सम्पादकीय

सदन में मर्यादा

Subhi
17 March 2022 5:41 AM GMT
सदन में मर्यादा
x
मामला यह है कि बिहार विधानसभा में संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन कौन कर रहा है- मुख्यमंत्री या विधानसभा अध्यक्ष! सदन का संचालन का जिम्मा अध्यक्ष होता है। सदन में इनसे बड़ा कोई नहीं होता, चाहे वह मुख्यमंत्री ही क्यों न हो।

Written by जनसत्ता: मामला यह है कि बिहार विधानसभा में संवैधानिक मर्यादाओं का उल्लंघन कौन कर रहा है- मुख्यमंत्री या विधानसभा अध्यक्ष! सदन का संचालन का जिम्मा अध्यक्ष होता है। सदन में इनसे बड़ा कोई नहीं होता, चाहे वह मुख्यमंत्री ही क्यों न हो। बिहार विधानसभा में जिस तरह मुख्यमंत्री ने विधानसभा अध्यक्ष को सदन में आक्रामक मुद्रा में संबोधित किया, अगर कोई विपक्षी नेता ऐसा करता तो शायद निलंबित हो जाता।

लेकिन नीतीश अपनी ताकत का एहसास करवा रहे थे। सदन के अध्यक्ष के अपमान पर खुद उनकी चुप्पी भी कुछ कहती है। मुख्यमंत्री का राज्यपाल से मिलना संभवत: त्यागपत्र देने का अभ्यास था और भाजपा को संदेश भी। अगर विधानसभा अध्यक्ष का बयान सरकार की कानून-व्यवस्था पर ग्रहण लगाती है तो सरकार को उन्हें बदल देना चाहिए। वे विपक्ष को साथ लेकर अपने मन का सदन अध्यक्ष बना सकते हैं।

विधानसभा अध्यक्ष का काम विधानसभा की कार्रवाई को संचालित करना होता है। वह संविधान के नियमों के मुताबिक सदन संचालित करता है। जब वह खुद मौजूद नहीं होता है तो उपाध्यक्ष सदन संचालित करता है। सभी सदस्य स्पीकर का सम्मान करते हैं और उनकी हर बात ध्यान से सुनते हैं। वह अगली सरकार के बनने तक इस पद पर रहता है। उसे पद से हटाने के लिए सदन में प्रस्ताव लाना होता है। इसके लिए 14 दिन पूर्व नोटिस दिए जाने का नियम है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं होगा। अगर ऐसा हुआ तो मुख्यमंत्री भी शायद बदल जाएंगे।

हमारे यहां कभी गणपति की तो कभी विष्णु की मूर्तियां दूध पीने लगती हैं। हाल ही में नंदी ने पानी और दूध पीना शुरू कर दिया। यह हमारा देश ही है जहां सब कुछ संभव है। ऐसे तमाम मामले सामने आते रहते हैं, जहां हम जिंदा इंसानों को पानी तक नहीं पूछते हैं, मगर मूर्तियों पानी और दूध पिला कर पुण्य कमाना चाहते हैं। कहते हैं कि भारत चमत्कारों का देश है। ऐसे में यहां कभी भक्तों की आस्था प्रबल हो जाए तो सब कुछ संभव है।

लेकिन आज हमारी आस्था हमें कहां ले जा रही है, यह कल्पना करने की जरूरत हमें महसूस नहीं हो रही है, जबकि इसके नफा-नुकसान हमें ही उठाने हैं। आज हम इक्कीसवीं सदी में सांस ले रहे हैं, पर हमारी आस्था हमसे आज के समय में भी वह सब करवा लेती है, जो सच नहीं होता है।


Next Story