सम्पादकीय

कर्ज का जाल : दिवालिया होने के कगार पर श्रीलंका

Gulabi
11 Jan 2022 4:56 AM GMT
कर्ज का जाल : दिवालिया होने के कगार पर श्रीलंका
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दिवालिया होने के कगार पर श्रीलंका
चीन के कर्ज के जाल में फंसे श्रीलंका के इस साल दिवालिया हो जाने की आशंका है, तो राजपक्षे परिवार की सत्ता पर मजबूत पकड़ से जनता में आक्रोश भी है। श्रीलंका के आर्थिक संकट के राजनीतिक-सामाजिक संकट में बदलने की आशंका ज्यादा है, जिससे हिंसा और अस्थिरता बढ़ सकती है।
पिछले रविवार को चीनी विदेश मंत्री वांग यी श्रीलंका में चीन की महत्वाकांक्षी पहल बेल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव को आगे बढ़ाने की मांग कर रहे थे, क्योंकि श्रीलंका बीजिंग से मदद चाह रहा है, ताकि वह खुद को विदेशी मुद्रा और ऋण संकट से बचा सके। वांग यी कई देशों की यात्रा करते हुए मालदीव से शनिवार को श्रीलंका पहुंचे थे। श्रीलंका में, वांग का राष्ट्रपति गोतबाया और प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे से मिलने का कार्यक्रम था। बाद में, वांग यी और प्रधानमंत्री को कोलंबो स्थित पोर्ट सिटी में संबोधित करना था, जिसे चीनी निवेश से विकसित किया गया है।
श्रीलंका की सड़कों से फलों के स्टॉल गायब हैं, जो किसी भी समाज की समृद्धि को दर्शाते हैं। चीनी जैसी आवश्यक वस्तु सौ ग्राम के पैक में बेची जा रही है, क्योंकि ज्यादातर लोग एक किलो चीनी एक साथ खरीदने में सक्षम नहीं। राशन की लंबी लाइन के गवाह राष्ट्रपति से पिछले हफ्ते स्थानीय भाषा में वही प्रश्न पूछा गया, जो उन्होंने दो साल पहले सत्ता परिवर्तन को जरूरी बताने के लिए जनता से पूछा था, 'क्या आप खुश हैं?' श्रीलंका के लिए वाकई यह बुरा समय है। दक्षिण एशिया की यह पहली अर्थव्यवस्था है, जो कोविड-19 महामारी के सामूहिक बोझ, घटते राजस्व और एक परिवार (राजपक्षे परिवार के चार सदस्य सत्ता से जुड़े प्रमुख पदों पर हैं) के खराब आर्थिक प्रबंधन के कारण विफल हो सकती है। श्रीलंका इस साल दिवालिया हो सकता है।
मानव विकास सूचकांक में सर्वोच्च स्थान पर रहने वाला यह दक्षिण एशियाई देश, जिसकी इस क्षेत्र में दूसरी सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आय थी, कैसे आर्थिक संकट में फंस गया है, यह एक दुखद कहानी है, जिसकी व्याख्या आसान नहीं। इसने अभी तय नहीं किया है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से आपातकालीन राहत मांगी जाए या नहीं। अगर वह राहत मांगे भी, तो इस प्रक्रिया में लंबा समय लगेगा। 2.2 करोड़ लोगों की बढ़ती मुसीबतें इतनी जल्दी दूर नहीं की जा सकतीं। श्रीलंका के मौजूदा आर्थिक संकट के राजनीतिक और सामाजिक संकट में बदलने की आशंका है, जिससे हिंसा और सामाजिक अशांति फैल सकती है।
यदि वहां हिंसा भड़कती है और सरकार उसका दमन करती है, तो वह वहां के लोगों के लिए तो दुर्भाग्यपूर्ण होगा ही, इससे पूरे क्षेत्र में नकारात्मक संकेत भी जा सकते हैं। अतीत में तमिल जातीय अशांति को क्रूर सैन्य शक्ति से हल किया ही गया था। वैसा करने वाले तत्कालीन रक्षा सचिव गोतबाया आज देश के राष्ट्रपति हैं। उस समय महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति थे, जो अब प्रधानमंत्री हैं। इन दोनों के अलावा परिवार के दो अन्य सदस्य भी सरकार में शामिल हैं-वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे और खेल मंत्री निमल राजपक्षे। यह अपने आप में श्रीलंका के लोकतंत्र पर एक दुखद टिप्पणी है, जिसे फिलहाल उस देश के आर्थिक संकट के मद्देनजर नजरंदाज किया जा सकता है।
