सम्पादकीय

गोवा में नेता विहीन कांग्रेस को दलबदलुओं ने पहुंचाया नुकसान, AAP और टीएमसी ने मारी वोट शेयर में सेंध

Rani Sahu
12 March 2022 10:03 AM GMT
गोवा में नेता विहीन कांग्रेस को दलबदलुओं ने पहुंचाया नुकसान, AAP और टीएमसी ने मारी वोट शेयर में सेंध
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AAP और टीएमसी ने मारी वोट शेयर में सेंध

फ्रेड्रिक नोरोन्हा

गोवा विधानसभा चुनाव (Goa Assembly Election) में 40 में से 20 सीटें जीतने के बाद बीजेपी ने गुरुवार देर शाम पणजी में कहा कि उसने एमजीपी (MGP) के दो विधायकों का समर्थन हासिल कर लिया है. हालांकि एमजीपी ने तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ा था. बीजेपी ने कहा कि उसे तीन अन्य निर्दलीय विधायकों के समर्थन पत्र भी मिले हैं. "ब्रेकिंग न्यूज" और चीखती-चिल्लाती सुर्खियों के बीच अक्सर ख़बर के पीछे की कहानी कहीं दब जाती है.
अपने पिछले पांच साल के विधानसभा कार्यकाल के दौरान दलबदल से बर्बाद होने के बाद, गोवा की विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने वापसी का प्रयास किया. उसने सत्ताधारी पार्टी से मुकाबला किया मगर वह बड़े अंतर से पिछड़ गई. राज्य में चुनाव के अंतिम परिणाम कुछ इस तरह से रहे: बीजेपी -20, कांग्रेस-गोवा फॉरवर्ड -12, एमजीपी-टीएमसी – 02, आप – 02, आरजीपी – 01, निर्दलीय 03 है. कुल सीटें: 40.
गोवा के चुनावी नतीजे से तीन बातें सामने आती हैं
पहली बात, पिछले 14 चुनावों में से आठ में किसी भी पार्टी को साधारण बहुमत नहीं मिला है, इसलिए छोटे दल किंग-मेकर की भूमिका निभाते हैं. एक छोटे समूह द्वारा दलबदल से सरकारें अस्थिर हो सकती हैं. दूसरा, छोटे दल और निर्दलीय विधायक लगभग हर बार उसी का साथ देते हैं जो सत्ता में है. तीसरा, दिल्ली पर शासन करने वाली पार्टी का गोवा पर भी नियंत्रण होता है, अन्यथा यहां दलबदल होना लाजिमी है.
चुनाव आयोग के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक वोट शेयर इस प्रकार है- बीजेपी 33.31 फीसदी, कांग्रेस (INC) 23.46 फीसदी, गोवा फॉरवर्ड पार्टी 1.84 फीसदी, महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) 7.60 फीसदी, आप 6.77 फीसदी, तृणमूल कांग्रेस 5.21 फीसदी, राकांपा 1.14 फीसदी, नोटा 1.12 फीसदी, शिवसेना 0.18 फीसदी और अन्य 19.37 फीसदी. अन्य मुख्य रूप से निर्दलीय और रिवोल्यूशनरी गोवा हैं, जिन्होंने सालसेटे तालुका में कांग्रेस के अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंधमारी की है. तटीय दक्षिण गोवा के सालसेटे के अल्पसंख्यक निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस का मजबूत आधार रहा है. 2012 की तरह इस बार भी बीजेपी ने कांग्रेस क इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण सीटों से वंचित करने की रणनीति बनाई थी. जबकि कांग्रेस को अपने ही विद्रोहियों और असंतुष्टों से मिली चुनौती से निपटना था.
पुर्तगाली शासन की समाप्ति के बाद गोवा 1961 में भारत में शामिल हो गया. गोवा की स्थानीय राजनीति में क्षेत्रीय बहुजन समाज आधारित हिंदूवादी एमजीपी का प्रभुत्व 1963 के अंत से 1979 के प्रारंभ तक देखा गया. फिर 1980 के दशक में और 1990 के दशक के दौरान राजनीति में कांग्रेस का वर्चस्व रहा. 1990 के दशक में दलबदल के मामलों में तेजी देखी गई, खासतौर पर जब कुछ गैर-कांग्रेसी सरकारें दिल्ली में सत्ता में थी. कांग्रेस 2005 से 2012 के बीच सत्ता में थी. इसे छोड़ दिया जाए तो 1999 से मनोहर पर्रिकर के नेतृत्व वाली बीजेपी गोवा की राजनीति पर हावी है.
चुनाव से कुछ समय पहले कांग्रेस को नेतृत्वहीन छोड़ दिया गया था
गोवा में राजनेता अपनी पार्टी की वफादारी को लेकर चंचल होते हैं. उनकी वफ़ादारी का कोई ठिकाना नहीं होता. इसलिए परिणामों को लेकर बहुत कुछ कहना जल्दबाजी हो सकती है. लेकिन बीजेपी अपने पारंपरिक वोट शेयर को अधिक सीटों में तब्दील करने में कामयाब रही, जिसका श्रेय मुख्य रूप से विभाजित विपक्ष को जाता है. कुछ इसे बीजेपी की रणनीति का हिस्सा मान रहे हैं.
