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- राजनीति में लोकतंत्र
कांग्रेस में एक बार फिर जान लौटने लगी है। पिछले आमचुनाव के बाद जब अचानक राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था, तबसे पार्टी अपना अध्यक्ष नहीं चुन पाई। सोनिया गांधी कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में काम करती आ रही हैं। इसके चलते कांग्रेस के कई नेता लंबे समय से असंतुष्ट चल रहे थे। तेईस नेताओं ने अपना एक समूह ही बना लिया। कई नेता समय-समय पर पार्टी नेतृत्व पर सवाल उठाते रहे। उनकी मांग पर ही कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई। बैठक में सभी वरिष्ठ नेता शामिल हुए। असंतुष्ट नेताओं ने भी शिरकत की। उसमें पहले तो सोनिया गांधी ने असंतुष्ट नेताओं को आड़े हाथों लेते हुए अनुशासन में रहने का पाठ पढ़ाया, फिर स्पष्ट कर दिया कि बेशक वे कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में काम करती हैं, पर वे पूर्णकालिक अध्यक्ष की तरह काम करती हैं। फिर तय हुआ कि एक साल तक पार्टी अध्यक्ष को लेकर विचार-विमर्श चलेगा और फिर अगले साल अक्तूबर में अध्यक्ष का चुनाव होगा। इसे एक अच्छी लोकतांत्रिक पहल कहा जा सकता है। इस पर सारे वरिष्ठ नेता सहमत हुए और उन्होंने विश्वास दिलाया कि वे अध्यक्ष के फैसलों का पालन करेंगे। राजनीतिक और अंदरूनी संकटों के दौर से गुजर रही कांग्रेस में फिर से एकजुट होने का बल जरूर केंद्र सरकार को लेकर लोगों के असंतोष से मिला होगा।