सम्पादकीय

डेल्मीक्रोन : खतरनाक है संकेत

Subhi
26 Dec 2021 2:38 AM GMT
डेल्मीक्रोन : खतरनाक है संकेत
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कोविड-19 की दूसरी लहर ने जिस राष्ट्रीय आपदा को जन्म दिया है, वैसी आपदा भारत ने आजादी के बाद अब तक नहीं देखी।

आदित्य नारायण चोपड़ा: कोविड-19 की दूसरी लहर ने जिस राष्ट्रीय आपदा को जन्म दिया है, वैसी आपदा भारत ने आजादी के बाद अब तक नहीं देखी। को​विड की पहली लहर के सामने हर जगह, यहां तक कि समृद्ध देशों की भी सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था नाकाफी साबित हुई लेकिन दूसरी लहर का सामना करने वाले देशों में भारत भी शामिल रहा, जिसने मौत के तांडव का सामना किया। भले ही हम वैश्विक महामारी का खेल खत्म होने की विजयी मुद्रा में घोषणा करते रहे, इन्हीं घोषणाओं के बीच हमने तीसरी लहर को निमंत्रण दे दिया। हमने हैल्थ विशेषज्ञों की चेतावनी को दरकिनार किया और बड़ी-बड़ी चुनावी सभाओं और विशाल धार्मिक मेलों काे होने दिया। अब जबकि कोरोना के नए वैरियंट 'ओमीक्राेन' के कारण तीसरी लहर का आगमन हो चुका है और फरवरी में इसके पीक तक पहुंचने की सम्भावनाएं व्यक्त की ज रही हैं तो आम लोगों, दिहाड़ीदार मजदूरों और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों की ​​ चिंताएं बढ़ गई हैं। देश में ओमीक्राेन के मामले बढ़कर 415 हो चुके हैं। महाराष्ट्र और दिल्ली में ज्यादा संक्रमित मिल रहे हैं। ओमीक्राेन :के ग्लोबल ट्रेड को देखते हुए अगले दो-तीन हफ्ते में यह संख्या एक हजार तक पहुंच जाएगी और वहीं दो महीने में यह आंकड़ा दस लाख तक भी पहुंच सकता है। भारत में इसे रोकने के लिए अभी एक माह का समय है। हमें हर हालत में ओमीक्राेन संकरण को रोकना होगा। अभी तक हैल्थ विशेषज्ञ ओमीक्राेन को हल्के में ले रहे थे। लगभग 125 मरीज पैरासीटामोल और मल्टीविटामिन की गोलियों से ठीक हो चुके हैं लेकिन अब खतरनाक संकेत मिलने लगे हैं। पिछले कुछ दिनों से कोरोना के नए वैरियंट डेल्मीक्राेन की चर्चा शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि डेल्मीक्राेन ही अमेरिका और यूरोप में कोरोना के तूफानी गति से बढ़ने के लिए जिम्मेेदार हैं। कोरोना के डेल्टा वैरियंट और ओमीक्राेन वैरियंट मिलकर एक 'सुपर स्ट्रेन' बना रहे हैं, जिसे डेल्मीक्राेन कहा जा रहा है। डाक्टरों का कहना है कि कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोग इस वैरियंट से संक्रमित हो सकते हैं। बुजुर्गों के लिए वैरियंट घातक हो सकता है। डेल्मीक्राेन में डेल्टा और ओमीक्राेन के जुड़वा स्पाइक प्रोटीन हैं। दोनों वैरियंट के स्पाइक प्रोटीन होने की वजह से ही डेल्मीक्राेन ज्यादा घातक असर ​दिखा रहा है। स्पाइक प्रोटीन से ही कोरोना वायरस मानव शरीर की को​शिकाओं में घुसने के दरवाजे खोलता है।