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Written by जनसत्ता; अगले महीने होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के संदर्भ में देश में सत्ता पक्ष और विपक्ष की ओर से उम्मीदवारों की घोषणा के साथ ही अब राजनीति के मोर्चे खुल गए हैं। विपक्षी दलों ने जहां पूर्व मंत्री यशवंत सिन्हा को अपना उम्मीदवार बनाया है, वहीं सत्ताधारी खेमे से भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी राजग ने झारखंड में राज्यपाल रह चुकीं द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का चेहरा घोषित किया है।
जाहिर है, अब इसके बाद दोनों पक्षों की कोशिश संख्या बल को अपने पक्ष में करने पर केंद्रित होगी। हालांकि फिलहाल राजग की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोटों का गणित साफ झुका लगता है, इसलिए अभी से ही माना जा रहा है कि अगर कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो वे राष्ट्रपति चुन ली जाएंगी। अगर ऐसा संभव हो जाता है तो देश को राष्ट्रपति के रूप में पहला आदिवासी चेहरा मिलेगा और इस बार के चुनाव की सबसे बड़ी अहमियत यही होगी। माना जा रहा है कि राजग ने इस मसले पर बहुत सोच-समझ कर अपना दांव चला है, क्योंकि उम्मीदवारों के चुनाव के क्रम में शायद यह पहलू विपक्ष के फैसले के सामने एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने खड़ा हो गया है।
दरअसल, देश की राजनीति में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत होने के संदर्भ में सबसे ज्यादा इस पक्ष पर विचार किया जाता रहा है कि सत्ता की मुख्यधारा में समाज के अलग-अलग तबकों को कितना और किस रूप में प्रतिनिधित्व मिल पाता है। खासतौर पर हाशिये के समुदायों को लेकर राजनीतिक तबका कितना संवेदनशील हो पाता है।
इस लिहाज से देखें तो राष्ट्रपति पद के लिए राजग की ओर से ओड़ीशा की जनजातीय पृष्ठभूमि से आने वाली द्रौपदी मुर्मू का चुनाव एक अहम घोषणा है, जिसके तहत यह बताने की कोशिश की गई है कि भाजपा और उसके सहयोगी दल आदिवासी समुदाय को भी वाजिब प्रतिनिधित्व दिलाने के प्रति गंभीर हैं। यों इससे पहले मौजूदा राष्ट्रपति के रूप में रामनाथ कोविंद को भी अनुसूचित जातियों के बीच से एक चेहरे को आगे लाने की कोशिश के तौर पर देखा गया था। अब द्रौपदी मुर्मू अगर राष्ट्रपति के रूप में चुन ली जाती हैं तब भाजपा यह दावा कर सकने की स्थिति में होगी कि देश के राजनीतिक ढांचे में सामाजिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने को लेकर वह बाकी दलों के मुकाबले ज्यादा गंभीर है।
गौरतलब है कि द्रौपदी मुर्मू को ओड़ीशा में जमीनी स्तर की एक मुखर राजनीतिक कार्यकर्ता के तौर पर देखा जाता रहा है। ओड़ीशा के रायरंगपुर में पार्षद के पद पर जीत के साथ उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया। उसके बाद सन 2002 में उन्होंने वहीं से विधानसभा चुनाव जीता और बीजू जनता दल व भाजपा की गठबंधन सरकार में मंत्री भी रहीं। उस दौरान अपने काम से द्रौपदी मुर्मू ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा था। आदिवासी समुदाय से आने वाली वे ऐसी पहली महिला हैं, जिन्हें देश के किसी राज्य में राज्यपाल नियुक्त किया गया।
झारखंड में उन्होंने अपना 2015 से 2021 का कार्यकाल बिना बाधा के पूरा किया। अब राष्ट्रपति के तौर पर अगर वे चुन ली जाती हैं तो इसके कई मायने होंगे। हालांकि कुछ राज्यों में विधानसभा के भावी चुनावों के मद्देनजर भी यह भाजपा के लिए अहम फैसला है और इसके जरिए आदिवासी समुदायों के बीच उसकी पहुंच का विस्तार होने की संभावना बन रही है। लेकिन देश की राजनीति में सामाजिक तबकों के प्रतिनिधित्व को लेकर जैसी बहसें चलती रही हैं, उसमें द्रौपदी मुर्मू के चुनाव का एक प्रतीकात्मक, लेकिन व्यापक महत्त्व होगा।