिबान लड़ाकू से कर दें। महिलाओं को हुकम दिया गया है कि वे बिना किसी पुरुष को साथ लिए घर से बाहर न निकलें। पुरुष दाढ़ी बढ़ाएं और मस्जिदों में जाकर ही नमाज पढ़ें। तालिबानियों ने अपने कब्जे वाले इलाकों में सार्वजनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को नष्ट कर दिया है।
काबुल में ​िबजली सप्लाई लाइनों को ध्वस्त कर अंधकार फैला दिया गया है। देश की सवा करोड़ ​जनता अब बिना सार्वजनिक सेवाओं के जी रही है। अफगानिस्तान के कुल 364 जिलों में से कम से कम एक तिहाई जिलों पर तालिबान कब्जा जमा चुका है। जब ऐसी स्थिति है तो ​िफर तालिबान से बातचीत का कोई औचित्य अब नहीं बचा। अफगानिस्तान में जारी भारी हिंसा के बीच अफगान तालिबान का प्रतिनिधिमंडल चीन पहुंचा। यह दौरा तब हुआ जब एक दिन पहले ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी चीन के दौरे से लौटे हैं। अफगान तालिबान प्रतिनिधिमंडल के नेता मुल्लाह अब्दुल गनी बरादर ने चीनी विदेश मंत्री बांग यी से बातचीत की। चीन ने तालिबान के सामने अपनी शर्त रखी है कि तालिबान और आतंकवादी संगठनों के बीच साफ लकीर होनी चाहिए, उसे चीन विरोधी आतंकवादी संगठन ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट से संबंध तोड़ने होंगे। चीन में तालिबान प्रतिनिधिमंडल का पहुंचना भारत के लिए एक चुनौती है। भारत का प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान पहले ही इस खेल में अफगानिस्तान, चीन और पाकिस्तान का त्रिकोण भारत के लिए बड़ा खतरा है। तालिबान प्रति​ि​नधिमंडल के रूस, ईरान के बाद चीन पहुंचने का मकसद अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी पहचान को मजबूत बनाना है।
चीन पूरी तरह तालिबान के वादों पर भरोसा नहीं करता। तालिबान कितनी भी मीठी​ जुबां से ये बात करे लेकिन इससे चीन की ​िंचंताएं खत्म नहीं होतीं। चीन की चिंता यह है कि तालिबान के लड़ाके एक संकरे वारवन गलियारे, पीओके या मध्य एशियाई देशों से होते हुए शिनजियांग प्रांत में प्रवेश कर सकते हैं। ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट संगठन उईधर मुसलमानों की बहुसंख्यक आबादी वाले प्रांत में एक विद्रोह खड़ा करने की कोशिश कर रहा है।
तालिबान केवल इंतजार में है, जब अफगानिस्तान सरकार ​गिर जाए और पूरे देश पर उसका कब्जा हो जाए और वह फिर से कट्टर इस्लामी सिस्टम लागू कर सकेगा। इसलिए अफगानिस्तान सरकार से चल रही उसकी वार्ता में युद्धविराम या सत्ता साझा करने के ​मसलों पर समझौता करने में कोई रुचि नहीं है। जिस तरह से महिलाओं का उत्पीड़न किया जा रहा है, एक पंक्ति में लोगों को खड़ा कर नरसंहार किए जा रहे हैं, बच्चों को गोलियों का निशाना बनाया जा रहा है, क्या ऐसे तालिबान को सत्ता में भागीदारी दी जानी चाहिए? क्या आज की दुनिया में इतनी बर्बरता को सहन किया जाना चाहिए?
दुनिया वाले समझ लें कि उसका लक्षय अन्तहीन है और यह लक्ष्य कैसे पूरा होगा, इसकी कोई रूपरेखा निश्चित नहीं है। हमें सिर्फ आतंकवाद से ही मुक्ति नहीं पानी, इसे उस आतंकवाद से भी मुक्त होना है, जो मजहबी जुनून के नाम पर फैल चुका है। विनाशकारी ताकतें बार-बार चेतावनी दे रही हैं कि हमें बड़ी त्रासदी का सामना करना पड़ सकता है। इस्लामिक आतंकवाद एक अलग तरह का आतंकवाद है। प्रेम की किसी भाषा या वार्ता से इन दानवों का इलाज नहीं हो सकता। अगर वि​श्व नहीं जागा तो फिर वह 9/11 जैसे बड़े हमलों को झेलने के लिए तैयार रहे। जिहादी आतंकवाद कहीं भी कुछ भी कर सकता है।


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