- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- दीपावली: मन में जो...
गिरीश्वर मिश्र। रावण को हम लोग सभी तरह की बुराइयों का प्रतीक मानते हैं। नकारात्मक और जीवनद्रोही प्रवृत्तियां रूपी इस रावण को हटाकर ही रामराज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त होता है। राम सात्विक और जीवनोन्मुखी प्रवृत्तियों को रूपायित करते हैं। वह लोक-कल्याण के प्रति अनन्य भाव से समर्पित हैं। स्नेह, दया और सौहार्द को स्थापित करते हुए वह लोगों को दैहिक, दैविक और भौतिक हर तरह के तापों से मुक्त करते हैं। परंपरा के अनुसार दीपावली का उत्सव इसी प्रकाशमय उदात्त राम-भाव का लोक द्वारा अभिनंदन है। प्रकाश जीवन तत्व का स्नोत होता है। उसी से दृश्य जगत उपलब्ध होकर दृष्टिगोचर होता है। इसके विपरीत अंधकार को नरक कहा जाता है। अंधकार में कुछ दिखता-सूझता नहीं है। चलने में ठोकर लग जाती है और जीवन में व्यवधान आने लगते हैं। ऐसे में जीवन के लक्ष्य ओझल होने लगते हैं और पथभ्रष्ट होने की आशंका बढ़ जाती है। प्रकाश और अंधकार दोनों एक-दूसरे के विरुद्ध रहते हैं। प्रकाश आते ही अंधकार भाग खड़ा होता है। इसलिए प्रकाश की वंदना की जाती है।