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जमाखोरी पर प्रहार था नोटबंदी
करन भसीन।
नोटबंदी (Demonetisation) के इर्द-गिर्द चल रहे विश्लेषण मुझे काफी अचरज में डालते हैं. क्योंकि ज्यादातर विश्लेषण अकादमिक और विषयात्मक जानकारियों के बजाए अखबारों के लेखों पर आधारित होते हैं. हालांकि IMF की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने हार्वर्ड में अपने सहयोगियों के साथ एक स्टडी में ऐसी ही कोशिश की है. उनके शोध का एक महत्वपूर्ण पहलू ये था कि ये नोटबंदी से जुड़ी परेशानी थोड़े समय के लिए ही थी (जैसा कि अपेक्षित था). इसलिए, हैरानी इस बात पर होती है कि आखिर किस आधार पर ये कहा जा रहा था कि अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी का प्रभाव दो तिमाही से ज़्यादा समय तक रहा.
इस बात से कोई इनकार नहीं करेगा कि नोटबंदी की कुछ कीमत तो जरूर चुकानी पड़ी. लेकिन साथ ही कई ऐसे फायदे हुए जो दीर्घकालिक असर छोड़ेंगे. दुर्भाग्य से नोटबंदी के फायदों का पर्याप्त उल्लेख नहीं मिलता है, इसलिए इस आलेख में नोटबंदी से हुए फायदों को बताने की कोशिश की जाएगी.
नोटबंदी से देश कैशलेस की ओर बढ़ा
एक फायदा जो साफ तौर पर दिखाई दे रहा है वो ये है कि देश भर में भुगतान के कैशलेस मोड को व्यापक रूप से अपनाया गया. नकद प्रबंधन एक महंगा मामला तो है ही साथ ही भुगतान के डिजिटल तरीकों की तुलना में यह अक्षम भी है. इसलिए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि डिजिटल भुगतान आज पूरे देश में भुगतान का पसंदीदा तरीका बन गया है. इसमें छोटे विक्रेता, चाय की दुकानें और ग्रामीण क्षेत्र भी शामिल हैं. भुगतान के तरीके में इस अहम बदलाव का दूसरा असर वित्तीय समावेश के रूप में तब होगा जब और ज्यादा से ज्यादा लोग वित्तीय उत्पादों का उपयोग शुरू करेंगे.
बेहतर "टैक्स कंप्लायंस" के साथ "टैक्स रेवेन्यू" में भी बढ़ोतरी देखी गई
कई लोगों का कहना है कि कैश-जीडीपी या कैश टू ब्रॉड मनी सप्लाई का अनुपात वापस नोटबंदी से पहले के स्तर पर आ गया है. इसलिए नोटबंदी का प्रभाव लंबी अवधि में दिखाई नहीं दे रहा है. इस तरह की परिकल्पना के साथ दो मुद्दे जुड़े हैं. पहला ये कि इसमें महामारी वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़ों का आकलन किया जा रहा है जब जीडीपी में गिरावट दर्ज की गई और उसका प्रभाव अनुपात में भी नजर आया. दूसरा, और शायद, इससे भी महत्वपूर्ण तथ्य ये है कि जब हम नोटबंदी से पहले और उसके बाद नकद-जीडीपी अनुपात या इसकी वृद्धि दर में इजाफे को देखते हैं, तब भी हमें एक अंतर दिखाई देता है. महामारी की वजह से भी डिजिटल पेमेंट का प्रसार बढ़ा. इसलिए भारत में भुगतान तंत्र के भविष्य को देखने के लिए इंतजार करना सार्थक रहेगा.
