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- वितरण की प्रणाली
Written by जनसत्ता: द्वितीय विश्वयुद्ध के समय खाद्य सुरक्षा प्रणाली शुरू की गई थी और 1947 में इसे पूर्ण रूप से लागू किया गया। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्ष के अनुसार भारत में पांच प्रतिशत लोगों को दो वक्त का भोजन भी नसीब नहीं होता है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 में बना, जिसका उद्देश्य भारत में सभी को खाद्य सुरक्षा की गारंटी मुहैया कराना था। दिसंबर 2000 में अंत्योदय अन्न योजना शुरू की गई, जिसके तहत गरीब परिवारों को हर महीने पैंतीस किलो राशन देने का प्रावधान बना। भारत में अनाज का भंडारण चीन के बाद दुनिया में सबसे अधिक है। भारत साढ़े सात सौ अरब यानी की अपनी जीडीपी का एक प्रतिशत अनाज भंडारण पर खर्च करती है, फिर भी भारत में कुपोषण कम होने का नाम नहीं ले रहा।
भारत में गरीबों को सब्सिडी दरों पर मुख्य रूप से गेहूं, चावल, चीनी, चना, सरसों का तेल, नमक आदि खाद्य और गैर-खाद्य पदार्थों का वितरण सार्वजानिक वितरण प्रणाली के तहत कोटेदारों के माध्यम से दिया जाता है। इन कोटेदारों के भ्रष्टाचार के बारे में काफी कुछ लिखा जाता है। मगर कोटेदारों ने कोरोना काल में अपने और अपने परिवार का खतरा उठाते हुए खाद्य पदार्थों का समय पर वितरण किया।
बायोमैट्रिक मशीन से ही सबको राशन बांटना था, अंगुलियों से मशीन पर वायरस आ सकता था, लेकिन कोटेदारों ने कोरोना नियमों को ध्यान में रखते हुए अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया। कोटेदारो की भी अपनी कुछ समस्याएं हैं। उनकी समस्याओं गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।
उत्तर प्रदेश में नाममात्र के कमीशन, सत्तर पैसे प्रति किलो, पर कोटेदार मनोयोग से अपनी दुकान से जुड़े सैकड़ों परिवारों को राशन प्रदान कर रहे हैं, मगर फिर भी उपेक्षा का शिकार हैं। एक राशन विक्रेता हर उपभोक्ता को संतुष्ट करने का प्रयास करता है, मगर जरा-सी शिकायत पर विभाग उसे चोर सिद्ध कर दंडात्मक कार्यवाही कर उसे हतोत्साहित कर रहा है। किसी सरकार, नेता या अधिकारियों का ध्यान कोटेदारों की तरफ नहीं जाता।
निश्शुल्क राशन व्यवस्था को केंद्र सरकार ने सितंबर तक बढ़ा दिया है। उत्तर प्रदेश में ही राशन डीलर लगभग अस्सी हजार हैं। कोटेदारों को पूर्णकालिक सरकारी कर्मचारी मानते हुए एक निश्चित मानदेय दिया या उनका कमीशन बढ़ाया जाना चाहिए। कोटेदार भ्रष्टाचार क्यों कर रहे है? इसका आकलन कराना अत्यंत आवश्यक हो गया है। बायोमीट्रिक प्रणाली होने से भ्रष्टाचार में बहुत कमी आई है।
भारत में पुलिस प्रशासन के लिए सुरक्षा व्यवस्था सदैव एक चुनौती रही है, पर पुलिस जवानों की परेशानियों को भी नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए। कोरोना महामारी से निपटना रहा हो या कोई तीज-त्योहार या अन्य आपदा, पुलिस विभाग की इससे निपटने और व्यवस्था को बनाए रखने में अहम भूमिका रही है। उत्तर प्रदेश में अपराधियों के मन में पुलिस का खौफ हो या फिर थानों में बाहुबलियों का आत्मसमर्पण, पुलिस की कर्तव्य परायणता का ही नतीजा है। पर चाहे कमिश्नरेट हो, जिला मुख्यालय या थाना हो, जवानों को आवास और दैनिक क्रिया हेतु अव्यवस्था का ही शिकार होना पड़ता है।
अगर वे रात में अपना कर्त्तव्य निभाने के बाद अच्छी नींद नहीं ले पाएंगे, तो स्वाभाविक है कि परिणाम उसके बदले हुए व्यवहार में दिखाई देगा। पुलिस सुधार से संबंधित समितियों की सिफारिशों को सरकार और राज्यों द्वारा जनहित और जवानों के हित में लागू किया जाना चाहिए। ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि इन समस्याओं से सरकार ने मुंह मोड़ रखा है, पर जो कुछ सुधार के नाम पर अभी तक हुआ है वह ऊंट के मुंह में जीरा के समान ही है। पुलिस विभाग को आधुनिक तकनीक से लैस करना है तो उसकी समस्याओं को भी ध्यान में रखने से वांछित परिणाम मिलेगा।