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सम्पादकीय
Delhi Jahangirpuri Violence : हिंदुओं के अंदर भय पैदा करने के लिए हो रहेे हैं देशभर में शोभायात्राओं पर हिंसक हमले
Gulabi Jagat
17 April 2022 4:14 PM GMT

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हिंदू धर्म से जुड़ी शोभायात्राओं पर हमले का क्रम देश की राजधानी दिल्ली तक पहुंच गया
अवधेश कुमार। हिंदू धर्म से जुड़ी शोभायात्राओं पर हमले का क्रम देश की राजधानी दिल्ली तक पहुंच गया। जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती की शोभायात्रा पर भीषण हमला और आगजनी ठीक वैसे ही है, जो हम मध्य प्रदेश के खरगोन से लेकर गुजरात के खंभात और राजस्थान के करौली तक देख चुके हैैं। दिल्ली, गुजरात, झारखंड, बंगाल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में हुईं इन हिंसक घटनाओं के बीच कुछ समानताएं दिखाई दे रही हैैं। जैसे-पहले शोभायात्रा पर हमला, फिर पूरी तैयारी के साथ आगजनी और हिंसा। वैसे भी पेट्रोल बम, तलवार, पिस्तौल के साथ अनगिनत पत्थरों, कांच की बोतलों का चलना, लक्षित आगजनी आदि अचानक नहीं हो सकतीं। हिंसा का भयावह सच वीडियो और सीसीटीवी फुटेज में साफ दिख रहा है। दिल्ली का वीडियो देखें। इसमें शोभायात्रा में लोग गाते-नारा लगाते चल रहे हैं और अचानक उन पर भारी संख्या में लोग हमला कर देते हैं। जितनी संख्या में हिंसा करते लोग दिख रहे हैं वे एकाएक नहीं जुट सकते। जाहिर है, सब सुनियोजित तरीके से किया गया और पहले से पूरी तैयारी थी। तो ये कौन हैं, जिन्होंने देशव्यापी हिंसा की साजिश रचकर उनको अंजाम तक पहुंचाने में सफलता पाई?
इसका एक उत्तर गुजरात के आणंद जिले के खंभात इलाके में पांच अप्रैल को एक धार्मिक जुलूस पर हुए हमले के आरोप में पकड़े गए लोगों से पूछताछ के बाद मिल रहा है। गिरफ्तार लोगों से पता चला है कि उस हिंसा के पीछे मौलवी रजक पटेल था। मौलवी रजक घटना को अंजाम देने के लिए जिले के बाहर और कुछ विदेशी लोगों से आवश्यक धन की व्यवस्था को लेकर भी संपर्क में था। जैसे ही उसे पता चला कि रामनवमी जुलूस की अनुमति मिल गई है, तो उसने तीन दिन के भीतर पूरी व्यवस्था कर ली। जाहिर है, तैयारी पहले से हो रही होगी। कब्रिस्तान से पत्थर फेंकने की योजना इसलिए बनाई गई, ताकि पत्थरों की कमी न पड़े।
अभी तक की छानबीन का निष्कर्ष है कि इन लोगों ने देश में शोभायात्राओं में हिंसा इसीलिए की, ताकि हिंदुओं के अंदर भय पैदा हो और वे आगे से यात्रा न निकालें। यह मानसिकता जुनूनी मजहबी घृणा से ही पैदा होती है और विश्व स्तर पर यह जिहादी आतंकवाद के रूप में हमारे सामने है। जिस तरह से कोई आतंकी माड्यूल योजना बनाकर हमला करता है, लगभग वैसा ही तौर-तरीका इनका भी है। यानी पहले बैठकें करना, उसमें शोभायात्राओं को कहां-कहां किस तरह निशाना बनाना है उस पर चर्चा करना, योजना बनाना, उन्हें अंजाम देने के लिए संसाधन जुटाना, मुख्य लोगों को तैयार करना या बाहर से बुलाना, आम लोगों को भड़काकर इसके लिए तैयार करना, शोभायात्रा आने के पहले घात लगाकर बैठना और अचानक हमला कर देना।
