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By: divyahimachal
हिमाचल सरकार अपने वादों की फेहरिस्त से निकल कर अब यथार्थ के धरातल पर कर्मचारियों के साथ लोहड़ी मनाने जा रही है। विभागीय आबंटन व अधूरे मंत्रिमंडल विस्तार के बावजूद सुक्खू सरकार की अहम प्राथमिकताओं में शुमार ओपीएस पर मंत्रिमंडल की निर्णायक बैठक कल होने जा रही है। जाहिर तौर पर यह बैठक शपथ पत्र की तरह कर्मचारियों से ओपीएस और महिलाओं से पंद्रह सौ के भुगतान के वादे को पूरा करेगी। यह पहली ऐसी कसरत है जहां मौका, दस्तूर और दरियादिली का इजहार करती कांग्रेस सरकार सारे देश के सामने नजीर पेश करेगी। इस तरह लोहड़ी त्योहार में मंत्रिमंडल की रेवडिय़ां जब बंटेगी, तो सरकार का आगाज मीठा होगा। दूसरी ओर मंत्रिमंडल के पद और पदक पर अटकी राजनीतिक सांसों के लिए ऐसे ही त्योहार का इंतजार जारी है। मंत्री होने की काबिलीयत में हिमाचल का सियासी परिदृश्य भले ही अपेक्षाओं से भरा रहे, मगर सच यह भी है कि प्रदेश स्तरीय छवि में अधिकांश नेता अब तक अव्वल साबित होने से चूकते रहे हैं। हमें नहीं मालूम कि कल किस मंत्री के पास कौन सा विभाग होगा, लेकिन उम्मीद यह है कि सुक्खू मंत्रिमंडल अपनी छाप तय करे। हिमाचल के परिप्रेक्ष्य में जो विभाग अहम हो सकते हैं या जहां भविष्य तैयार होगा, उन्हें फिर से परखने की जरूरत है।
विडंबना यह भी रही कि हिमाचल का बजट अब खिलौना सरीखा होकर खेला जाता है यानी रिसते आर्थिक आधार पर अपनी वित्तीय विपन्नता का सौदागर बनकर सरकारों को करिश्मा दिखाना है, तो कुछ इमारतें, कुछ संस्थान और कुछ कार्यालय खोल दिए जाते हैं, वरना हिमाचल की हैसियत में ये नखरे उठाने की क्षमता कभी रही ही नहीं। बेशक सुक्खू सरकार ने ऐसी घोषणाओं को डिनोटिफाई करके राजनीतिक जवाबदेही की एक तरह से परख शुरू की है, लेकिन इस मुहिम को इसकी भावना में प्रकट करने के लिए कांटों भरा रास्ता तय करना होगा। एक खुशहाल उम्मीदों भरे और ऊर्जावान हिमाचल को कितने विभाग चाहिएं। प्राय: चर्चाओं में गिने चुने विभाग या बजटीय आबंटन में आगे रहने वाले विभागों को बड़ा माना जाता है, लेकिन प्रदेश के भविष्य के लिए शिक्षा, चिकित्सा, युवा एवं खेल, पर्यटन, वन, ग्रामीण व शहरी विकास मंत्रालय सीधा असर रखते हैं। ऐसे में सुक्खू सरकार में इन विभागों के प्रभारी मंत्री ऐसा बहुत कुछ कर सकते हैं, जो इससे पहले हुआ ही नहीं। पर्यटन की दृष्टि से हिमाचल केवल एक विभाग नहीं, बल्कि हर विभाग के केंद्र में ऐसी गतिशीलता है जो रोजगार व आर्थिक विकास को सुनिश्चित कर सकती है। पर्यटन के मायनों में पीडब्ल्यूडी, जलशक्ति, वन, विद्युत, ग्रामीण एवं शहरी विकास तथा भाषा-संस्कृति विभागों के दायित्व जोड़े जाएं, तो ही दिशा तय होगी, वरना कुछ सरकारी होटल बना कर संसाधन ठिकाने लगाए जा सकते हैं। कायदे से पर्यटन एवं उड्डयन विभाग मुख्यमंत्री के पास होना चाहिए और इसके तहत ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्ज को जिम्मेदारी सांैपी जा सकती है।
हिमाचल ने आज तक युवा एवं खेल विभाग को वांछित अहमियत नहीं दी। विभाग का ताल्लुक हर गांव से शहर तक ही नहीं, बल्कि हर युवा से छात्र तक है। शारीरिक फिटनेस और नशे की चुनौतियों को देखते हुए इस विभाग की क्षमता में युवाओं को प्रेरणा देने का संकल्प लेना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। हिमाचल का शिक्षा मंत्री एक गुरु के रूप में अवतरित हो, तो स्कूल-कालजों के आंचल में पलता भविष्य, अध्ययन की उत्कृष्ट परिपाटी से जुड़ सकता है। बहरहाल हिमाचल के मंत्रियों में हम सत्ता की ताकत को निरूपित होते देखना चाहते हैं, इसलिए कुछ विभागों की फेहरिस्त में हस्तियों का मुकाबला हो रहा है। दरअसल हिमाचल में मंत्रियों के प्रदर्शन में आम तौर पर प्रदेश की दृष्टि का अभाव रहा है और कमोबेश हर मंत्री अपने विभाग के बजट, योजनाओं और परियोजनाओं से केवल अपने विधानसभा क्षेत्रों को सींचते हुए ही देखे गए हैं। अगर मंत्रियों की प्रादेशिक दृष्टि में संतुलन और इनसाफ का तकाजा हो, तो क्षेत्रीय आधार पर इनकी गिनती नहीं होगी। कम से कम हर जिला का एक पालक मंत्री होना चाहिए जिसका संबंध उस जिला से न हो। यह प्रथा महाराष्ट्र जैसे राज्य में क्षेत्रीय संभावनाओं को संबोधित कर रही है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू अगर सरकर के लक्ष्यों में सारे प्रदेश को एक समान दृष्टि से देख रहे हैं, तो उन्हें हर विभाग के मंत्री को इसी काम पर लगाना होगा। इतना ही नहीं अगर सरकार का बजट हर विधानसभा क्षेत्र के हिसाब से न्याय करे, तो हर मंत्री हर हलके में मौजूद रहेगा।
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