सम्पादकीय

दिल्ली फिर 'गैस चैंबर'!

Gulabi
8 Nov 2021 5:03 AM GMT
दिल्ली फिर गैस चैंबर!
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देश की राजधानी दिल्ली एक बार फिर 'गैस चैंबर' बन गई है

दिव्यहिमाचल .

देश की राजधानी दिल्ली एक बार फिर 'गैस चैंबर' बन गई है। दीपावली की पटाखेबाजी ही सनातन कारण नहीं है। दिवाली के अगले दिन ही करीब 40 फीसदी प्रदूषण पराली के हिस्से दर्ज किया गया। इसके अलावा औद्योगिक, निर्माण-कार्यों, परिवहन और अन्य कारणों से भी प्रदूषण फैलता और बढ़ता रहा है। पटाखे आग में घी का काम करते रहे हैं। दिल्ली का वायु प्रदूषण भयावह स्तर को छूकर लौट रहा है। ऐतिहासिक इंडिया गेट, नेशनल स्टेडियम, पटपड़गंज, श्रीनिवासपुरी, शाहदरा, आनंद विहार, ओखला और सोनिया विहार आदि स्थानों के अलावा गाजि़याबाद और नोएडा सरीखे आसपास के इलाकों में भी वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 999 तक पहुंच गया था। यह अत्यंत भयावह और जानलेवा बिंदु है। एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने चेतावनी दी है कि ऐसा प्रदूषण राजधानी में कोरोना वायरस के मामलों को बढ़ा सकता है। दोनों का मानवीय फेफड़ों से सीधा संबंध है। प्रदूषण नियंत्रण एजेंसियों के मुताबिक, दिल्ली का हर तीसरा बच्चा अस्थमा का मरीज है। फेफड़े विकृत हो रहे हैं। सांस की बीमारियां बढ़ रही हैं। सांस फूलने लगा है, लिहाजा हार्ट अटैक के आसार घने हो रहे हैं।


नाक, कान और आंखों में जलन और अन्य परेशानियां महसूस की जा रही हैं। विशेषज्ञ बार-बार चेता रहे हैं कि लोग सुबह की सैर पर न निकलें और व्यायाम भी न करें, क्योंकि हवा ज़हरीली है और वह मानवीय तंत्र को बुरी तरह प्रभावित करेगी। राजधानी दिल्ली के ज्यादातर इलाके 400-500 एक्यूआई की चपेट में हैं। यह भी बेहद गंभीर स्थिति का सूचक है। दरअसल 100 तक का एक्यूआई सामान्य और अच्छा माना जाता है। उसके बाद तो हवाएं ज़हरीली होनी शुरू हो जाती हैं। प्रदूषण का यह सिलसिला अब जनवरी माह के अंतिम सप्ताह तक चलेगा। तब तक न तो पराली जलाई जाती है और न ही पटाखेबाजी होगी। जो प्रदूषण बाहरी इलाकों से आकर दिल्ली की हवा में घुल-मिल गया है, उसका प्रभाव फरवरी तक भी महसूस किया जाता रहा है। राजधानी दिल्ली की यह समस्या सनातन-सी बन गई है। सरकारों के पास कोई स्थायी और ठोस समाधान नहीं है। अथवा प्रदूषण पर भी जमकर सियासत की जाती रही है। पिछले कई सालों से अनुभव किया है कि हर साल अक्तूबर माह से प्रलाप शुरू होता है। सरकारें और विपक्ष अलग-अलग स्वरों में प्रलाप करते हैं। सर्वोच्च अदालत भी पटाखों पर पाबंदी के साथ-साथ तल्ख़ टिप्पणियां करती रही है। दिल्ली की केजरीवाल सरकार तरह-तरह के रोने रोती है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने पटाखों को आस्था की पृष्ठभूमि दे दी है। उनका कहना है कि पटाखे हिंदुओं की धार्मिक भावना से जुड़े हैं। यह सांस्कृतिक परंपरा सदियों पुरानी है, लिहाजा सोशल मीडिया पर एक अदृश्य प्रचार दिखाई दिया कि पटाखे खूब चलाए जाएं। हमारी जानकारी है कि लोगों ने हजारों रुपए की कालाबाज़ारी के साथ पटाखे खरीदे और बेचे।


लोगों ने रिवॉल्वर में असली गोलियां भरकर भी चलाईं। पटाखे तो उन सोसायटियों के भीतरी आंगनों मंे फोड़े गए, जहां लोग छोटे-छोटे फ्लैटों में रहते हैं। शुक्र है कि आग लगने या जलने की कोई बड़ी घटना दर्ज नहीं की गई। प्रदूषण का यह तमाशा दिल्ली पुलिस की नाक तले होता रहा है! भाजपा नेताओं के कुतर्क समझ में नहीं आते। हाल के दिनों तक हिंदुओं के तमाम मंदिर, पूजास्थल, देवी-देवताओं के स्मारक स्थल कोरोना के कारण बंद किए गए थे। न तो परंपराओं पर फर्क पड़ा और न ही कोई आस्था खंडित हुई। तो पटाखे नहीं चलाने से हिंदू धर्म का कौन-सा अपमान हो जाता? चूंकि यह आदेश केजरीवाल सरकार का था और भाजपा उसकी कट्टर विरोधी है, लिहाजा अघोषित तौर पर पटाखे चलाने का आह्वान किया गया। केजरीवाल सरकार ने भी करोड़ों रुपए खर्च करके स्मॉग टॉवर स्थापित किए थे। वे भी प्रदूषण को नहीं रोक पाए। राज्य सरकार ने पूसा इंस्टीट्यूट में पराली के संदर्भ में डिकंपोजर के प्रयोग कराए थे। फिर भी दिवाली के आसपास 3500 से ज्यादा जगहों पर पराली जलाई गई। स्वाभाविक है कि उसका धुआं दिल्ली के पर्यावरण को छलनी करेगा और ऐसा ही हुआ। दिल्ली सरकार वाहनों को लेकर सम-विषम के प्रयोग करती रही है और रेड लाइट पर कार का इंजन बंद करने की अपील दोहराती रहती है। उसे लेकर भी सियासत की जाती रही है। तो क्या अब राष्ट्रीय राजधानी को 'गैस चैंबर' के हवाले ही, उसकी नियति पर, छोड़ दें? सरकार को इस समस्या का समाधान जल्द से जल्द ढूंढ लेना चाहिए ताकि करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा हो सके।


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