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फिलीपींस को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें बेचने का सौदा होने के बाद भारत अब दुनिया के बड़े मिसाइल निर्यातक देशों में शामिल हो गया। रक्षा निर्यात के क्षेत्र में भारत की यह उपलब्धि मामूली नहीं है। हालांकि देश कई तरह के रक्षा सामान, उपकरण, हथियार और कलपुर्जों का निर्यात तो पहले से कर ही रहा है, पर मिसाइलें बेचने का सौदा पहली बार हुआ है। फिलीपींस के साथ हुआ यह करार रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने की दिशा में मील का पत्थर है।
यह इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि देश को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने कई बड़े नीतिगत फैसले किए हैं और हथियारों व रक्षा उपकरणों के देश में ही निर्माण यानी 'मेक इन इंडिया' पर जोर दिया है। फिलीपींस के साथ हुआ यह मिसाइल सौदा इसलिए भी अहम माना जा रहा है क्योंकि दूसरे एशियाई देश भी भारत से रक्षा सौदों में दिलचस्पी दिखा रहे हैं। थाईलैंड, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देश भी भारत से मिसाइलें खरीदने का संकेत दे चुके हैं। इन देशों को असल खतरा चीन से है। इसलिए अपनी सेना को अत्याधुनिक बनाना इनकी मजबूरी हो गई है। जाहिर है, भारत के लिए रक्षा सामान और मिसाइल जैसे हथियारों का कारोबार करने के लिए बड़ा बाजार सामने है।
पिछले सात साल में भारत का रक्षा निर्यात जिस तेजी से बढ़ा है, उससे साबित हो गया है कि अब हम इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ चले हैं। रक्षा क्षेत्र में भारतीय कंपनियों ने न केवल हथियारों, बल्कि सिम्युलेटर, टारपीडो प्रणाली, निगरानी और नियंत्रण प्रणाली, अंधेरे में देख सकने वाले उपकरण, बख्तरबंद वाहन, सुरक्षा वाहन, हथियार तलाशने वाले राडार, तटीय रडार प्रणाली जैसे उन्नत प्रणालियों का भी निर्यात किया है। यह भी कम बात नहीं है कि इस वक्त भारत सत्तर से ज्यादा देशों को रक्षा उत्पाद बेच रहा है।
आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलेगा कि 2014-15 में भारत का रक्षा निर्यात एक हजार नौ सौ चालीस करोड़ रुपए का था, जो 2017-18 में चार हजार छह सौ बयासी करोड़ रुपए का हो गया था और 2018-19 में यह दस हजार करोड़ रुपए को पार कर गया था। एक साल में पांच हजार करोड़ से ज्यादा के इस उछाल से उत्साहित होकर सरकार ने अगले पांच साल में पैंतीस हजार करोड़ रुपए सालाना के रक्षा निर्यात का लक्ष्य रखा। गौरतलब है कि सरकार आकाश मिलाइलों की बिक्री को भी मंजूरी दे चुकी है और कई आसियान देशों के अलावा बहरीन, केन्या, सऊदी अरब, मिस्र, अल्जीरिया और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश भी इस मिसाइल की खरीद में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।