संपादकीय :नया वर्ष नया संकल्पम्यांमार-भारत और लोकतंत्रपंजाब : आतंक नहीं शान्तिभारतीय हाकी सिरमौर बनना ध्येय होकांग्रेस के सांगठनिक मतभेदभारत और भारत की संसदएक नए विश्लेषण ने भारत की चिंताएं दोगुनाह कर दी हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य सचिव द्वारा जारी नए विश्लेषण से पता चलता है कि दस ओमीक्राेन संक्रमित मरीजों में से 9 मरीज ऐसे हैं जिन्हें वैक्सीन की दोनों डोज लग चुकी हैं। यह विश्लेषण 183 केसों पर ​किया गया। इसका अर्थ यही है कि कोरोना के इस वैरियंट से बचने के​ लिए कोविड वैक्सीन पर्याप्त नहीं है। विश्लेषण के मुताबिक 27 फीसदी केसों की कोई विदेशी ट्रेवल हिस्ट्री ही नहीं है। 183 मामलों में केवल 7 लोगों को वैक्सीन की एक भी डोज नहीं लगी थी, जबकि दो को वैक्सीन की एक डोज लग चुकी थी। इनमें से 16 वैक्सीनेशन के लिए पात्र नहीं थे। ओमीक्राेन तेजी से फैलने वाला संक्रमण है। इसके भय से देशभर के राज्यों में नाइट कर्फ्यू लगा ​दिया गया और फिर से पाबंदियां लगाई जा रही हैं। ऐसे लगता है हम फिर उस शुरूआती स्टेज पर पहुंच रहे हैं, जहां से हम चले थे। कोरोना महामारी के चलते हम तीसरे वर्ष में प्रवेश करने वाले हैं। तीन वर्ष हर ​किसी की जिन्दगी के ​लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इस संकट से मजबूत होकर उभरने का तरीका अतीत में की गई गलतियों से सबक लेकर आगे चलने का है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में ऐसी गलतियां न दोहराई जाएं।इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा प्रधानमंत्री और निर्वाचन आयोग से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को कुछ हफ्ते टालने के आग्रह के बाद चर्चा गर्म हो गई है। यद्यपि चुनाव कराना या टालना निर्वाचन आयोग के अधिकार क्षेत्र में है। मध्य प्रदेश में भी पंचायत चुनाव टालने की मांग भाजपा के ही मंत्री द्वारा उठाई जा रही है। अब उत्तर प्रदेश के चुनावों के संबंध में निर्वाचन आयोग का कहना है कि उसकी टीम अगले हफ्ते राज्य का दौरा कर स्थिति का जायजा लेगी और फिर स्थिति की समीक्षा कर कोई फैसला लेगी। सोशल मीडिया के साथ-साथ आम लोग भी अपनी प्रतिक्रियाएं खुल कर व्यक्त करने लगे हैं कि ''​दिन में रैलियां, रात में कर्फ्यू।'' इस वाक्य में तीखा व्यंग्य है। निश्चित रूप से चुनावी गतिविधियों में सोशल डिस्टेसिंग का पालन हो ही नहीं सकता। बाजारों का हाल देखिये न तो लोग सोशल डिस्टेसिंग का पालन कर रहे हैं और न ही मास्क लगा रहे हैं। मास्क पहने भी हुए हैं तो वह गले में ही लटक रहे हैं। देश की सर्वोच्च अदालतों की फटकार भी कोई काम नहीं कर रही। अब लोगों को व्यक्तिगत जिम्मेदारी सम्भालनी होगी और दूसरों की जिन्दगी को बचाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। जहां तक चुनावों का सवाल है, इस संबंध में निर्वाचन आयोग को कोरोना महामारी के नए वैरियंट को देखते हुए कदम उठाने होंगे। बड़ी रैलियों को रोककर प्रचार को व्यवस्थित करना होगा। अं​तिम सत्य यही है कि लाखों लोगों की जिन्दगियां चुनावाें से ज्यादा कीमती हैं।

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