सम्पादकीय

दक्षिण भारत में जल प्रलय

Subhi
30 Nov 2021 2:05 AM GMT
दक्षिण भारत में जल प्रलय
x
दक्षिण भारत में जिस तरह भारी वर्षा कहर ढा रही है। इससे बहुत सारे सवाल उठ खड़े हुए हैं। कर्नाटक के बेंगलुरु और चेन्नई के इलाकों में नावें चलाई जा रही हैं ताकि लोगों को राहत मिल सके।
आदित्य नारायण चोपड़ा: दक्षिण भारत में जिस तरह भारी वर्षा कहर ढा रही है। इससे बहुत सारे सवाल उठ खड़े हुए हैं। कर्नाटक के बेंगलुरु और चेन्नई के इलाकों में नावें चलाई जा रही हैं ताकि लोगों को राहत मिल सके। कई दिनों से जनजी​वन अस्त-व्यस्त पड़ा है। चेन्नई और उसके आसपास के क्षेत्र में जलभराव हो चुका है। अब तक दक्षिणी राज्यों केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में मौतों का आंकड़ा 200 के करीब पहुंच गया है। मौसम विज्ञान विभाग ने अलर्ट जारी करते हुए कहा कि दक्षिण भारत में इन राज्यों में दो दिसम्बर तक मूसलाधार बारिश होगी। इससे निश्चित रूप से आपदा के भयंकर रूप धारण कर लेने की आशंका बलवती हुई है। मौसम विज्ञान का कहना है कि समुद्र तल से 1.5 किलोमीटर तक फैले कोमेरिन क्षेत्र में एक चक्रवात परिसंचरन के कारण जल प्रलय हुआ है। 29 नवम्बर को बंगाल की दक्षिण खाड़ी में एक और कम दबाव का क्षेत्र बनने की संभावना है। एक से 25 नवम्बर के बीच दक्षिण प्रायद्वीपीय भारत में 143.4 प्रतिशत से अधिक वर्षा दर्ज की गई। जिसमें कर्नाटक और केरल में सामान्य से 110 फीसदी से अधिक वर्षा हुई जबकि उत्तर पूर्व में मानसून के दौरान 70 फीसदी वर्षा रिकार्ड की गई। इतनी बारिश के बाद जलाशयों के गेट खोलने पड़े हैं। बेंगलुरु में बाढ़ की स्थिति बहुत ही अफसोसजनक है। आसपास की झीलों में पानी लबालब बहने लगा है। पलार नदी में पिछले दस वर्षों से कभी इतना पानी नहीं आया जितना इस बार आया है।अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इतनी भयंकर वर्षा क्या संकेत दे रही है, इसका वृस्तृत अध्ययन किया जाना जरूरी है। यह सही है ​देश में वर्षा का पैटर्न बदल चुका है। प्रायः केरल, आंध्रा, तमिलनाडु और कर्नाटक चारों ही राज्यों में लौटते मानसून की बारिश होती है लेकिन इस बार लौटता मानसून कहर बरपा रहा है। हवाई, सड़क और रेल यातायात कई दिनों से प्रभावित है। मकान ध्वस्त हो रहे हैं। हजारों लोग शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं। कुदरत के कहर से मानवीय क्षति और अरबों की सम्पत्ति का नुक्सान हमें सोचने को विवश कर रहा है कि कुदरत नाराज है तो उसकी नाराजगी को कैसे दूर किया जाए। दक्षिण भारतीय राज्य ही क्यों उत्तराखंड और हिमाचल में भी वर्षा ने तबाही के भयंकर मंजर ला दिए हैं। यह बात भी चौंकाने वाली है कि चौमासे के बाद ऐसी बारिश क्यों आई। कई दशकों से जिस ग्लोबल वार्मिंग की बात हो रही है और जिसकी मार फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों ने इस बार झेली है वैसी ही दस्तक भारत में भी महसूस की जा रही है। मौसम विज्ञानी बता रहे हैं कि बंगाल की खाड़ी से उठने वाली तेज हवाओं को पश्चिम विक्षोभ द्वारा पूर्व की ओर आकर रोक देने से अतिवृष्टि हुई। दरअसल मौसम परिवर्तन के चलते बारिश के ट्रेंड में बदलाव यह आया है कि बारिश कम समय के लिए होती है मगर उसकी तीव्रता ज्यादा होती है।इसमें कोई शक नहीं कि मौसम के तेवरों की तल्खी ने आपदाओं की तीव्रता बढ़ाई है लेकिन मानव मौसम की चेतावनी का ज्ञान होने के बावजूद तबाही को कम नहीं कर पाया। दरअसल अतिवृष्टि के पानी को निकासी का अपना रास्ता मिले तो वह मानवीय क्षेत्र में दखल नहीं देता। जल प्रवाह की राह में होने वाला निर्माण अतिवृष्टि पर निकासी की राह में बाधा बनता हैै, जिससे संपत्ति और मानवीय क्षति बढ़ जाती है।संपादकीय :कृषि कानूनों पर उलझन खत्मकिसान आन्दोलन समाप्त होबुजुर्गों के लिए अच्छे कदम उठाने के लिए बधाई....खानदानी सियासती 'परचूनिये'मुकद्दमों की सुनवाई के​ लिए समय सीमाभारत बंटवारे का दर्दभारत में विशेष रूप से शहरों से संबंधित विशेष योजना बनाने की जरूरत है। कभी दिल्ली, कभी मुम्बई, कभी पटना तो कभी चेन्नई और बेंगलुरु का बारिश से बुरा हाल हो जाता है। शहरों के अनियमित विकास ने जल निकासी के सारे मार्ग अवरुद्ध कर दिए हैं। शहरों में जल निकासी की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि किसी भी स्थिति में जलभराव न हो। हर साल अरबों का नुक्सान होता है, हर साल दस-पन्द्रह दिन की समस्या के बाद सफाई व्यवस्था, मृतकों को मुआवजा, बीमारियों की रोकथाम के लिए दवाइयों का वितरण और छिड़काव करना पड़ता है। यह सब मानवीय क्षति और संपत्ति के नुक्सान से अलग खर्च हैं। शहरों के लोग और जल निकासी की व्यवस्था में लगे लोग स्वयं इस पर मंथन करें। मानव खुद सोचे कि उसने नदियों और नालों पर अतिक्रमण करके सब जगह रोड अटका दिए हैं। यह देखना राज्य सरकारों का काम है कि वह यह भी देखे कि शहरों को बाढ़ का शिकार बनते देखना है या उन्हें विकसित शहर बनाना है।
Next Story
© All Rights Reserved @ 2023 Janta Se Rishta