- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- गिरावट की मुद्रा
Written by जनसत्ता: विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में एक डालर की कीमत इक्यासी रुपए नौ पैसे आंकी गई, जो कि अब तक का सबसे निचला स्तर है। रुपए के अवमूल्यन के पीछे बड़ी वजह अमेरिकी फेडरल बैंक की ब्याज दरों में सख्ती, डालर का मजबूत होना और भारत में निवेशकों का भरोसा कमजोर होना माना जा रहा है। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए अपनी मौद्रिक नीति में सख्ती का रुख अपनाए हुए है, जिसका कुछ सकारात्मक परिणाम भी नजर आया है।
मगर रुपए की कीमत में गिरावट महंगाई से पार पाने और निवेश आकर्षित करने की दिशा में चुनौतियां पेश करेगी। भारत पेट्रोलियम पदार्थों और खाद्य तेलों के मामले में बड़े पैमाने पर दूसरे देशों पर निर्भर है।
जब रुपए का अवमूल्यन होता है तो वस्तुओं के आयात पर अधिक खर्च करना पड़ता है, जिसका अर्थ है कि उन वस्तुओं की कीमतें घरेलू बाजार में बढ़ जाती हैं। रुपए के अवमूल्यन से पार पाने के लिए आयात के मुकाबले निर्यात बढ़ाने की रणनीति अपनानी पड़ती है। मगर निर्यात के मामले में भारत अपेक्षित गति से नहीं बढ़ पा रहा।
भारत का चालू खाता घाटा पहले ही चिंताजनक स्तर पर है, रुपए के अवमूल्यन से इसके और बढ़ने की आशंका है। सकल घरेलू उत्पाद में औद्योगिक विकास दर की भागीदारी काफी नीचे चल रही है। सरकार उसे रफ्तार देने और निवेश आकर्षित करने के लिए करों में कटौती, कर्ज माफी, उद्योग-धंधे लगाने संबंधी नियम-कायदों और श्रम कानूनों को लचीला बनाने का प्रयास करती रही है।
मगर इसका असर नजर नहीं आ रहा। ऐसे में रुपए के अवमूल्यन से एक बार फिर कच्चे तेल की खरीद और अंतत: पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि होगी। इसका असर उद्योगों की लागत पर पड़ेगा। इससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी। अभी रिजर्व बैंक ने माना है कि अगर महंगाई छह फीसद तक रहती है, तो अर्थव्यवस्था में बेहतरी की उम्मीद बलवती होगी, मगर खुदरा महंगाई इस स्तर पर भी नहीं पहुंच पा रही।
आगे के दिनों में महंगाई पर काबू पाने की संभावना भी धुंधली बनी हुई है, क्योंकि इस बार बरसात पर निर्भर फसलों का उत्पादन लक्ष्य से काफी कम होने की उम्मीद जताई जा रही है। असमान वर्षा ने आगामी फसलों के लिए भी परेशानी पैदा कर दी है। ऐसे में रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं की कीमतों पर काबू पाना भी कठिन हो सकता है।
पहले ही सरकार कुछ जिन्सों के निर्यात पर रोक और कुछ पर आयात शुल्क घटा कर महंगाई को काबू में करने का प्रयास कर चुकी है। मगर यह तरीका लंबे समय तक नहीं आजमाया जा सकता।
सरकार दावा तो करती है कि कोरोना काल के बाद निर्यात में तेजी आई है और लक्ष्य से अधिक निर्यात हुआ है, मगर हकीकत सामने है कि रुपए का अवमूल्यन हो रहा है। इसे रोकने के लिए जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय उत्पाद के लिए अधिक से अधिक जगह घेरने का प्रयास किया जाए।