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- कर्ज या कश्मीर की...

पाकिस्तान ने अपने अस्तित्व के 71 सालों में करीब 29 ट्रिलियन रुपए का कर्ज़ लिया था, लेकिन इमरान खान की हुकूमत के 3 साल 7 माह से कुछ ज्यादा वक़्त के दौरान 21 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपए का कर्ज़ लेना पड़ा। पाकिस्तान के पास सिर्फ दो महीने का आयात बिल चुकाने का विदेशी खजाना शेष है। पाकिस्तानी रुपए का अवमूल्यन इतना हो चुका है कि एक डॉलर करीब 190 रुपए के बराबर है। यह 200 रुपए को भी लांघ सकता है। यह पाकिस्तान की मुद्रा का अभी तक का सबसे निचला दर्जा है। पाकिस्तान पर अभी तक का सबसे ज्यादा कर्ज़ का बोझ है। दुनिया में तीसरी सबसे ज्यादा मुद्रास्फीति पाकिस्तान में ही है। एक साल पहले टमाटर का भाव करीब 47 रुपए किलो था। वह बीती 8 अप्रैल को 154 रुपए तक उछल चुका है। प्याज 34 रुपए से महंगा होकर 62 रुपए प्रति किलो तक पहुंच चुका है। बीते 6 महीनों के दौरान महंगाई 24.3 फीसदी बढ़ी है। खाने का तेल 130 फीसदी महंगा हुआ है। पेट्रो पदार्थों की कीमतें एक साल के दौरान 45 फीसदी से ज्यादा बढ़ी हैं। पाकिस्तान में इमरान हुकूमत के दौरान करीब 1400 करोड़ रुपए रोज़ाना का कर्ज़ मुल्क पर बढ़ा है। करीब 31 फीसदी नौजवान बेरोज़गार हैं। भारत के साथ पाकिस्तान के रिश्ते कैसे हैं, यह दुनिया जानती है। भारत को पाकिस्तान के आंतरिक हालात से गंभीर सरोकार नहीं होना चाहिए, लेकिन वहां हुकूमत बदल रही है, तो महत्त्वपूर्ण बिंदुओं का विश्लेषण करना चाहिए। हमें अपने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का दर्शन याद आता है कि हम अपने पड़ोसी नहीं बदल सकते।
नए पाकिस्तान की चिंताओं की थाह हम नहीं जानते, लेकिन आने वाली हुकूमत के वजीर-ए-आजम शाहबाज शरीफ की भी प्राथमिक और बुनियादी चिंता कश्मीर ही है। उन्होंने कहा है कि कश्मीर के समाधान तक भारत के साथ रिश्ते सुधर और सामान्य नहीं हो सकते। हमने पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री और उनकी कैबिनेट के शपथ-ग्रहण समारोह से पहले ही अपना विश्लेषण लिख दिया था। यदि कोई अनहोनी नहीं हुई, तो शाहबाज शरीफ पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री होंगे, लेकिन बेदाग और निर्विवाद वह भी नहीं हैं। शाहबाज अदालती कार्रवाई में जमानत पर हैं। उनके खिलाफ 1600 करोड़ रुपए की मनी लॉन्ड्रिंग के संगीन आरोप हैं। उनकी प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ और अदालत में आरोपों को तय करने की तारीख 11 अप्रैल ही है। नैतिकता का तकाजा था कि पहले वह आरोप-मुक्त होते और फिर मुल्क के प्रधानमंत्री का दायित्व संभालते। पाकिस्तान में नैतिकता के मायने ही कहां हैं? अब मौजूदा हालात में इमरान खान ने पूरे मुल्क में 'आजादी के संघर्ष' का आह्वान किया है। किससे और कैसी आज़ादी…? क्या पाकिस्तान एक-दो दिन पहले तक आजाद नहीं था? पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी ने तय किया है कि शाहबाज के प्रधानमंत्री बनने के विरोध में सभी सांसद इस्तीफा देंगे। हालांकि इस मुद्दे पर इमरान की पार्टी में सभी एकमत नहीं हैं और सांसदी से इस्तीफा देने के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन विपक्ष के तौर पर इमरान ज्यादा आक्रामक दिखाई देंगे, क्योंकि वहां चुनाव ही अंतिम नियति हैं। पाकिस्तान को कश्मीर से पहले कर्ज़ और महंगाई, बेरोज़गारी की चिंता करनी चाहिए। श्रीलंका बनने में देर नहीं लगेगी, क्योंकि पाकिस्तान भी चीन के कर्ज़-जाल में जकड़ा है।
कश्मीर पर पाक नेता और किराए के प्रवक्ता इतिहास को दोहराना छोड़ दें। उससे कुछ भी हासिल नहीं हुआ है और न ही होगा। संयुक्त राष्ट्र भी पाकिस्तान की हकीकत और फितरत को बखूबी जानता है। पाकिस्तान को फाट्फ की काली सूची में आने से भी बचना है। चीन कब तक बचाता रहेगा? अब पाकिस्तान की अवाम किसके साथ है, आने वाले चुनावों से पहले ही यह साफ होना शुरू हो जाएगा। अमरीका या भारत का विरोध करना और उस पर सियासत करना मुल्क के हित में नहीं होगा। भारत को पाकिस्तान की जरूरत नहीं है। मुट्ठी भर कारोबार होता रहा है, जिसकी चिंता भारत जैसा सशक्त देश नहीं करता, लेकिन पड़ोस-धर्म का अपना दर्शन होता है। हम उसकी परवाह करना जानते हैं। पाकिस्तान की नई हुकूमत को अपनी नीति और नीयत बदलनी है, उसके बाद भारत कोई प्रतिक्रिया दे सकता है। बहरहाल बुनियादी चिंता हुकूमत की वही होनी चाहिए, जिससे अवाम का सीधा जुड़ाव है। वैसे पाकिस्तान के संबंध में यह अवधारणा बन चुकी है कि वहां सत्ता में चाहे कोई भी आ जाए, उसे कश्मीर राग तो गाना ही पड़ता है। ऐसा इसलिए करना पड़ता है ताकि आंतरिक समस्याओं की ओर से लोगों का ध्यान हटाया जा सके और सत्ता को कायम रखा जा सके। इतिहास बताता है कि वहां चाहे शासन किसी का भी रहा, हर किसी ने यही नीति अपनाई।
