सम्पादकीय

लोकतंत्र, न्याय और सवाल

Gulabi Jagat
9 Aug 2022 4:19 AM GMT
लोकतंत्र, न्याय और सवाल
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By NI Editorial
लोकतंत्र की विशेषता ही यही होती है कि असंतुष्ट समूहों में लोकतांत्रिक एवं न्यायिक प्रक्रिया से अपनी शिकायतें हल होने का विश्वास बना रहता है। इस विश्वास के हिलने का परिणाम हमेशा अप्रिय अवांछित होता है।
पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि देश में लोकतंत्र अब सिर्फ यादों में है। अपने इस कथन के लिए उन्होंने जिन बातों को आधार बनाया, उनमें संसद में बहस की गुंजाइश खत्म होना, लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुरक्षित करने वाली तमाम संस्थाओं पर सरकार का कथित नियंत्रण, और मेनस्ट्रीम मीडिया का एकतरफ रुख है। उसके एक दिन बाद अब कांग्रेस छोड़ चुके राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि अब न्यायपालिका से न्याय पाने की कोई उम्मीद नहीं बची है। सर्वोच्च न्यायपालिका की अंदरुनी प्रक्रिया का विस्तार से उल्लेख करते हुए एक भाषण में उन्होंने अपनी ये हताशा जताई। इस बीच सिविल सोसायटी में यह राय गहराती चली गई है कि वर्तमान सरकार जन आंदोलनों की बात नहीं सुनती है। अभी मणिपुर में स्थानीय स्वायत्तता को लेकर जन आंदोलन चल रहा है। खबर है कि आंदोलनकारियों से कोई वार्ता प्रक्रिया शुरू करने के बजाय आंदोलन को दबाने के अपने चिर-परिचित तरीके अपना लिए हैँ। नागरिकता कानून विरोधी आंदोलन से लेकर किसान और अग्निपथ योजना के खिलाफ भड़की हिंसा के संदर्भ में भी सत्ता का ऐसा ही रुख देखने को मिला है।
तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की किसान आंदोलन की मांग सरकार ने जरूर मानी, लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी करने के लिए कानून बनाने और बिजली विधेयक को रद्द करने की उनकी मांग ठुकरा दी गई है। इससे किसान एक बार सड़कों पर उतरने का प्रयास कर रहे हैँ। कई हलकों से यह शिकायत भी अक्सर जताई जाती है कि देश में कानून लागू करने वाली मशीनरी एकतरफा ढंग से काम कर रही है। विपक्षी समूहों और सत्ताधारी दल एवं उसके सहमना संगठनों के प्रति उनके व्यवहार में स्पष्ट अंतर दिखता है। ये शिकायतें अब इस हद तक फैल गई हैं कि मुख्यधारा के संसदीय राजनीतिक दलों से जुड़े नेता देश में लोकतंत्र के खात्मे की बात कहने लगे हैँ। स्पष्टतः यह खतरनाक स्थिति है। लोकतंत्र की विशेषता ही यही होती है कि असंतुष्ट समूहों में लोकतांत्रिक एवं न्यायिक प्रक्रिया से अपनी शिकायतें हल होने का विश्वास बना रहता है। इससे समाज में शांति और प्रगति की स्थिति कायम रहती है। इस विश्वास के हिलने का परिणाम हमेशा अप्रिय अवांछित होता है।
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