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By: divyahimachal
गली-गली पानी, घुटनों तक पानी…! ठहर गई दिल्ली, सडक़ों पर पानी…! दरिया जितना पानी-पानी, बाढ़ बनता पानी-पानी…! ये काव्यात्मक वाक्यांश देश की राजधानी दिल्ली की दुर्दशा और अव्यवस्था बयां करने को काफी हैं। गनीमत है कि दिल्ली और आसपास के इलाके पहाड़ी नहीं हैं। यदि पहाड़ी होते, तो एक ही बारिश त्रासद साबित हो सकती थी! दिल्ली में बीते 24 घंटे में करीब 155 मिमी बारिश हुई और 41 साल पुराना रिकॉर्ड याद आ गया। इससे ज्यादा बारिश 1982 की जुलाई में हुई थी। बहरहाल इस बार की बारिश से करीब 60 इलाकों में जलभराव हो गया। औसतन हर तरफ घुटनों तक पानी बरसा और जमा हो गया। मंत्रियों, सांसदों, आईएएस, आईपीएस अधिकारियों के वीआईपी आवासीय क्षेत्रों और घरों के भीतर तक, सभी दिशाओं में, पानी-पानी हो गया। पानी के साथ कूड़ा-कर्कट भी चला आया और छोटे-छोटे सरीसृप वर्ग के जीव भी दिखाई दिए। आज मंगलवार को आशंका है कि यमुना नदी में जल-स्तर खतरे के निशान से ऊपर तक बढ़ जाएगा, क्योंकि हथिनी कुंड बैराज से करीब 71,000 क्यूसेक पानी छोड़ा गया है। खतरे को भांपते हुए यमुना के आसपास के इलाकों में बसे 37,000 से अधिक लोगों को सुरक्षित जगहों पर भेजा गया है। लोक निर्माण एवं शिक्षा मंत्री आतिशी के चुनाव-क्षेत्र श्रीनिवास पुरी में एक स्कूल की दीवार गिर गई। शुक्र है कि स्कूल में बच्चे नहीं थे। यदि स्कूल चल रहा होता, तो बड़ी त्रासद घटना हो सकती थी! इस स्कूल का उद्घाटन महज 4 माह पहले ही किया गया था।
स्कूल पर 16 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। राजधानी में आधा दर्जन से अधिक जगहों पर पेड़ भी टूट कर गिर पड़े। गनीमत है कि पहाड़ों जैसा भू-स्खलन, सडक़ों का टूटना, बादल फटना और प्रलय-सा पानी का बहाव दिल्ली में नहीं होता और न ही ऐसी स्थितियां बन पाईं, लेकिन 6 लोगों की मौत हो गई और कुछ घायल भी हुए। इसका एकमात्र कारण है-व्यवस्था की नालायकी। विभिन्न दिल्ली सरकारों के दौरान टाउन प्लानिंग के विशेषज्ञों ने दस्तावेजी प्रारूप बनाकर दिए थे, लेकिन विडंबना है कि देश की राजधानी में भी अराजकता के ढोल बजते रहे हैं। चौतरफा विकास और सडक़-निर्माण के बावजूद डे्रनेज सिस्टम और बारिश-नियंत्रण आदि नाकाम हैं। बेशक राजधानी दिल्ली में भारत सरकार और संसद भी हैं, लेकिन बरसाती नालों को साफ कराना, लोक निर्माण के स्थानीय कार्यों, डे्रनेज, शहरी स्मार्टनेस की कोशिशें आदि जिम्मेदारियां दिल्ली नगर निगम और अद्र्धराज्य की केजरीवाल सरकार की हैं। इन कामों के लिए संसद और केंद्र सरकार पर्याप्त बजट आवंटित करती हैं। अब नगर निगम में भी आम आदमी पार्टी (आप) की सत्ता है और महापौर भी ‘आप’ का ही है। मुख्यमंत्री केजरीवाल बहाना मार सकते हैं कि दिल्ली में इतनी भारी बारिश अपेक्षित नहीं थी, लिहाजा जो तैयारियां की गई थीं, वे विकलांग साबित हुईं और राजधानी दिल्ली को पानी-पानी देखना पड़ा। मुख्यमंत्री को विशेषज्ञों से विमर्श करना चाहिए था, क्योंकि जलवायु-परिवर्तन ने तमाम समीकरण बदल दिए हैं। इसे मजाक में नहीं लेना चाहिए, क्योंकि पूरी दुनिया जलवायु-परिवर्तन के घातक प्रभावों को झेल रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली के उपराज्यपाल को फोन कर हालात की जानकारी ली। नतीजतन उपराज्यपाल को सडक़ों पर आना पड़ा। मंत्री भी सडक़ों पर उतरे और लोगों के बीच जाकर उनकी तकलीफें हल करने की कोशिशें कीं। राजधानी दिल्ली में जो भी घटता है, वह अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बन जाता है। सोशल मीडिया पर तो सरकार की भद्द पिट रही है। हम आपदा और समस्याओं की संवेदनशीलता को नकार नहीं रहे हैं, लेकिन मानसून के मौसम में ये दृश्य हर साल दिखाई देते हैं। दिल्ली सरकार आम नागरिक से कर भी वसूलती है, तो फिर व्यवस्था की जिम्मेदारी और जवाबदेही किसकी है? ताजा खबर है कि हथिनी कुंड बैराज से 2.79 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया है, अत: सचेत रहना होगा।

Rani Sahu
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