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पारंपरिक कुश्ती लड़ने वाले पहलवानों व कुश्ती के शौकीन लाखों दर्शकों के लिए यह वर्ष सुकून भरा है। आखिर दो वर्ष तक कोरोना महामारी के कहर के बाद माटी के अखाड़ों में पहलवानों के दाव-पेंच तथा ढोल वादकों की ताल के साथ कुश्ती के दंगलों की रौनक लौट चुकी है। भारत में कुश्ती का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। हमारे मुकद्दस ग्रंथों में 'मल्लयुद्धों' का पर्याप्त जिक्र मिलता है। आधुनिक कुश्ती उन्हीं मल्लयुद्धों का स्वरूप है। हिमाचल प्रदेश में त्योहारों व पर्वों के अवसर पर पांरपरिक कुश्ती के दंगलों की रिवायत कई वर्षों से चली आ रही है। बिलासपुर जिला दशकों से पारंपरिक कुश्ती के पहलवानों व दंगलों का मुख्य केंद्र रहा है। जिला के राज्य स्तरीय नलवाड़ मेले में आयोजित होने वाला चार दिन का कुश्ती दंगल उत्तर भारत की सबसे बड़ी पारंपरिक कुश्ती प्रतियोगिताओं में शुमार करता है, जिसमें कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के पहलवान हिस्सा लेते हैं। लेकिन हमारे गांव-देहात की माटी का खेल कुश्ती बीते कुछ वर्षों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा मुकाम हासिल कर चुका है। हिमाचल में युवा पहलवानों के अलावा कई महिला पहलवान भी मिट्टी के दंगलों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाकर 'मैट' पर लड़ी जाने वाली फ्री स्टाईल कुश्ती में राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीत रही हैं। भावार्थ यह है कि प्रदेश की खेल प्रतिभाओं में खेल के प्रति जुनून व खेल हुनर की कमी नहीं है।
सोर्स- divyahimachal
