सम्पादकीय

डेल्टा वैरिएंट ने बढ़ाई फिक्र

Triveni
20 Jun 2021 5:45 AM GMT
डेल्टा वैरिएंट ने बढ़ाई फिक्र
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कोरोना वायरस का जो नया रूप दुनिया भर में डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को चिंतित किए हुए है,

कोरोना वायरस का जो नया रूप दुनिया भर में डॉक्टरों और वैज्ञानिकों को चिंतित किए हुए है, वह है डेल्टा वैरिएंट। अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने इसे वैरिएंट ऑफ कंसर्न यानी वायरस का चिंताजनक रूप कहा है। वैसे तो यह कई देशों में मौजूदगी दर्ज करा चुका है, लेकिन ब्रिटेन तो जैसे इसकी गिरफ्त में आ चुका है। पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड (पीएचई) के आंकड़ों के मुताबिक, वहां इकट्ठा किए जा रहे सैंपल्स में 61 फीसदी मामले डेल्टा वैरिएंट के ही हैं। इसका मतलब यह है कि वहां पिछले साल गदर मचा देने वाले अल्फा वैरिएंट से भी ज्यादा मजबूत स्थिति में डेल्टा वैरिएंट आ गया है। ध्यान रहे किसी वैरिएंट को चिंताजनक श्रेणी में तब डाला जाता है, जब उसकी बढ़ी हुई संक्रामक क्षमता और मरीज को अस्पताल ले जाने की बढ़ी हुई जरूरत के सबूत उपलब्ध हों। इन दोनों ही मोर्चों पर इसकी मजबूती इसे न केवल इंग्लैंड जैसे देशों के लिए बल्कि पूरी दुनिया के स्तर पर खतरनाक बनाती है। गौर करने की बात यह भी है कि मामला डेल्टा वैरिएंट तक ही सीमित नहीं रहा। इसका और परिष्कृत रूप भी आ गया है जिसे डेल्टा प्लस कहा जा रहा है।

भारत में अभी इसके मरीजों की संख्या ज्यादा नहीं है, बावजूद इसके महाराष्ट्र के स्वास्थ्य विभाग ने चेताया है कि यही डेल्टा प्लस वैरिएंट कोरोना महामारी की तीसरी लहर का कारण बन सकता है। स्वाभाविक रूप से सरकार ने स्वास्थ्य ढांचे को इसके लिए तैयार करने की कवायद शुरू कर दी है, लेकिन एक तो ऐसी सारी कवायद की आखिरी परीक्षा लहर आने के बाद ही होती है। तभी यह पता लगता है कि सरकार के निर्देश किस हद तक जमीन पर उतरे और दरअसल उसका कितना फायदा प्रभावित लोगों तक पहुंचाया जा सका। मगर उससे ज्यादा जरूरी है खुद को बार-बार याद दिलाना कि वायरस के खिलाफ यह जंग लड़ना और जीतना अकेले सरकार के बूते की बात है ही नहीं। यह लड़ाई तभी जीती जा सकती है, जब एक-एक नागरिक पूरी जागरूकता, सावधानी और शिद्दत से इसमें भागीदारी करे। विशेषज्ञों के मुताबिक अब तक के ऑब्जर्वेशन से यह स्पष्ट है कि वैक्सीन इस वैरिएंट पर भी कारगर हैं। अपने यहां वैक्सिनेशन अभियान में आई थोड़ी सुस्ती इस संदर्भ में चिंता की एक अतिरिक्त बात हो सकती है, लेकिन ताजा प्रयासों की बदौलत उम्मीद है कि यह अभियान जल्दी ही जोर पकड़ेगा। ऐसे में आम लोगों का सहयोग दो स्तरों पर निर्णायक साबित हो सकता है। एक तो यह कि टीका लगवाने को लेकर उदासीनता हर हाल में जल्द से जल्द खत्म की जाए और दूसरा, अनलॉक के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल के पालन में वैसी लापरवाही बिल्कुल न हो, जैसी पहली लहर के उतार के बाद दिखाई गई थी।




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