सम्पादकीय

Delhi Riots: आखिर क्या है यूएपीए कानून और इसके किन प्रविधानों पर उच्च न्यायालय ने उठाए सवाल

Gulabi
26 Jun 2021 6:16 AM GMT
Delhi Riots: आखिर क्या है यूएपीए कानून और इसके किन प्रविधानों पर उच्च न्यायालय ने उठाए सवाल
x
पिछले दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिल्ली दंगों के मामले में तीन छात्र-छात्रओं को जमानत दे दी गई

पीयूष द्विवेदी। पिछले दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिल्ली दंगों के मामले में तीन छात्र-छात्रओं को जमानत दे दी गई। इन्हें गत वर्ष फरवरी में दिल्ली दंगों से संबंधित एक मामले में यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था। उच्च न्यायालय के इस फैसले के विरुद्ध दिल्ली पुलिस की याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने आरोपियों की जमानत पर तो रोक नहीं लगाई, पर उच्च न्यायालय की यूएपीए संबंधी व्याख्या पर कई महत्वपूर्ण बातें जरूर कही हैं।

इस संदर्भ में जानना महत्वपूर्ण होगा कि आखिर यूएपीए कानून है क्या और इसके किन प्रविधानों पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने सवाल उठाए हैं। दरअसल यह कानून 1967 में राष्ट्र की संप्रभुता और अखंडता को संकट में डालने वाली गतिविधियों पर रोकथाम लगाने के लिए लाया गया था। अगस्त, 2019 में मोदी सरकार द्वारा इस कानून में संशोधन करते हुए इसे और अधिक शक्ति प्रदान की गई। इस कानून में हुए संशोधन के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को कई अधिकार मिल गए। अब इसके तहत संगठनों के साथ-साथ संदिग्ध गतिविधियों में संलिप्त पाए जाने पर व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित किया जा सकता है। साथ ही उस व्यक्ति की संपत्ति भी जब्त की जा सकती है। दरअसल इस संशोधन से पहले किसी व्यक्ति को आतंकी घोषित किए जाने की कोई कानूनी व्यवस्था नहीं थी, जिस कारण जब किसी आतंकवादी संगठन को प्रतिबंधित किया जाता था तो उसके लोग एक नया संगठन बनाकर पुन: सक्रिय हो जाते थे। इस तरह की गतिविधियों पर रोक लगाने में भी यह कानून अब कारगर हो गया है। इसी प्रविधान पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने सवाल उठाया है, लेकिन यदि विचार करें तो यह प्रविधान वर्तमान समय के लिए आवश्यक ही लगते हैं।
यह सही है कि एक लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए, लेकिन यदि इस स्वतंत्रता की आड़ में कोई राष्ट्रविरोधी मानसिकता का प्रदर्शन करके भी आजाद घूमता रहे तो यह राष्ट्र की संप्रभुता के लिए ठीक नहीं है। भीमा कोरेगांव की एल्गार परिषद का मामला हमारे सामने है, जिसकी जांच में कैसे-कैसे भयानक खुलासे सामने आए हैं। इस परिषद में शामिल लोग यूं तो अलग-अलग संगठनों से जुड़े हुए थे या स्वतंत्र सामाजिक कार्यकर्ता थे, लेकिन जब जांच हुई तो प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश से लेकर नक्सली और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी (आइएसआइ) से कनेक्शन तक कितना कुछ सामने आ गया। दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर जीएन साईं बाबा को नक्सली कनेक्शन के आरोप में गिरफ्तार किया गया तो वहीं खुद को सामाजिक कार्यकर्ता कहने वाले गौतम नवलखा का आइएसआइ से संपर्क सामने आ चुका है।
वास्तव में समय के साथ जैसे-जैसे देश का खुफिया तंत्र मजबूत हुआ है, वैसे-वैसे देश को नुकसान पहुंचाने वाले आतंकवादी और नक्सली जैसे तत्वों ने भी लड़ाई के ढंग बदले हैं। अब वे हथियारों की लड़ाई तो लड़ते ही हैं, उनके अनेक समर्थक लोग भी संभ्रांत लोगों के बीच सामान्य ढंग से सक्रिय रहते हुए उन्हें मदद पहुंचाते रहते हैं। पहले ऐसे लोगों को गिरफ्तार करना आसान नहीं था, लेकिन यूएपीए संशोधन कानून के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी शक के आधार पर उन्हें गिरफ्तार कर सकती है। और सुबूत होने पर उन्हें आतंकी भी घोषित किया जा सकता है। इससे आतंकियों और नक्सलियों के इस शहरी नेटवर्क को नष्ट करने में मदद मिलेगी और आतंकवाद के विरुद्ध देश की लड़ाई मजबूत होगी। लिहाजा कह सकते हैं कि वर्तमान यूएपीए कानून समय की आवश्यकताओं के अनुरूप है और इसे यथावत बने रहना चाहिए।
[स्वतंत्र टिप्पणीकार]
Gulabi

Gulabi

    Next Story