एक दूसरा फायदा ये रहा कि बेहतर "टैक्स कंप्लायंस" के साथ "टैक्स रेवेन्यू" में भी बढ़ोतरी देखी गई. हम जानते हैं कि नोटबंदी के तुरंत बाद टैक्स कंप्लायंस (कर अनुपालन) में तेजी आई, लेकिन यह आगे जाकर कम हो गया. क्योंकि IL&FS के पतन के कारण 2018 में विकास की रफ्तार पर ब्रेक लग गई. हम जानते हैं कि इस दौरान आरबीआई की मौद्रिक नीति अत्यधिक सख्त थी, जिससे हमारी विकास संभावनाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा था. नोटबंदी के प्रभाव और मंदी को अलग-अलग करके ही हम ये समझ सकते हैं कि नोटबंदी ने व्यवस्था को साफ करने में किस हद तक भूमिका निभाई होगी.
बेहिसाब नकदी रखने वाले लोगों के खिलाफ प्रहार साबित हुआ
ये एक हकीकत है कि बैंकिंग प्रणाली में नकदी जमा करने की अनिवार्यता के कारण सरकार काफी हद तक "बेनामी" नकदी दूर करने में कामयाब रही. इसने कर अधिकारियों को कर चोरी के किसी भी प्रयास का मूल्यांकन और जांच करने के लिए पर्याप्त मात्रा में डाटा प्रदान किया. इसके अलावा कर अधिकारी इन आंकड़ों के आधार पर ये भी पता कर सकते हैं कि अतीत में किस हद तक लोगों ने कर नहीं दिए. हालांकि, इसमें लोगों के उत्पीड़न की संभावना हो सकती थी इसलिए इसे जानबूझकर एक नीति का रूप नहीं दिया गया.
लेकिन इस बात से अलग कि बेहिसाब नकदी की पिछली जमाख़ोरी से हमें कितना कर लाभ हो सकता था, हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि नोटबंदी ने सिस्टम को बड़ा झटका दिया और बड़ी मात्रा में बेहिसाब नकदी रखने वाले लोगों के खिलाफ ये कारगर साबित हुआ. क्योंकि नोटबंदी उनके लिए एक अप्रत्याशित सदमा था जो कई मायनों में व्यवस्था को साफ करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को ही रेखांकित करता है. भारतीय स्टेट बैंक के हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि हम तेजी से अनौपचारिक से औपचारिक अर्थव्यवस्था की ओर बढ़े हैं और ये निश्चित रूप से अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत है. क्योंकि इस माध्यम से अनौपचारिक कंपनियां अब सस्ती दरों पर औपचारिक वित्तीय सहायत प्राप्त कर सकती हैं और आने वाले वर्षों में अपने विकास में और निवेश कर सकती हैं. बेशक इससे पूरी अर्थव्यवस्था औऱ मजबूत होगी है.
नोटबंदी के फायदे दूरगामी साबित होंगे
जहां कई लोग नोटबंदी के नकारात्मक प्रभावों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं, इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि इसकी जो भी कीमत चुकानी पड़ी वो बिल्कुल अल्पकालिक थी, जबकि इससे होने वाले फायदे दूरगामी साबित होंगे. बेशक हम ये नहीं जानते कि क्या इन फायदों को हासिल करने के लिए नोटबंदी ही सबसे कारगर तरीका था, लेकिन किसी भी ढांचागत परिवर्तन की अनदेखी करते हुए केवल घाटे पर ध्यान केंद्रित करना नोटबंदी का एक अनुचित मूल्यांकन है.
मौजूदा नियम-कानून और Econometric Methodologies से नोटबंदी के प्रभावों का अनुमान लगाना एक मुश्किल काम होगा, लेकिन कोई भी पूरे विश्वास के साथ कह सकता है कि भविष्य में हमें इस कवायद से होने वाले फायदों की ज्यादा और बेहतर जानकारी होगी. तब तक अखबारों के संपादकीय में आ रही रटी-रटाई दलीलों को ठुकराया जा सकता है क्योंकि वे अर्थव्यवस्था पर एक जानकार टिप्पणी तो कतई नहीं हैं… वो सिर्फ एक कहानी कहने की कवायद मात्र ही है.
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