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- जलवायु परिवर्तन की...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हालत बनने या जल की कमी की समस्या लगभग हर शहर में है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स के के मुताबिक शहर जलवायु के लिहाज से बड़े परिवर्तनों का सामना कर रहे हैं। एक साल बाढ़ आती है, तो दूसरे साल पानी की कमी हो जाती है। यह इंस्टीट्यूट भारत के आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय की एक खास परियोजना में मदद कर रहा है। इस परियोजना के तहत त शहरों को तेज गति वाले इंटरनेट और बढ़िया परिवहन तंत्र से लैस कर आधुनिक बनाया जाना है।
इसमें देश के 139 शहरों को परियोजनाओं की योजना बनाते समय जलवायु के परिवर्तन जोखिम का सामना करने के लिए तैयार किया जाएगा। सरकार के मुताबिक इसमें तूफान, बाढ़, लू, पानी की कमी और सूखे जैसी स्थिति की बढ़ती घटनाओं के लिए तैयारी की जाएगी। शहर अपने जल प्रबंधन, कचरा और परिवहन को नई योजना में शामिल करेंगे।
ऐसी परियोजनाएं बनाई जाएंगी जिससे कि शहर में पैदल चलने की जगह हो और वहां की हवा सांस लेने लायक रहे। शहर के योजनाकारों और निगम अधिकारियों की इन योजनाओं को लेकर वर्चुअल ट्रेनिंग भी शुरू की गई है। पहल अच्छी है, लेकिन समस्या काफी गंभीर है। हकीकत यही है कि भारत के शहरों के लिए जलवायु के खतरे के कारण संकट बढ़ता जा रहा है।
पिछले साल देश ने सामान्य से ज्यादा लंबी गर्मी देखी, 25 साल की सबसे ज्यादा बरसात देखी और इसके साथ ही रिकॉर्ड संख्या में तूफान और ठंडी हवाओं का प्रकोप झेला। संयुक्त राष्ट्र की आपदा जोखिम एजेंसी के मुताबिक भारत दुनिया के उन दस देशों में है, जहां आपदा के कारण सबसे ज्यादा लोगों की मौत हुई है।
इस एजेंसी के मुताबिक 1996 से 2015 के बीच करीब भारत के 98,000 लोगों ने अलग-अलग आपदाओं में जान गंवाई। इसी दौर में आपदा के कारण हुआ आर्थिक नुकसान भी कुल मिला कर 80 अरब डॉलर था। एक समस्या यह भी है कि शहरों का बेतरतीब विकास आसपास की कृषि भूमि को निगलता जा रहा है।
झीलों को भर कर उनमें इमारतें खड़ी की जा रही हैं और समुद्र को भरकर बनाई जगहों पर सड़कें निर्मित हो रही हैं। मकसद यह है कि बढ़ती आबादी, उद्योग और ज्यादा ट्रैफिक के लिए को स्थान मिल सके। लेकिन ऐसे कदमों ने शहरों को जलवायु के बढ़ते खतरों के ज्यादा करीब ला दिया है।