सम्पादकीय

समर्पित, पीडि़त लब्धप्रतिष्ठित

Gulabi
25 Aug 2021 5:50 AM GMT
समर्पित, पीडि़त लब्धप्रतिष्ठित
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एक उम्दा किस्म के राइटरबाज हैं, राइटरखाज हैं

divyahimachal .

एक उम्दा किस्म के राइटरबाज हैं, राइटरखाज हैं। राइटरराज होने के नाते उनमें वे सभी अवगुण मौजूद हैं जो सी ग्रेड राइटर से लेकर लब्ध प्रतिष्ठित राइटर में किसी न किसी बहाने मौजूद रहते हैं और समय आने पर अपना रंग दिखा ही देते हैं। उनमें बस एक ही ऐसा गुण है जो उन्हें दूसरे राइटरों से कहने को ही सही जुदा करता है, और वह गुण यह है कि वे अघोर पत्नी प्रेमी हैं। पत्नी के डर के मारे या…ये वही बता सकते हैं, सच कहें तो? दूसरे तो कवेल अटकलें ही लगा सकते हैं। वैसे बीवी का डर जो शेर के दिमाग में भी एक बार बैठ जाए तो वह दहाड़ मारने के बदले हंसते हुए हू हू ही करता है। हो सकता है उन्हें राइटर पत्नी ने ही बनाया हो। या कि पत्नी की प्रताडऩाओं से ही उनके भीतर का पति मरने के बाद राइटर के रूप में जन्मा हो? हर भाषा के, हर विधा का राइटर, रीडर बीवियों की प्रताडऩा से परेशान होकर ही जीव बनता है। अगर वह पत्नी प्रेमिका का समय रहते सही प्रेम पा जाए तो वह कलम की ओर देखे भी नहीं, किताब की ओर देखे भी नहीं। पत्नी की बेरुखी ही जीव को पढऩे, लिखने को मजबूर करती है। पत्नी प्रेमी पीडि़त राइटर होने के नाते उनकी हर रचना में उनकी बीवी प्रधान होती है। वे अपनी हर रचना बीवी को प्रधान न रखें तो दूसरे ही पल घर निकाला हो जाए। उनकी रचना सारी की सारी उनकी पत्नी के इर्द गिर्द घूमती है। जो रचना न भी उनकी श्रीमती के इर्द गिर्द घूमे तो भी उन्हें अपनी उसे पुचकार कर, जैसे तैसे मनाकर अपनी पत्नी के इर्द गिर्द ही घुमाना पड़ता है।
न घुमाएं तो उनकी बीवी उनको घुमा कर रख देती है। कल वे मेरे पास आए। अपनी ताजा छपी किताब को लेकर। मुझे किताब देने के बदले मेरी एक किताब उठाते बोले, 'यार! बधाई दो अपनी गली के राइटर को।' 'किस बात की? क्या उसने अनाप शनाप लिखना छोड़ दिया?' मैंने अंधेरे में उनकी ओर तीर मारा। 'कमाल है यार! यहां मेरा पाठक वर्ग यमलोक तक पसर गया है और एक तुम हो कि मुझे न लिखने की प्रेरणा दे रहे हो? देखो, मेरी बासी रचनाओं की ताजा किताब प्रकाशित होकर आई है', कह उन्होंने दूर से ही अपनी किताब मेरी ओर कर हवा में लहराई तो मैंने दूर से उन्हें उसका कवर पेज देखते पूछा, 'पर ये क्या? किताब के कवर पेज पर भाभीजी की जवानी के दिनों की तस्वीर?' उसे देख कर ही पता चला कि भाभीजी जवानी के दिनों में ऐसी थीं। तब मेरे सकारात्मक एक्शन पर वे रीएक्शन देते बोले, 'तो क्या हो गया! मेरी बीवी अपने खौफ के चलते मेरे रोम रोम में विराजमान है। वह न होती तो मैं राइटर न होता। हर किस्म के राइटर को जिंदगी में कुछ होना चाहिए या न, पर कम से कम आदर्शवादी पति जरूर होना चाहिए, जो वह विवाहित हो तो।' उन्होंने अपना अतीत भूला अजीब सी दलील दी जो माशा भर भी हजम न हुई। मैंने उनकी किताब खोली। किताब खोली तो भीतर समर्पण भाभीजी को- प्रिय, आदरणीय, परमादरणीय सहयात्री के चरणों में सादर समर्पित! उनकी किताब के पन्ने खोलता उनकी किताब में डरते डरते घुसने लगा तो पहली रचना में भाभीजी। दूसरी रचना में बीवीजी ! किताब बंद कर राइटर परिचय पर पहुंचा तो राइटर परिचय के नीचे भी भाभीजी का नाम तो चक्कर खा गया। अहा! जब बंधु भाभीजी के डर से कितना लिख लेते हैं तो अपने नाम से राम जाने कितना लिख लेते होंगे? इससे पहले कि मैं उनकी किताब में भाभीजी को और पाता, उन्होंने अपनी किताब मुझसे छीनते हुए से सादर ली और अपने घर की ओर सिर मुस्कुराए हो लिए।
अशोक गौतम
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