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- गहराता संकट
अफगानिस्तान फिर से गंभीर संकट में है। अमेरिकी फौज की वापसी के साथ ही तालिबान राज की वापसी होने लगी है। तालिबान ने आक्रामक रुख अपनाते हुए मुल्क पर कब्जे की जंग छेड़ दी है। दावा है कि देश के चार सौ इक्कीस जिलों में से डेढ़ सौ से अधिक जिलों पर इसका नियंत्रण हो चुका है। जैसे जैसे तालिबान लड़ाके आगे बढ़ रहे हैं, अफगान सैनिक पहले ही हथियार डाल दे रहे हैं। अफगान सेना के कई सैनिक तो जान बचाने के लिए पड़ोसी देश ताजिकिस्तान में भाग गए। इससे सहज ही यह अंदाजा लग जाता है कि अफगान बलों की स्थिति कमजोर पड़ चुकी है। वे तालिबान लड़ाकों का सामना करने से हार चुके हैं। यह बड़े खतरे का संकेत है। अगर तालिबान इसी तरह लड़ता हुआ देश के दूसरे हिस्सों पर कब्जा जमाने में कामयाब हो गया तो देश फिर से आदिम युग में चला जाएगा।
सच तो यह है कि अफगानिस्तान आज युद्ध के जिस दलदल में फंसा है, उसके मूल में अमेरिकी नीतियां हैं। पहले तो वर्षों तक यह मुल्क रूस और अमेरिका की जंग का अखाड़ा बना रहा। फिर सितंबर 2001 में न्यूयार्क और वाशिंगटन में अलकायदा के आतंकी हमलों के बाद अमेरिका ने तालिबान और अलकायदा को मिटाने के लिए अफगानिस्तान में डेरा जमाया। जबकि तालिबान और अलकायदा को खड़ा करने में अमेरिका की ही भूमिका रही है! अमेरिका यह भी समझ चुका है कि उसका जो हश्र वियतनाम और इराक में हुआ, वही अफगानिस्तान में हो रहा है। इसलिए यहां से निकल लेने में ही भलाई है। दो दशक में अफगानिस्तान में हजारों की संख्या में अमेरिकी और नाटो सैनिक मारे गए। अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी इसका असर पड़ रहा था। इसलिए अमेरिका अफगानिस्तान को अपने हाल पर छोड़ कर चल दिया। आज अमेरिकी फौज के बिना अफगान बल एक तरह से निहत्थे हैं। इसालिए अब तालिबान के लिए अफगानिस्तान पर कब्जा करना आसान हो गया है।
तालिबान की ताकत के पीछे पाकिस्तान है, यह किसी से छिपा नहीं है। पाकिस्तान उसे फिर से सत्ता में पहुंचाने में लगा है। इसके लिए वह लड़ाकों की फौज खड़ी कर रहा है जो अफगान बलों से लड़ने में तालिबान का साथ देगी। पिछले दिनों तालिबान ने अफगानिस्तान के कई शहरों में आत्मघाती हमले भी किए, ताकि लोग दहशत में आ जाएं और घरों से निकलना बंद कर दें। उसने अपने कब्जे वाले इलाकों में फिर से तालिबानी कानून लागू कर दिए हैं। महिलाओं का घर से निकलना बंद है। पुरुषों को लंबी दाड़ी रखवाई जा रही है। शिक्षण संस्थानों पर ताले लग गए हैं। महंगाई बढ़ने लगी है। सरकारी इमारतें ढहाई जा रही हैं। हजारों अफगान नागरिक दूसरे देशों में पनाह लेने की जुगाड़ में है।
ये हालात अफगानिस्तान के खौफनाक भविष्य की तस्वीर बताने के लिए काफी हैं। अब अफगानिस्तान में खून-खराबा और बढ़ेगा। निर्वाचित सरकार भी आसानी से सत्ता नहीं छोड़ने वाली। ऐसे में सरकारी सुरक्षा बलों और तालिबान लड़ाकों के खूनी संघर्ष को कौन रोक सकता है! सच्चाई तो यह है कि अमेरिका, पाकिस्तान जैसे देशों ने ही अफगानिस्तान को युद्ध की आग में झोंका है। किसी के लिए शांति वातार्ओं का कोई मतलब नहीं रह गया है। अफगानिस्तान के ये हालात भारत के लिए भी परेशानी पैदा कर रहे हैं। वहां कई भारतीय परियोजनाएं चल रही हैं। भारत ने तालिबान की सत्ता को पहले भी समर्थन नहीं दिया था। ऐसे में अगर अब फिर से वहां तालिबानी शासन आ गया तो यह भारत के लिए भी कम बड़ा संकट नहीं होगा।