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पराली जलाने को डिक्रिमिनलाइज़ करना विलंबित न्याय है
संयम श्रीवास्तव।
कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद अब केंद्र सरकार ने कहा है कि देश में पराली जलाना अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा. शनिवार को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने यह घोषणा करते हुए किसान संगठनों की कुछ बड़ी मांगों में से इस मांग को भी मान लिया. मालूम हो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 10 दिसंबर 2015 को फसल अवशेषों को जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया था और जो किसान पराली जलाते थे उन पर कानूनी कार्रवाई की जाती थी. पराली जलाते हुए पकड़े जाने पर 2 एकड़ भूमि तक 25,00 रुपए और 2 से 5 एकड़ भूमि तक 5,000 और 5 एकड़ से ज्यादा भूमि पर 15,000 रुपए का जुर्माना लगाया जाता था.
किसान आंदोलन के समय आंदोलित किसानों के कुछ मांगों में से एक मांग यह भी थी कि पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से बाहर रखा जाए. हालांकि सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य है, क्योंकि दिल्ली में जो वायु प्रदूषण होता है, उसमें पराली का योगदान महज़ 6 फ़ीसदी होता है. क्योंकि दिल्ली के वायु प्रदूषण में 27 फ़ीसदी हिस्सा इंडस्ट्री का है. 25 फ़ीसदी हिस्सा धूल का और 24 फ़ीसदी हिस्सा ट्रांसपोर्ट का है. दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए यह तीन चीजें सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं.
पराली जलाने से कितना प्रदूषण होता है
सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च की रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली में इस वक्त जितना वायु प्रदूषण है उसमें पराली का योगदान महज़ 6 फ़ीसदी है, इसलिए दिल्ली की जहरीली हवा के लिए सिर्फ किसानों द्वारा पराली जलाए जाने को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. हालांकि केंद्र सरकार की अगर रिपोर्ट देखें तो इस वर्ष 2020 के मुकाबले पराली जलाने की घटनाएं भी बेहद कम नजर आई हैं. दरअसल इसी साल 15 सितंबर से 1 नवंबर तक के बीच पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश में 20729 जगहों पर पराली जलाई गई. यह संख्या साल 2020 के मुकाबले लगभग 54.8 फ़ीसदी कम है. बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि जब केंद्र सरकार के रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि दिल्ली के प्रदूषण में पराली का योगदान 10 फ़ीसदी से भी कम है तो फिर इस मुद्दे को इतना क्यों उछाला जाता है. जबकि संस्थाओं और सरकारों को उन मुद्दों पर विशेष ध्यान देना चाहिए, जिससे दिल्ली की हवा ज्यादा जहरीली हो रही है.
पराली वाले मुद्दे का खूब राजनीतिकरण हुआ
पराली जलाने से जितना दिल्ली में प्रदूषण नहीं बढ़ा उससे ज्यादा पराली जलाने के मुद्दे का राजनीतिकरण हुआ. एक तरफ दिल्ली सरकार जहां दिल्ली में हो रहे वायु प्रदूषण का ठीकरा पराली पर फोड़ती थी, वहीं दूसरी ओर हरियाणा और पंजाब की राजनीतिक पार्टियां भी इस पर खूब सियासत करती थीं. किसान आंदोलन के दौरान भी इस मुद्दे को खूब भुनाया गया और इस पर जमकर सियासत की गई. पराली जलाने से प्रदूषण जरूर होता है, लेकिन वह इतना कम है कि दिल्ली में हो रहे वायु प्रदूषण के लिए पराली को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. अब जबकि केंद्र सरकार ने भी इस बात को मान लिया है कि पराली जलाने से उतना वायु प्रदूषण दिल्ली में नहीं होता है, जितना कि हो हल्ला मचाया गया, तो इस कदम की सराहना की जानी चाहिए. क्योंकि पंजाब और हरियाणा के किसान पराली जलाए जाने के अपराधीकरण से बहुत ज्यादा परेशान थे. अब उन्हें थोड़ी राहत मिलेगी.
पराली नहीं इन कारणों से होता है दिल्ली में सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण
बीते दिनों केंद्र सरकार ने प्रदूषण के कारणों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था. जिसमें केंद्र सरकार ने उन कारणों के बारे में बताया था जिसकी वजह से दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण बढ़ रहा है. केंद्र सरकार ने बताया कि पीएम 2.5 के कणों में सर्दियों में धूल से होने वाले प्रदूषण में सबसे बड़ा हिस्सा इंडस्ट्री का है जो 30 फ़ीसदी है. इसके बाद दिल्ली के प्रदूषण में 28 फ़ीसदी हिस्सा ट्रांसपोर्ट का है. जबकि 17 फ़ीसदी हिस्सा इंडस्ट्री का और 10 फ़ीसदी हिस्सा रेजिडेंशियल का है. वहीं अगर पीएम 10 कणों में प्रदूषण की बात करें तो इसमें 27 फ़ीसदी हिस्सा इंडस्ट्री का है. 25 फ़ीसदी हिस्सा धूल का और 24 फ़ीसदी हिस्सा ट्रांसपोर्ट का है. दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए यह तीन चीजें सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं.
दिल्ली की स्थिति खराब है
इस वक्त देश की राजधानी दिल्ली की स्थिति वायु प्रदूषण के मामले में बेहद गंभीर है. कम तापमान और धीमी हवाओं के कारण दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर शनिवार को गंभीर श्रेणी में रहा और इस दिन वायु गुणवत्ता सूचकांक 386 दर्ज किया गया. दिल्ली सरकार ने प्रदूषण को कम करने के लिए राजधानी में ट्रकों के प्रवेश पर 3 दिसंबर तक के लिए प्रतिबंध लगा दिया है. हालांकि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की वायु गुणवत्ता निगरानी एजेंसी सफर ने कहा है कि हवा की गति में तेजी आने के कारण 29 नवंबर से AQI में सुधार होने की उम्मीद है. शनिवार को दिल्ली की AQI जहां 386 रहा. वहीं फरीदाबाद में यह 423, गाजियाबाद में 378, ग्रेटर नोएडा में 386, गुड़गांव में 379 और नोएडा में 394 दर्ज की गई, जो खराब श्रेणी में आती है.
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