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- अफगानिस्तान पर दिल्ली...
आदित्य नारायण चोपड़ा; अफगानिस्तान के मानवीय संकट और आर्थिक मुश्किलों पर चर्चा करने और संकट को रोकने के लिए पाकिस्तान में मुस्लिम देशों की बैठक हुई लेकिन पांच एशियाई देशों के विदेश मंत्रियों ने इस्लामाबाद में हुई पाकिस्तान इस्लामिक सहयोग संगठन के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग न लेकर राजधानी में मध्य एशिया वार्ता की तीसरी बैठक में भाग लिया। यह वह देश हैं जो सोवियत संघ का हिस्सा रहे हैं। कजाकिस्तान, किर्गिज गणराज्य, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान। इन पांच देशों में से तीन देशों तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान की सीमाएं अफगानिस्तान से जुड़ी हुई हैं और इनकी अपनी चिंताएं हैं। इनकी पिछली बैठक भारत की ओर से अक्तूबर 2020 में वीडियो कांफ्रैंसिंग के माध्यम से आयोजित की गई थी। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत-मध्य एशिया वार्ता की मेजबानी करते हुए अफगानिस्तान पर बेबाक बातचीत की।2012 से भारत और इन पांच एशियाई देशों के बीच सक्रिय जुड़ाव रहा है। भारत इन्हें विस्तारित पड़ोस का हिस्सा मानता है। आज हुई बैठक ने अफगानिस्तान पर दस नवम्बर को क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता की याद दिला दी है, जिसके लिए इन पांच देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रूस और दिल्ली में थे। तब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल द्वारा आयोजित उस बैठक में सभी ने अफगानिस्तान की स्थिति पर गम्भीर चिंता व्यक्त की थी। इस बैठक में भारत ने इस बात पर बल दिया कि अफगानिस्तान में निर्बाध मानवीय सहायता पहुंचाई जाए, इसके लिए रास्ते भी तलाश किए जाएं।इस बैठक के साथ ही अगले महीने गणतंत्र दिवस समारोह में इन पांच देशों के नेताओं की उपस्थिति के लिए मंच तैयार हो गया है। कजाकिस्तान के कसीम-जोमार्ट टोकपन, उज्जबेकिस्तान के शवकत मिर्जियोन, ताजिकिस्तान के इमोमाली रहमान, तुर्कमेनिस्तान के बर्दी मुहामेरो और किर्गिस्तान के सदिर जायकोव गणतंत्र दिवस समारोह में अतिथि होंगे।संपादकीय :पंजाबः नये गठजोड़ व पार्टियांफिटनेस के दम पर मिस यूनिवर्स खिताबभारत-फ्रांस संबंधों में मजबूतीयूपी में विकास परियोजनाएंदशक पुराने डीजल वाहनों पर रोकचुनावों का साफ सुथरा होनालम्बे समय तक निर्वाचित सरकार के शासन के बाद अफगानिस्तान पर तालिबानियों का कब्जा होने के बाद पूरी दुनिया चिंतित है। तालिबानी अपनी नृशंस्ता और कट्टरता के लिए कुख्यात हैं। लाखों मासूम बच्चे, महिलाएं और बुजुर्गों को जान-माल का खतरा बना हुआ है। अब सवाल यह है कि अफगानिस्तान में लोकतंत्र बहाली के लिए , समावेशी सरकार के गठन, महिलाओं के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए भारत को आगे बढ़कर सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए या नहीं। पहली बात तो यह है अफगानिस्तान से भारत के एतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। महाराजा रणजीत सिंह का शासन अफगानिस्तान तक था। अविभाजित भारत के समय में वह हमारा प्रत्यक्ष पड़ोसी रहा है। भारत ने वहां अरबों रुपए का निवेश कर रखा है। इसलिए हमारी चिंताएं बहुत ज्यादा हैं। अफगानिस्तान के घटनाक्रम को नजरअंदाज करना भारत के लिए मुश्किल है। एशिया के पांच देशों की चिंता भी है कि अगर युद्धग्रस्त देश में मानवीय संकट नहीं रोका गया तो उसकी अर्थव्यवस्था ढह जाएगी और शरणार्थियों की बाढ़ आ जाएगी। अफगानिस्तान के लोगों की मदद के लिए भारत ने हाल ही में मैडिकल सहायता वहां भेजी है और वह गेहूं भेजने के लिए भी तैयार है। वैश्विक शक्तियां इस बात को लेकर चिंतित हैं कि तालिबान चाहे एक संगठन हो लेकिन अब वह एक प्रवृति और मुहावरे के रूप में स्थापित हो चुका है। तालिबान के चलते पूरी दुनिया में आतंकवाद का खतरा काफी बढ़ चुका है। पाकिस्तान और चीन तालिबानी प्रवृतियों के पोषक के रूप में उभरे हैं।अफगानिस्तान में एक तरह से आधुनिकता, वैज्ञानिकता, समानता बंधुत्व के सिद्धांतो को खारिज किया जा रहा है। मानवता और मानवाधिकार भीषण खतरे में हैं। तालिबानी निर्दोषों, कमजोरों, महिलाओं और बच्चों पर कहर ढहा रहे हैं। तालिबान अपने महिला एवं शिक्षा विरोधी विचारों के लिए जाना जाता है। औरतों पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। आधुनिक शिक्षा देने वाले स्कूल, कालेज बंद कर किये जा रहे हैं। किशोरों को तालिबानी और जेहादी बनाए जाने का सिलसिला फिर से शुरू होने का खतरा पैदा हो गया है। दुनिया में जहां कहीं भी मानवता खतरे में पड़ी है भारत ने हमेशा अपनी आवाज बुलंद की है। लोकतंत्र की हिमायत देने के नाते यह उसका वैश्विक कर्त्तव्य भी है कि वह अफगानिस्तान के मामले पर अपनी भूमिका निभाए। भारत को यह भी देखना होगा कि अफगानिस्तान में लोकतंत्र की बहाली हो लेकिन किसी महाशक्ति का अनावश्यक हस्तक्षेप न हो। भारत अपने मित्र देश रूस और एशिया के पांच देशों से मिलकर अफगानिस्तान में मानवता की रक्षा के लिए रणनीति बनाने में जुटा हुआ है और दिल्ली में हुए संवाद का यही संकेत है।