सम्पादकीय

पीएम मोदी की लोकप्रियता में गिरावट: क्या विपक्ष दे पाएगा चुनौती, कैसा है आगे का रास्ता?

Gulabi
8 Sep 2021 6:36 AM GMT
पीएम मोदी की लोकप्रियता में गिरावट: क्या विपक्ष दे पाएगा चुनौती, कैसा है आगे का रास्ता?
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पीएम मोदी की लोकप्रियता में गिरावट

नीरजा चौधरी।

सर्वेक्षण अक्सर गलत साबित होते हैं। लेकिन अक्सर वे व्यापक रुझान का संकेत देते हैं। हाल ही में आए दो सर्वेक्षणों ने चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। इंडिया टुडे के सर्वे, देश का मिजाज ने नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में गिरावट दिखाई है, जो कि 66 फीसदी से घटकर 24 फीसदी हो गई है। दूसरा सर्वे जिसे सी वोटर और अन्य ने किया, वह भी कम दिलचस्प नहीं है। उसका आकलन है कि गुटों में बंटी कांग्रेस को अगले साल की शुरुआत में पंजाब में होने वाले चुनाव में बेदखल कर आम आदमी पार्टी सत्ता में आ जाएगी। मोदी की लोकप्रियता में कमी विपक्षी एकता के लिए एक बड़ा अवसर होना चाहिए। पर ऐसा लगता तो नहीं है। निश्चित रूप से कांग्रेस के बिना ऐसा नहीं होगा, जो कि विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी है।