गोवा विधानसभा में आम आदमी पार्टी (AAP) की एंट्री को अहम माना जा रहा है. 2012 से लगातार यहां संघर्ष करने के बाद पहली बार केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी ने अपनी छाप छोड़ी है. हालांकि 2017 में भी पार्टी को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी, लेकिन वह एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही. टीएमसी भारी रकम खर्च करने और कुछ वोट शेयर का दावा करने के बावजूद विधानसभा में प्रवेश नहीं कर सकी है. एक ही समय में दो क्षेत्रीय दलों की ताकत घटने लगी. 1960 और 1970 के दशक में गोवा पर करीब डेढ़ दशक तक शासन करने वाली महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (MGP) और 2017 में किंगमेकर की भूमिका निभाने वाले विजय सरदेसाई के नेतृत्व वाली गोवा फॉरवर्ड पार्टी का पॉलिटिकल ग्राफ नीचे खिसकने लगा.
चुनाव से कुछ समय पहले कांग्रेस को नेतृत्वहीन छोड़ दिया गया था. उसके कई विधायकों ने पार्टी छोड़ दिया और उनमें से ज्यादातर ने बीजेपी का दामन थाम लिया. पार्टी की छवि चमकाने की बात कहते हुए कांग्रेस ने प्रतिकूल परिस्थितियों से अवसर बनाने की कोशिश की. उसने बागी नेताओं को पार्टी में वापस लेने से इनकार कर दिया. इस रणनीति से उसकी छवि को मदद मिलती दिख रही थी, लेकिन उसके एक वरिष्ठ विधायक रेजिनाल्ड लौरेंको (Reginald Lourenco) ने टीएमसी में शामिल होने के लिए पार्टी छोड़ दी. उन्होंने पार्टी में वापस लौटने की बात कही तो उन्हें फटकार लगाई गई. कर्टोरिम से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीतने के बाद वे बीजेपी का समर्थन करने के लिए उत्सुक हैं.
गोवा में बीजेपी के लिए कई चुनौतियां हैं
बीजेपी के दो उपमुख्यमंत्री ('बाबू' अज़गांवकर और 'बाबू' कावलेकर) चुनाव हार गए हैं. इसी तरह मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने संक्वेलिम क्षेत्र से चुनाव जीता, लेकिन जीता का अंतर महज 666 वोटों का था. इस बात पर हैरानी जताते हुए उन्होंने इसकी जांच करने सुझाव दिया था. यहां तक कि शुरुआती संदेह पार्टी में विभाजन की ओर इशारा कर रहे थे. कई पूर्व कांग्रेसी नेताओं को शामिल करने बाद बीजेपी में महत्वाकांक्षी नेताओं की कमी नहीं है.
बीजेपी ने अपने सहयोगी से विरोधी बने एमजीपी (2 विधायक) और तीन निर्दलीय विधायकों का समर्थन हासिल करने की शीघ्रता दिखाई. 40 सीटों वाली गोवा विधानसभा में उसे अपने दम पर ठीक आधी संख्या का समर्थन प्राप्त है. पार्टी का एक सदस्य अध्यक्ष पद पर आसीन होगा, इसलिए उसे संख्या बढ़ाने की जरुरत है. लेकिन मुट्ठी भर विधायकों ने एमजीपी का समर्थन लेने के खिलाफ आवाज उठाई. विरोध के स्वर विशेष रूप से मध्य गोवा के पोंडा के आसपास से उठे, जहां बीजेपी और एमजीपी दोनों पार्टियों के बीच कड़ा मुकाबला था.
आर्थिक मोर्चे पर जारी अस्थिरता को देखते हुए भारत में प्रति व्यक्ति सबसे अधिक आय वाले राज्यों में से एक गोवा में बीजेपी के लिए कई चुनौतियां हैं. उसे माइनिंग सेक्टर को पुनर्जीवित करना है जो पिछले एक दशक में बहुत अधिक समय से बंद है. बीजेपी को पर्यावरण की दृष्टि से उचित परियोजनाओं को चालू करने लिए काम करना होगा. कोविड महामारी की दूसरी लहर के दौरान हुई लापरवाही के बाद पार्टी को चारों तरह से आलोचना झेलनी पड़ी. हालांकि जब तक राष्ट्रीय राजधानी में बीजेपी पार्टी का शासन है, तब तक असंतोष पैदा होने या बरक़रार रहने की संभावना नहीं है. छोटे से गोवा में बीजेपी को बड़ी-बड़ी महत्वाकांक्षाओं से उसे ठीक उसी धारणा के साथ निपटना होगा जैसे वह भारत के सबसे रंगीन और विविध राज्यों में एक में अब तक इनका सामना करती आई है.
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