सम्पादकीय

कर्ज का चक्रव्यूह

Subhi
17 Feb 2023 5:28 AM GMT
कर्ज का चक्रव्यूह
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Written by जनसत्ता: कर्ज लेने की हिदायतों की कहानी तो बचपन के विद्यालयीन पाठ्यचर्चा से लेकर घर के बड़े बुजुर्गों की जबानी सुनते आए हैं। लेकिन दो मिनट की मैगी से लेकर छोटे-छोटे रील में जीवन की अभिप्रेरणा का आनंद तलाश लेने वाली युवा पीढ़ी के पाले में सब्र नामक शालीनता कहां है? सब जगह संक्षिप्त या छोटा रास्ता। रोटी, कपड़ा और मकान की जरूरत नैतिक रूप से बड़ी जरूरतें मान सकते हैं। खासकर मकान के निर्माण या गाड़ियों के लिए कर्ज की अवधारणा को जायज मान भी लिया जा सकता है। लेकिन आजकल घर की छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी लोग क्रेडिट कार्ड या तत्काल ऋण के भरोसे लाखों की खरीदारी कर रहे हैं।

बैंकिंग क्षेत्र में सुरक्षित ऋण एक ऐसा ऋण है जिसमें उधारकर्ता ऋण के लिए कुछ संपत्ति को संपार्श्विक के रूप में गिरवी रखता है, जो तब ऋण देने वाले लेनदार के लिए एक सुरक्षित ऋण बन जाता है। वहीं असुरक्षित ऋण में या तो वेतन या आधार कार्ड को आधार मानकर ऋण दिया जाता है। तत्काल ऋण एक असुरक्षित ऋण है, जिसकी सुविधा कहीं न कहीं झटपट की धानी, आधा तेल आधा पानी की लोकोक्ति को चरितार्थ करती है।

ऋण लेने की आदत को देखते हुए कबीर के सीख देते दोहे याद आते हैं कि 'माया मरी न मन मरा, मर मर गया शरीर। आशा-तृष्णा न मरी, यों कह गए कबीर।' तात्पर्य है कि संसार में रहते हुए न माया मरती है न मन। शरीर न जाने कितनी बार मर चुका, पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती। वर्तमान परिदृश्य में लोगों में अपने जीवन के स्तर को दूसरे के जीवन स्तर से बेहतर दिखने की होड़ कर्ज की ओर धकेल रही है।

आंकड़े बताते हैं कि बीते साल अक्तूबर में निजी ऋण लेने के आंकड़े में अक्तूबर 2021 की तुलना में बीस फीसद का इजाफा हुआ है। इसी तरह इंस्टा क्रेडिट कार्ड ऋण की परिपाटी में अट्ठाईस फीसद और 'कंज्यूमर ड्यूरेबल ऋण' में सत्तावन फीसद का उछाल आया है। यानी लोग अपनी रोजमर्रा के जरूरतें जैसे कपड़ा, पेट्रोल, यात्रा, मोबाइल बिल या अन्य खरीदारी के लिए तत्काल ऋण या क्रेडिट कार्ड का उपयोग कर रहे हैं।

यह किसी अघोषित वित्तीय खतरे से कम भी नहीं है। एक निजी संस्थान के सर्वे के अनुसार, भारत में सात फीसद जनसंख्या क्रेडिट कार्ड का उपयोग करती है, जिसमें से तिरसठ फीसद ऐसे लोग हैं, जिन्हें पता ही नहीं है कि क्रेडिट कार्ड के उपयोग पर कितना ब्याज या अन्य कर लगाए जाते हैं। पैंसठ प्रतिशत ऐसे भी उपभोक्ता हैं, जो अपने क्रेडिट कार्ड के बिल का भुगतान तय समय से देरी में भरते हैं। बीते वर्ष आरबीआई ने निष्क्रिय लगभग दो लाख नब्बे हजार क्रेडिट कार्ड निरस्त किए।

दूसरी ओर तत्काल लोन के मामले में डाटा सुरक्षा एक बड़ा प्रश्न है, क्योंकि जब कोई अपने बैंक या क्रेडिट यूनियन के माध्यम से ऋण प्राप्त करता है तो ऋणदाता के पास गोपनीयता नियमों और नियमों की एक लंबी सूची होती है, जिनका व्यक्तिगत और वित्तीय जानकारी की सुरक्षा के लिए पालन किया जाना चाहिए। जब लोग किसी आनलाइन ऋणदाता के माध्यम से ऋण प्राप्त करते हैं, तो इन नियमों की कोई जानकारी नहीं होती है।