पिछले दिनों श्रीलंका के नेता मदद मांगने भारत आए थे। तब 1.9 अरब डॉलर की सहायता के अलावा ईंधन के लिए 50 करोड़ डॉलर की क्रेडिट लाइन और 40 करोड़ डॉलर नकदी की आपूर्ति पर चर्चा हुई। उन्होंने बांग्लादेश और कुछ दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से भी वित्तीय मदद मांगी है। लेकिन ये अस्थायी उपाय हैं। ऐसे में, चीन और उसके कई अरब डॉलर वाले बीआरआई पर उंगली उठना लाजिमी है। कर्ज के जाल में फंसने की आशंका के बावजूद छोटे देशों के लिए चीन का विरोध करना मुश्किल हो गया है। जहां तक श्रीलंका की बात है, हाल की सरकारों ने विपरीत रुख अपनाया। महिंदा राजपक्षे की सरकार ने जहां चीनी निवेश प्रस्तावों का स्वागत किया, वहीं मैत्रीपाला सिरीसेना ने कुछ प्रस्तावों को खारिज भी किया था।
अब जब श्रीलंका पर चीनी कर्ज का जोखिम बना हुआ है, कोलंबो ने भारत और जापान से और कर्ज लिया है। इस वर्ष श्रीलंका पर कुल बकाया 6.9 अरब डॉलर होगा। श्रीलंका पर चीन का पांच अरब डॉलर का कर्ज है। इसके अलावा भी वित्तीय संकट से निपटने के लिए उसने पिछले साल बीजिंग से एक अरब डॉलर कर्ज लिया था, जिसका अब वह किस्तों में भुगतान कर रहा है।
श्रीलंका के लिए दुखद यह है कि राजपक्षे परिवार दो साल पहले चुनाव में सिंहली कार्ड खेलकर और उज्ज्वल भविष्य का वादा कर सत्ता में आया, लेकिन यह अवधि कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गई। इससे बड़े उद्योग-धंधे प्रभावित हुए। 10.9 फीसदी राजस्व हासिल करने वाला पर्यटन उद्योग भी आज संकट में है और दो लाख लोग घर बैठे हुए हैं। हालांकि लंबे समय तक कोविड संकट आर्थिक मंदी का तात्कालिक कारण था, लेकिन अन्य वजहें भी थीं, जिनमें सरकार का भारी खर्च, कर में कटौती, जिससे देश का राजस्व बुरी तरह प्रभावित हुआ, विदेशी मुद्रा भंडार में भारी कमी और बड़े पैमाने पर चीनी कर्ज का भुगतान आदि शामिल हैं। विगत नवंबर में मुद्रास्फीति 13 साल के उच्च स्तर पर दहाई अंकों में थी। रोजमर्रा की जरूरत की सभी चीजों की कीमतें कई गुना बढ़ गई हैं। विदेशी मुद्रा भंडार नवंबर के अंत में गिरकर 1.6 अरब डॉलर रह गया, जो चालू विदेशी भुगतान के एक महीने की राशि से भी कम है। व्यापार के क्षेत्र में भी नकारात्मक संकेत हैं।
वैश्विक बाजार में मनोबल ऊंचा रखने और विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए सरकार ने विगत चार जनवरी को 1.2 अरब डॉलर के आर्थिक राहत पैकेज की घोषणा की। वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे ने दावा किया कि रेटिंग एजेंसियों द्वारा अपने दायित्वों को पूरा करने में असमर्थ बताने के बावजूद देश अपने अंतरराष्ट्रीय कर्जों के भुगतान में नहीं चुकेगा। हालांकि विपक्षी नेताओं को इस पर संदेह है। हाल के महीनों में सरकार को सार्वजनिक विरोध का सामना करना पड़ा है।
सत्ता में शीर्ष पर बेचैनी साफ दिखती है। अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन की आलोचना करने वाले एक मंत्री को बर्खास्त कर दिया गया है। सरकार ने इन अटकलों का खंडन किया है कि प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे पद छोड़ देंगे और वित्तमंत्री बासिल उनकी जगह लेंगे। लेकिन जब तक महिंदा अपने राष्ट्रपति भाई से असहमत न हों या लोगों को शांत करने के लिए उन्हें बलि का बकरा न बनाएं, तब तक श्रीलंका में जनाक्रोश को शांत नहीं किया जा सकता।
क्रेडिट बाय अमर उजाला
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