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सभी राज्यों में टीकाकरण अभियान तेजी से चल रहा है। कई सरकारें टीकाकरण में अव्वल आने की होड़ करती देखी जा रही हैं।
सभी राज्यों में टीकाकरण अभियान तेजी से चल रहा है। कई सरकारें टीकाकरण में अव्वल आने की होड़ करती देखी जा रही हैं। पिछले दिनों टीकों की कमी को लेकर खासी राजनीति भी हुई थी, पर अब वह शांत है। अपने देश में बने दो टीकों के अलावा बाहर से भी तीन टीके मंगाए गए हैं। इन सबके बावजूद स्थिति यह है कि देश में तीन करोड़ चालीस लाख से ऊपर लोग ऐसे हैं, जिन्हें पहली खुराक दी जा चुकी है, पर तय अवधि पार हो जाने के बाद भी वे दूसरी खुराक अब तक नहीं ले पाए हैं। इसे लेकर स्वाभाविक ही चिंता जताई जाने लगी है कि ऐसे लोगों में प्रतिरोधक क्षमता कितनी मजबूत रह पाएगी।
हालांकि कई चिकित्सक कहते रहे हैं कि दोनों टीकों के बीच अधिक अंतर रखना प्रतिरोधक क्षमता के लिहाज से बेहतर नतीजे देगा। इसी आधार पर जब टीकों की कमी को लेकर शोर मचना शुरू हुआ, तो चार हफ्ते से बढ़ा कर दोनों के बीच का अंतर आठ से बारह हफ्ते कर दिया गया था। कोविशील्ड के लिए दूसरी खुराक की अवधि चौरासी से एक सौ बारह दिन और कोवैक्सीन के लिए अट्ठाईस से बयालीस दिन कर दी गई। माना गया था कि दोनों खुराकों के बीच की अवधि बढ़ने से टीकों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने में आसानी होगी। मगर यह सच साबित होता नजर नहीं आ रहा।
हालांकि सरकार का दावा है कि टीकों की कोई कमी नहीं है। पर यह सवाल अपनी जगह बना हुआ है कि करीब साढ़े तीन करोड़ लोग दूसरी खुराक क्यों नहीं ले पाए हैं। यह ठीक है कि टीका लगवाने के मामले में अब भी बहुत सारे लोगों के मन में हिचक और अविश्वास बना हुआ है। बहुत समझाने के बावजूद वे टीके लगवाने को तैयार नहीं हो रहे। यह एक समस्या तो है ही, पर जो पहली खुराक ले चुके हैं, उनके बारे में यह नहीं माना जा सकता कि वे दूसरी खुराक को लेकर लापरवाही बरत रहे होंगे।
इससे यही जाहिर है कि टीकाकरण अभियान में पहली खुराक देने को लेकर जितनी तेजी दिखाई जा रही है, उतनी ही तत्परता शायद दूसरी खुराक को लेकर नहीं दिखाई जा रही। टीके और टीकाकरण केंद्रों की कमी भी अभी दूर नहीं हो पाई है। यह शिकायत बहुत सारे लोग करते मिल जाते हैं। कोविन ऐप पर दूसरी खुराक के लिए पंजीकरण करने जाएं, तो स्पष्ट लिखा मिलता है कि कोई टीकाकरण केंद्र उपलब्ध नहीं। यही वजह है कि पहली खुराक ले चुके बहुत सारे लोग दूसरी खुराक नहीं लगवा पा रहे।
सरकारें टीकाकरण अभियान में तेजी लाने के जो आंकड़े बढ़-चढ़ कर पेश कर रही हैं, वे दरअसल, पहली खुराक के हैं। शायद सरकारों ने मान लिया है कि टीकाकरण का मतलब पहली खुराक दे देना ही है। मगर इस तरह न तो टीकाकरण का मकसद पूरा हो पाएगा और न कोरोना से लड़ने में मदद मिल पाएगी। अभी अठारह साल से नीचे की उम्र के लोगों के लिए टीकाकरण शुरू ही नहीं हुआ है।
वह शुरू होगा, तो सरकारों के लिए चुनौती और बढ़ेगी। यों निजी अस्पतालों में भुगतान के आधार पर टीके उपलब्ध कराए गए हैं, मगर इसका लाभ वे लोग भला कैसे उठा पाएंगे, जिन्हें दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए भी खासी मशक्कत करनी पड़ती है। जब तक सरकार टीकों की उपलब्धता नहीं बढ़ाएगी, इस तरह आधे-अधूरे टीकाकरण का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
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