सम्पादकीय

विविधता का लोकतंत्र

Subhi
1 Oct 2022 5:34 AM GMT
विविधता का लोकतंत्र
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‘अभिव्यक्ति का दायरा’ (23 सितंबर, संपादकीय) पढ़ा। अल्पकालिक तौर पर इसका लाभ या नुकसान पार्टी विशेष को होता दिख रहा है। इसे यहीं तक सीमित रखने की जरूरत नहीं है, बल्कि इसे बहुलतावादी संस्कृति वाले देश पर पड़ने वाले दीर्घकालिक प्रभाव के संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए।

Written by जनसत्ता: 'अभिव्यक्ति का दायरा' (23 सितंबर, संपादकीय) पढ़ा। अल्पकालिक तौर पर इसका लाभ या नुकसान पार्टी विशेष को होता दिख रहा है। इसे यहीं तक सीमित रखने की जरूरत नहीं है, बल्कि इसे बहुलतावादी संस्कृति वाले देश पर पड़ने वाले दीर्घकालिक प्रभाव के संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए।

दरअसल, बहुलता वाली संस्कृति की पहचान का संबंध छोटे या बड़े देश से नहीं है। उत्तरी आयरलैंड, नीदरलैंड, युगोस्लाविया, श्रीलंका, बेल्जियम में भी विभिन्न प्रकार की सामाजिक, भाषाई, आर्थिक, धार्मिक, जातीय नस्लीय विभिन्नताएं मौजूद हैं। पर इन देशों की सरकारों ने सामाजिक विविधता को समाहित करने के अलग-अलग तौर-तरीके अपनाए। कुछ ने इस विविधता का राजनीतिक फायदे के लिए दोहन किया।

Written by जनसत्ता: दरअसल, सवाल यह है कि हम विविधता को लोकतंत्र के लिए अच्छा मानते हैं या नहीं? पाकिस्तान और बांग्लादेश भी हमारे पड़ोसी ही हैं। मगर दशा-दिशा दोनों सरकारों के अलग-अलग हैं। अभिव्यक्ति की आजादी का दूसरा स्वरूप भी वैश्विक स्तर पर समय-समय पर देखने को मिलते रहते हैं। जहां इसके मनमाने इस्तेमाल से इसके मूल मकसद ही भटक जाते हैं। कनाडा में हुए जनमत सर्वेक्षण से अभिव्यक्ति की आजादी का एक दूसरा स्वरूप सामने आया। वहां कभी ऐसे सर्वेक्षणों पर रोक लगा दी गई थी। वही समयानुसार अब इसकी अनुमति प्रदान की गई।

इसके गहरे निहितार्थ हैं। लिहाजा दुनिया भर की लोकतांत्रिक सरकारें अभिव्यक्ति की आजादी के दुरुपयोग से लोकतांत्रिक शासन के विद्रूप चेहरे सामने रख रहे हैं। मगर गलत को कभी नजीर न बनाया जाना ही बेहतर है। अभिव्यक्ति को उसके संदर्भों में देखा जाना चाहिए। लोकतांत्रिक अधिकारों को सुनिश्चित करने या इसकी राह आसान बनाने की बातों के लिए जगह होना चाहिए। इस तरह की अभिव्यक्ति की तुलना हिंसा-द्वेष फैलाने वाली अभिव्यक्तियों से नहीं की जा सकती। हिंसा या द्वेष फैलाने वालों पर रोक लगाया जाना चाहिए।

उत्तराखंड में एक युवती की हत्या अत्यंत दर्दनाक और हृदयविदारक घटना है और स्वाभाविक रूप से पूरा देश एक मासूम लड़की की असमय मृत्यु से हतप्रभ है। अपनी नौकरी की पहली तनख्वाह भी उसे नहीं मिली थी, लेकिन खबरों के मुताबिक रिसोर्ट में किसी अति विशिष्ट अतिथि की 'खास सेवा' के लिए उसे दस हजार रुपए की पेशकश की जा रही थी। असलियत और विस्तृत जानकारी तो जांच-पड़ताल के बाद ही सामने आएगी, पर यह जघन्य अपराध कोई साधारण अपराध दिखाई नहीं देता।

इस प्रकरण की अत्यंत सूक्ष्म, त्वरित और गंभीर जांच होनी चाहिए। पूरी सच्चाई लोगों के सामने आनी चाहिए और अपराधियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। एक गरीब, परिश्रमी लड़की को उसका परिवार कभी भी नहीं भुला सकता। यह क्षति भी कभी पूरी नहीं हो सकेगी, पर दोषियों को त्वरित रूप से दी गई सख्त सजा अवश्य उनका दुख कुछ कम कर सकता है। इस घटना की रिपोर्ट लिखाने के लिए पीड़ित परिवार को जिस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा, वह हमारे देश में जटिल प्रशासनिक तंत्र का नमूना है। शासन-प्रशासन को इस परेशानी का संज्ञान लेते हुए तुरंत इसका पक्का समाधान निकालना चाहिए।


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