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इस रविवार को आईपीएल के एक मैच में कुछ अजीब हुआ
एन. रघुरामन
इस रविवार को आईपीएल के एक मैच में कुछ अजीब हुआ। राजस्थान रॉयल्स के स्पिनर रविचंद्रन अश्विन बिना आउट हुए या मैच खत्म हुए अथवा चोटिल हुए बिना ही पैवेलियन लौटने वाले आईपीएल के पहले खिलाड़ी बन गए! जब अश्विन अचानक वापस आ गए, तो मेरे दिमाग में शाहरुख खान और उनकी 'चक दे इंडिया' फिल्म में कहे वो चंद स्वर्णिम शब्द याद आए। फिल्म का खेल के क्षेत्र में सांस्कृतिक रूप से बहुत असर हुआ था।
एसआरके का प्रसिद्ध डायलॉग याद करें, जहां वे कहते हैं, 'इस टीम को सिर्फ वो प्लेयर्स चाहिए, जो पहले इंडिया के लिए खेल रहे हैं, फिर अपनी टीम में अपने साथियों के लिए, और उसके बाद भी अगर थोड़ी बहुत जान बच गई तो अपने लिए...स्टेट गवनर्मेंट की नौकरी या रेलवे फ्लैट के लिए नहीं?' आईपीएल के इतिहास में यह पहला 'रिटायर्ट आउट' है।
अश्विन छठवें क्रम पर बल्लेबाजी कर रहे थे और जब 19वें ओवर में उनका निजी स्कोर 28 और टीम का स्कोर 135 रन था, तभी उन्होंने शिमरोन हेटमायर के साथ रनों को गति देने के लिए न्यूकमर रियान पराग को मौका दिया। और फिर रियान ने 4 गेंदों पर 8 रन बना दिए। हालांकि कुछ लोग इसे अजीब कदम मानेंगे, पर यह नियमों के अंतर्गत है और आखिर में 3 रन के कम अंतर से टीम जीत गई!
टीम इंडिया के पूर्व मैनेजर सुनील सुब्रमण्यम, जो इत्तेफाक से अश्विन के बचपन में कोच भी रहे हैं, उनका मानना है कि स्कोर में तेजी लाने के लिए किसी न्यूकमर को मौका देना विशुद्ध रूप से एक रणनीतिक फैसला था। क्रिकेट के नियमों में धारा 25.4.1 के अंतर्गत रिटायर आउट की अनुमति है, जहां बल्लेबाज गेंद पूरी होने के बाद इनिंग के बीच में कभी भी रिटायर हो सकता है।
खेल आगे बढ़ने से पहले अंपायर को बल्लेबाज के रिटायर होने का सही कारण बताना पड़ता है। दुर्भाग्य से ये नियम कभी इस्तेमाल नहीं हुआ क्योंकि खिलाड़ियों को लगता है कि पिच पर लंबा टिके होने से वे बेहतर स्कोर कर सकते हैं। पर यहां अश्विन ने 23 गेंदों पर 28 रन बनाए थे, तब भी वह चाहते थे कि कोई आए और उनसे बेहतर हिट कर सके और इससे टीम की जीत पर फर्क पड़ा।
टीवी पर मैच देख रहे अश्विन के पिता भी उनके इस कदम से चकित थे। हालांकि कमेंट्री सुनने के बाद उन्हें अहसास हुआ कि अश्विन ने टीम की खातिर अपने विकेट से समझौता करने का निर्णय लिया होगा। आप तब तक नहीं जीतते, जब तक कि बार-बार, लगातार अपने एटिट्यूड को जीतने और जीत की तैयारी के लिए तैयार नहीं करते। अपने संस्थान के लिए कोई कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने या बिक्री का कोई लक्ष्य पाने के लिए, कभी-कभी आपको अपने पद से समझौता करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
और जीवन में जीतने से पहले जीत की तैयारी ज्यादा जरूरी है। 'क्या आप जीतेंगे?' ये सवाल खुद से या दूसरों से पूछने से पहले पूछें कि 'क्या आप वह करने के लिए तैयार हैं जो जीत के लिए जरूरी है?' याद रखें संस्थाएं हमेशा विभिन्न चक्रों से गुजरती हैं जैसे बिक्री-मुनाफे में कमी और अन्य छोटे-बड़े संकट। और उतार-चढ़ाव के उस दौर में आपको व्यक्तिगत तौर पर कभी कवच नहीं मिलता।
कहीं न कहीं आप भी प्रभावित होंगे और यह केवल साल के अंत में ज्यादा दिख सकता है जब वेतन वृद्धि और पदोन्नति पर चर्चा होती है। संस्थान में स्ट्रक्चर के स्तर पर जरा भी कमी देखें, तो नजरअंदाज न करें, क्योंकि एक मैच जीतने के लिए आपको सिर्फ तीन रन की जरूरत होती है!
फंडा यह है कि समर्पित कर्मचारी अपनी निजी उपलब्धियों से पहले संस्थान के लक्ष्यों को आगे रखते हैं, फिर चाहे कोई लुभावना-सा मार्केटिंग का लक्ष्य हो या किसी खेल में शतक जड़ना हो।

Rani Sahu
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