इन हमलों के संदेश क्या हैैं? आमतौर पर माना जाता है कि केंद्र से लेकर अनेक राज्यों में भाजपा की सरकारों के कारण जिहादी और सांप्रदायिक तत्व कमजोर पड़ गए हैं। वे बड़ी साजिशों को सफल नहीं कर पा रहे। आतंकी हिंसा को अंजाम देने वाली ताकतें भी निराश हैं। इस कारण सीधे आतंकवादी हमले करने की जगह इन शक्तियों ने तरीका बदलने की शुरुआत की है। आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने के विकल्प के तौर पर इस प्रकार की एकपक्षीय हिंसा और दंगा हमारे लिए नई चुनौती बनकर सामने आई है। राष्ट्रव्यापी साजिश रचने के पीछे पापुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआइ) जैसे संगठनों का हाथ होने की भी बात सामने आ रही है। पीएफआइ पहले से सुरक्षा एजेंसियों के रडार पर है। इसके बावजूद यह संगठन एकपक्षीय सांप्रदायिक हिंसा की साजिशों को अंजाम देने में सफल हो गया। क्या उसकी गतिविधियों पर नजर रखने में हाल के महीनों में ढिलाई बरती गई?
वास्तव में इन घटनाओं की सीख यह है कि केंद्र और राज्य सरकारें तथा सभी सुरक्षा एजेंसियां देश विरोधी जिहादी ताकतों को लेकर सतर्कता में जरा भी ढिलाई न बरतें। उत्तर प्रदेश जैसे संवेदनशील राज्य में रामनवमी के जुलूस 800 स्थानों से निकले, लेकिन कहीं हिंसा की घटना नहीं हुई। अगर वहां वे हिंसा करने में कामयाब नहीं हुए तो इसके पीछे सख्त सुरक्षा व्यवस्था के साथ यह भय भी मुख्य कारण रहा कि अगर पकड़े गए तो उनके सहित परिवारों और रिश्तेदारों तक के खिलाफ पुलिस-प्रशासन किसी भी सीमा तक जा सकता है। घटना के बाद मध्य प्रदेश सरकार भी उन लोगों की संपत्तियां बुलडोजर से ध्वस्त करवा रही है, जिनके चेहरे साफ तौर पर वीडियो फुटेज में दिख रहे हैं। इससे वहां भी भय पैदा हुआ है। आगे इसका असर होगा। धार्मिक आयोजनों पर हमले और बाद में हिंसा को अंजाम देने वाले आतंकवादी ही हो सकते हैं। उनके साथ उसी तरह की कार्रवाई होनी चाहिए।
विडंबना देखिए कि देश में सेक्युलरवाद और लिबरलवाद का झंडा उठाए कुछ लोगोंं के मुंह पर ताले लगे हुए हैं। यही हिंसा मुस्लिम धार्मिक जुलूस पर होती तो तूफान खड़ा हो चुका होता। संभव है टूलकिट भी बन जाती और दुनिया भर में प्रचार होता कि भारत में फासिस्ट शक्तियों का राज आ गया है, जो हिंदू धर्म के अलावा हर मजहब को हिंसा की बदौलत नष्ट करना चाहते हैं। एक मस्जिद पर कुछ युवकों द्वारा भगवा झंडा लगाने का कितना प्रचार हुआ इसे याद करें। यकीनन यह गलत है। उन्हें भी रोका जाना चाहिए, किंतु उस घटना पर आवाज उठाएं और इतनी बड़ी हिंसा पर चुप्पी साधे रहें तो उनको झूठा और पाखंडी मान जाएगा। जो भी हो, हम सबको इन घटनाओं के बाद ज्यादा गहराई से अपने विचार और व्यवहार पर विचार करने की आवश्यकता है। अच्छा होगा कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को संपूर्ण हिंसा की जांच सौंप दे, ताकि राष्ट्रव्यापी साजिशों का पता चल सके।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार हैैं)

Gulabi Jagat
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