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अक्सर ऐसे मौके आते हैं, जब हमारे जन-प्रतिनिधियों का व्यवहार दुखी और शर्मसार कर जाता है
अक्सर ऐसे मौके आते हैं, जब हमारे जन-प्रतिनिधियों का व्यवहार दुखी और शर्मसार कर जाता है। दागी छवि वाले जन-प्रतिनिधियों की बढ़ती संख्या की तो बात ही छोड़ दीजिए। यह भी माना जाता है कि सदन में चुने जाने के बाद नेताओं का व्यवहार आदर्श हो जाएगा, लेकिन बहुधा निराशा ही हाथ लगती है। समाज और सदन को शर्मसार करने वाले जन-प्रतिनिधियों में एक नया नाम जुड़ गया है। कर्नाटक के विधायक रमेश कुमार ने एक तरह से बलात्कार के बचाव में बेहद शर्मनाक टिप्पणी की है। मंत्री रह चुके इस वरिष्ठ विधायक ने हंगामा होने के बाद माफी मांग ली है, लेकिन उनकी टिप्पणी ऐसी है कि विवाद जल्दी शांत नहीं होगा। अपराध को रोकना या रोकने में मदद करना सरकार और उससे जुड़े लोगों की जिम्मेदारी है, लेकिन अव्वल तो अपराध को नहीं रोक पाना और उसके बाद यह कहना कि किसी अपराध का आनंद लिया जाए, हर लिहाज से अक्षम्य है। हम भला कैसी विधायिका के दौर में जी रहे हैं? विधायक जब बोल रहे थे, तब पूरे सदन में ठहाके लग रहे थे। ऐसे में, आज हर जागरूक नागरिक स्वाभाविक ही रोष में है।
कांग्रेस नेता रमेश कुमार की ओर से की गई दुखद टिप्पणी को लेकर जहां उनकी पार्टी असहज है, वहीं भाजपा आक्रामक हो गई है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने शुक्रवार को यह मामला लोकसभा में उठा दिया। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस टिप्पणी को गलत बताया है और विधायक की माफी के बाद वह इस मामले को शांत देखना चाहते हैं। हालांकि, जो कांग्रेस लखीमपुर खीरी मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा की बर्खास्तगी की मांग कर रही है, उसके लिए कांग्रेस विधायक ने थोड़ी मुश्किल स्थिति बना दी है। वैसे अपने-अपने दागियों के बचाव की राजनीति नई नहीं है, लेकिन यह सिलसिला कहीं तो रुकना चाहिए। नैतिकता ही किसी को सच बोलने का साहस प्रदान करती है। ध्यान रहे, कर्नाटक विधानसभा में ही कुछ साल पहले अश्लील फिल्म देखने का आरोप तीन भाजपा विधायकों पर लगा था, उनमें से एक बाद में उप-मुख्यमंत्री भी बनाए गए। इसलिए अपने दागी को बचाना और दूसरे के दागी पर निशाना साधने की सियासत हमें उत्तरोतर पतन की ओर ही ले जा रही है। सपा सांसद जया बच्चन ने उचित कहा है कि पार्टी को दोषी विधायक पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि यह उदाहरण बने, जिससे वह ऐसा सोचें भी नहीं, सदन में बोलना तो दूर की बात है। जब सदन में ऐसे लोग बैठेंगे, तो जमीन पर स्थितियां कैसे सुधरेंगी?
दरअसल, हमारे समाज में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, जो महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार को लेकर ज्यादा गंभीर नहीं हैं। महिलाओं के खिलाफ अपराध निरंतर बढ़ रहा है। एनसीआरबी 2019 के अनुसार, अपने देश में प्रति 16 मिनट पर एक बलात्कार होता है, ससुराल में हर चार मिनट पर एक महिला के साथ निर्ममता होती है। नेताओं को तो चर्चा यह करनी चाहिए कि इस निर्ममता को कैसे खत्म किया जाए, लेकिन जब वह किसी न किसी बहाने से महिला विरोधी अपराध को सामान्य बताने की कुचेष्टा करते हैं, तो यह किसी अपराध से कम नहीं है। ऐसे हल्के नेताओं के वजूद पर अवश्य आंच आनी चाहिए, ताकि दुनिया को महिलाओं के अनुकूल बनाया जा सके।
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