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- कश्मीर में आतंकियों के...
कमल किशोर सक्सेना. अपने देश का लोकतंत्र दुनिया में सबसे नाजुक जान पड़ता है। इसीलिए जरा सी छींक आते ही खतरे में आ जाता है। कश्मीर में जैसे ही कोई आतंकी हूरों के पास पहुंचता है, लोकतंत्र खतरे में आ जाता है। सड़क पर धरना देने से रोका जाए तो लोकतंत्र खतरे में। अतिक्रमण या बिजली चोरी के खिलाफ अभियान चले तो सबसे पहले लोकतंत्र पर ही 1100 वोल्ट का खतरा मंडराता है। अब किसान आंदोलन को ही लीजिए। दस महीने बीत गए हैं, मगर आंदोलन जिंदा है। कुछ कहा जाए तो लोकतंत्र खतरे में। अपने यहां राजनीति में नैतिकता की चाहे जितनी कमी हो, किंतु लोकतंत्र की नहीं। वह इफरात में है। गनीमत है कि अभी उसकी जमाखोरी या कालाबाजारी शुरू नहीं हुई है। आक्सीजन भी इफरात में है, लेकिन कोरोना के दूसरे चरण में उसकी कालाबाजारी हो गई। पानी की भी कमी नहीं है, किंतु वह भी बिकता है। शुक्र है कि अभी लोकतंत्र के पाउच या बोतल में बिकने की नौबत नहीं आई है। हमारे लोकतंत्र के साथ बस यही दिक्कत है कि वह बार-बार खतरे में आ जाता है।