सारे विपक्षी नेता सहमत हैं कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता या नरेंद्र मोदी की भाजपा के विरुद्ध कोई वैकल्पिक गठजोड़ खड़ा नहीं हो सकता। मोदी ने 2024 की अपनी योजना पर पहले ही काम शुरू कर दिया है। वहीं कांग्रेस अपने नेतृत्व के संकट से नहीं उबर पा रही है। पार्टी में कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है, जबकि मोदी अपने दूसरे कार्यकाल का करीब आधा सफर तय कर चुके हैं और उनकी नजर तीसरे कार्यकाल पर है। कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष का प्रस्तावित चुनाव दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है। सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष हैं और सारे व्यावहारिक निर्णय गांधी भाई-बहन, राहुल और प्रियंका ले रहे हैं। ये निर्णय पार्टी मंच पर पर्याप्त बहस के बिना लिए जा रहे हैं और तदर्थ किस्म के हैं।
कांग्रेस ने पंजाब और छत्तीसगढ़ में जिस तरह का संकट पैदा किया है, उसे देखकर लगता है कि हाई कमान (गांधी परिवार) ने तय किया है कि वह पार्टी का नियंत्रण नहीं छोड़ेगा और न ही किसी अन्य को मौका देगा, चाहे वे एक राज्य की पार्टी के मुखिया रहें या दस राज्यों की पार्टी के। यदि कुछ भी न बदले, तब वे उस दिन का इंतजार करेंगे, जब जनता स्वतः ही उनके पक्ष में अपनी राय न बदल ले। अगर ऐसा नहीं होता, तो यह समझना बहुत मुश्किल है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा सार्वजनिक रूप से कमजोर और अपमानित क्यों किया गया, जो कि अगंभीर राजनेता हैं।
यदि कैप्टन से सिद्धू को नेतृत्व हस्तांतरित किए जाने की ही बात है, तो यह और बेहतर ढंग से हो सकता था। पंजाब के मामले को जिस तरह देखा गया, उससे कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं में कोई वृद्धि नहीं होगी। हालांकि दूसरा सर्वेक्षण पंजाब में आम आदमी पार्टी के दोबारा उभार के रूप में विपक्ष की नई संभावना का संकेत करता है। लेकिन वह यह भी दिखाता है कि पंजाब में चुनाव के बाद त्रिशंकु विधानसभा बन सकती है। 2017 में आप वहां करीब-करीब जीत ही गई थी। भाजपा ने उसकी राह में रोड़े अटकाए, जैसा कि अरुण जेटली ने एक बार खुलासा किया था, 'हमने आप को सत्ता में आने से रोकने के लिए अपने वोट कैप्टन को हस्तांतरित किए थे।'
पंजाब में आप की चुनौती ऐसे स्वीकार्य चेहरे की कमी है, जो पार्टी का नेतृत्व कर सके। आम आदमी पार्टी अभी दिल्ली तक ही सिमटी हुई है, जो कि पूर्ण राज्य भी नहीं है। अरविंद केजरीवाल ने एलान किया है कि उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और पंजाब के आने वाले चुनावों में हिस्सा लेगी। यदि वह सचमुच एक अन्य राज्य में जीत हासिल कर लेते हैं, तब वह एक बड़े खिलाड़ी बन जाएंगे। वैसे एक समय आप ने उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और उसके सहयोगियों के साथ गठबंधन की संभावनाएं भी तलाशी थीं। विपक्ष में अभी दो ही पार्टियां, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी हैं, जो आगे बढ़ने और लड़ने की इच्छा दिखा रही हैं। ये दोनों अभी एक-एक राज्य की पार्टियां हैं।
तृणमूल पश्चिम बंगाल में अपनी पकड़ और मजबूत कर रही है। मई में हुए चुनाव में उसे मिली शानदार जीत के बाद उससे छिटकर भाजपा में गए विधायकों की 'घर वापसी' का सिलसिला चल पड़ा है। चार विधायक वापस आ चुके हैं और बताया जाता है कि 24 कतार में हैं। आत्मविश्वास से भरी ममता आज भाजपा पर यह कहकर चुटकी ले सकती हैं कि उसे उनकी पारंपरिक सीट भवानीपुर से लड़ कर अपना पैसा बर्बाद करने की जरूरत नहीं है, जहां से वह फिर से चुनाव लड़ने जा रही हैं।
आप और तृणमूल, दोनों की नजर अन्य राज्यों पर भी है। ममता पूर्वोत्तर भारत में अपना आधार बढ़ाना चाहेंगी, जहां बंगालियों की ठीक-ठाक आबादी है। इन सारे राज्यों में लोकसभा की 25 सीटें हैं, जो कि किसी भी मध्यम आकार के राज्य के बराबर है। वह पहले ही त्रिपुरा में काम शुरू कर चुकी हैं, जहां 2023 में चुनाव होने हैं। ममता बनर्जी ने सुष्मिता देव को तृणमूल में शामिल कर एक मजबूत संदेश दिया है। सुष्मिता त्रिपुरा में तृणमूल के लिए मददगार हो सकती हैं, जहां से उनके पिता संतोष मोहन देव ने दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था। वैसे उनका परिवार असम के कछार जिले से आता है। सुष्मिता देव कभी राहुल गांधी की कोर टीम का हिस्सा थीं, लेकिन कांग्रेस के भीतर के कुछ अन्य नेताओं की तरह असम विधानसभा चुनाव के समय दरकिनार किए जाने के बाद उनका मोहभंग हो गया।
कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं को सुष्मिता ने राह दिखाई है कि यदि वे भाजपा में नहीं जाना चाहते, तो वे दीदी का हाथ थाम सकते हैं। यह भी गौर करें कि पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा तृणमूल कांग्रेस के उपाध्यक्ष हैं। पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह अक्सर कहते थे, 'साहस से ही करिश्मा पैदा होता है।' चूंकि ममता नरेंद्र मोदी को सीधे चुनौती देती हैं, बंगाल से बाहर के ऐसे लोग उनकी ओर आकर्षित हो सकते हैं, जिनका भाजपा से मोहभंग हो रहा है। ममता की कहानी बंगाल के तट से कितना आगे तक जाएगी, अभी यह तय नहीं किया जा सकता।
विपक्षी एकजुटता कैसा रूप लेती है, यह इस पर निर्भर है कि आने वाले महीनों में क्या कुछ घटता है। अबसे लेकर 2024 के बीच एक दर्जन राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। तस्वीर 2023 के अंत या 2024 की शुरुआत में ही साफ होगी। लेकिन विपक्षी दलों को अपना आख्यान बनाने, सड़क पर उतरने, जमीनी स्तर पर काम करने, अपने वोट आधार को मजबूत करने और गठबंधन बनाकर राज्यों में भाजपा का विकल्प बनाने से कोई चीज रोक नहीं रही है। पर आज पक्के तौर पर बस यही कहा जा सकता है कि विपक्ष अभी अनिश्चय की स्थिति में है और कांग्रेस निरंतर इन्कार की मुद्रा में।
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