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ईरान के परमाणु कार्यक्रम के शीर्ष वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की हत्या ने पश्चिम एशिया को एक और गंभीर संकट में धकेल दिया है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ईरान के परमाणु कार्यक्रम के शीर्ष वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की हत्या ने पश्चिम एशिया को एक और गंभीर संकट में धकेल दिया है। इस हत्या के पीछे के कौन है, अभी इस बारे में ईरान ने स्पष्ट रूप से किसी का नाम नहीं लिया है, लेकिन उसका इशारा इजराइल की ओर ही है। जाहिर है, ईरान और इजराइल के बीच अब टकराव की आशंकाएं गहराती जा रही हैं।
ईरान किसी भी सूरत में चुप नहीं बैठने वाला। उसने खुल कर चेतावनी दे डाली है कि जिसने भी फखरीजादेह को मारा है, उसे इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। ऐसे में अब क्या होगा, कोई नहीं जानता। पिछले कुछ समय से ईरान के सैन्य और परमाणु कार्यक्रम से जुड़े शीर्ष लोगों के खात्मे का जो सिलसिला चला है, वह ईरान को कमजोर करने की पश्चिमी रणनीति का हिस्सा है।
लेकिन सवाल है कि क्या महत्त्वपूर्ण लोगों की हत्याओं से ईरान को झुकाया जा सकेगा? क्या इन हत्याओं से उसका मनोबल तोड़ा जा सकता है? इस साल के शुरू में अमेरिका ने ईरान की कुद्स आर्मी के प्रमुख कासिम सुलेमानी की इराक में हत्या करवा दी थी। अब परमाणु वैज्ञानिक फखरीजादेह को निशाना बनाया गया। लंबे समय से ईरान जिस दमखम के साथ अमेरिका और इजराइल जैसे देशों से लोहा ले रहा है, उसमें उसकी ताकत को कम करके आंकना भारी भूल होगी।
पिछले कई वर्षों से ईरान का परमाणु कार्यक्रम अमेरिका सहित कई देशों के लिए किरकिरी बना हुआ है। संयुक्त राष्ट्र से लेकर अमेरिका सहित उसके कई सहयोगी देशों ने ईरान पर प्रतिबंध थोप रखे हैं। ईरान शिया बहुल देश है, इसलिए भी वह अरब जगत के सुन्नी बहुल देशों के निशाने पर है। इजराइल से उसकी पुरानी शत्रुता छिपी नहीं है।
ईरान को घेरने के पीछे अमेरिका का असल मकसद उसके तेल पर कब्जा करने और पश्चिम एशिया में अपना दबदबा बढ़ाना है। इसीलिए वह परमाणु हथियारों के निर्माण को आड़ बना कर ईरान के खिलाफ सालों से अभियान चला रहा है। अमेरिका की यह मुहिम ठीक वैसी ही है, जो उसने इराक के खिलाफ चलाई थी और उस पर जैविक व रासायनिक हथियार बनाने का आरोप लगाते हुए मित्र देशों की सेनाओं के सहयोग से हमला कर दिया था। लेकिन इराक में ऐसे महाविनाशक हथियारों का नामोनिशान तक नहीं पाया गया। बाद में अमेरिका ने इसे अपनी गलती बताते हुए हाथ झाड़ लिए। इसका खमियाजा इराक आज तक भुगत रहा है।
लेकिन ईरान इराक नहीं है। अपने पर हुए हर हमले का माकूल जवाब देकर उसने अपनी ताकत का अहसास कराया है। उसके पास यूरेनियम संवर्धन और परमाणु हथियार बनाने की तकनीक है। रूस और चीन जैसी अमेरिका विरोधी महाशक्तियों का उसे पुरजोर समर्थन है। अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ईरान को लेकर पहले ही नरम रुख बरतने और परमाणु समझौता बहाल करने का संकेत दे चुके हैं।
इससे इजराइल चिढ़ा हुआ है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी ईरान को लेकर बाइडेन के लिए मुश्किलें बढ़ाने में लगे हैं। अगर ईरान ने इजराइल पर अभी बड़ी कार्रवाई की तो ट्रंप को उस पर हमला करने
का बहाना मिल जाएगा और इससे बाइडेन की ईरान नीति को धक्का लगेगा। ईरान में इस वक्त उपजा गुस्सा बता रहा है कि वह फखरीजादेह के बलिदान को शायद व्यर्थ नहीं जाने देगा। साल 2010 से 2012 के बीच भी ईरान के चार परमाणु वैज्ञानिकों को मार डाला गया था। इसमें कोई संदेह नहीं कि फखरीजादेह की हत्या से ईरान को धक्का तो लगा है, लेकिन इसके डर से वह अपना परमाणु कार्यक्रम छोड़ने वाला नहीं। यह संदेश वह दे चुका है।
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