यह बहुत संभव है कि व्यक्तिगत और वित्तीय जानकारी से समझौता किया जाएगा। खासकर अगर ऋणदाता के बारे में अच्छी तरह से शोध नहीं करते हैं। बहरहाल, कर्ज के नींव तले चार दिन की चांदनी तलाशने वालों की लंबी कतार है। लेकिन ग्राहक की जागरूकता आवश्यक है। जब आवश्यक हो तभी कर्ज लेना उचित होता है। लेकिन महंगे शौक को पूरा करने के लिए कर्ज के चक्रव्यूह में फंसना क्या उचित है?

जैसे-जैसे दिन बीतते चले जा रहे है, वैसे-वैसे हमारी सोच और पीछे की तरफ जा रही है। यह काफी हैरानी वाली बात है कि इस 'रोग' का दूर-दूर तक कोई इलाज दिखाई नहीं दे रहा। हाल ही में इस तरह की कई खबरें देखने-सुनने में आर्इं। बाबाओं के चमत्कार, धन कमाने की तकनीक, कष्टों से मुक्त होने का इकलौता उपाय और न जाने क्या-क्या। यह बहुत शर्मिंदगी की बात है कि इतने पढ़े-लिखे लोग भी इन व्यर्थ की चीजों पर यकीन करते हैं।

हमारे पूर्वजों को विज्ञान के बारे में कुछ हद तक ही पता था। इसलिए उनका अंधविश्वास और जादू-टोने जैसी चीजों पर यकीन करना स्वाभाविक था। पर भारत जैसा देश जिसमें हर साल लाखों की संख्या में विद्यार्थी इंजीनियरिंग और मेडिकल जैसे विज्ञान विषयों से बड़ी परीक्षाएं पास करते हैं और प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं, आगे वे जब भी कोई काम करते हैं तो अपनी हर खोज, अपना हर काम जनता के सामने रखने से पहले उसे जांचते-परखते हैं। लेकिन अंधविश्वास फैलाने वाले लोगों के मन में जो भी आता है, उसे बिना ठीक से जांचे-परखे ही कह देते हैं।

दरअसल, मनुष्य को एक अच्छी जिंदगी जीने का बहुत बेसब्री से इंतजार रहता है। इसलिए वह ज्योतिष आदि के द्वारा भविष्य को जानने और बदलने की कोशिश में लगा रहता है। लेकिन यह सोचने वाली बात है कि अगर इंसान अपना भविष्य बदल पाता तो आज एक नहीं कई लोग ऐसे होते, जो दुनिया भर में धनी और मशहूर हस्ती होते। जिंदगी संवारने के चक्कर में हम पता नहीं क्या-क्या कर बैठते हैं। हर रोज बाबाओं के चक्कर काटना, अंगूठियां पहनना, जादू-टोने पर विश्वास करना और उससे डरना या घबराना। आधुनिक भारत को ये सारी रुकावटें बहुत महंगी पड़ रही हैं।

धर्म का उपयोग राजनीति में नहीं होना चाहिए। यह बात देश में सभी को पता है, बावजूद इसके वर्तमान हालात कुछ अलग ही बात कहते हैं। वर्तमान समय में धार्मिक ग्रंथों और धर्म के नाम पर सत्ताधारी और अन्य राजनीतिक पार्टियां अपनी रोटी सेंकने में नहीं थक रही हैं। हर दिन धार्मिक मुद्दों को आगे रखकर विभिन्न टीवी बहसों और अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से देश के मूल मुद्दों से भटका रही है।

जनता को वैसे मुद्दों से दूर रखना चाहती है, जिससे मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो। धर्म और राजनीति के घालमेल के कारण विचित्र परिस्थितियां निर्मित होती जा रही हैं, जिसमें जितने प्रश्न हैं, उतने जवाब नहीं हैं। धर्म और राजनीति का घालमेल सदियों से होता आ रहा है, पर वर्तमान स्वरूप काफी व्यथित करने वाला है। विभिन्न धर्मों और पंथों और उनके मतों के बारे में गहराई में जाने की जरूरत नहीं है। लेकिन धर्म के नाम पर गुमराह करना बंद होना चाहिए। धर्म के नाम पर आडंबर नहीं होना चाहिए।




क्रेडिट : jansatta.com

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