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- कर्ज का बोझ

Written by जनसत्ता: किसी देश की हर व्यवस्था चाहे वह कानून व्यवस्था हो, सामाजिक व्यवस्था हो या फिर राजनीतिक व्यवस्था हो, यदि इनको दुरुस्त रखना है तो जरूरी है कि वहां की अर्थव्यवस्था समृद्ध हो। एक राज को चलाने के लिए यह सबसे जरूरी आवश्यकता होती है। लेकिन हमने पिछले कुछ सालों में देखा है कि हमारे देश के अलग-अलग राज्यों में मुफ्त योजनाओं की बाढ़ आ गई है, खासतौर से उत्तर भारतीय राज्यों में। जबकि इन मुफ्त योजनाओं की वजह से ये राज्य लगातार कर्ज तले दबते जा रहे हैं। देखा जाए तो इन राज्यों में जन्म लेने वाला व्यक्ति कर्जदार के रूप में ही जन्म ले रहा है। हाल में रिजर्व बैंक ने ऐसे राज्यों को चेताया है और कहा है कि वे ऐसी नीतियां बनाएं, ताकि उन पर कर्ज का बोझ कम से कम हो।
सवाल है कि आखिर आरबीआइ गवर्नर इस तरह की चेतावनी क्यों दे रहे हैं? शायद वे जानते हैं कि श्रीलंका में जो आज हो रहा है, वह इसी का नतीजा है। मोटे तौर पर आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश पर साढ़े छह लाख करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज है। गुजरात पर साढ़े तीन लाख करोड़ का कर्ज है। पश्चिम बंगाल और बिहार की हालत तो और भी बदतर है। इसी प्रकार आज सभी राज्य आर्थिक संकट में हैं। लेकिन फिर भी एक सवाल वाजिब उठता है कि क्या केवल मुफ्त योजनाओं की वजह से ही राज्यों की ऐसी स्थिति है? इसका ईमानदारी से जवाब होगा- नहीं।
इसके पीछे और भी कई कारण हैं। पहला कारण तो यही कि आर्थिक विशेषज्ञों की सलाह की लगातार अवहेलना करना, फिर चाहे यह विशेषज्ञ संस्था के रूप में हो या एक व्यक्ति के रूप में। दूसरा कारण है अल्पकालीन राजनीतिक लाभ। पिछले कुछ वर्षों में यह सबसे बड़ा कारण बना है राज्यों की आर्थिक बदहाली का। चुनावों में सत्ता हासिल करने के लिए पार्टियां मुफ्त के वादे करती हैं, यह सोचे समझे बिना कि आखिर इनके लिए वे पैसा लाएंगी कहां से। इसके लिए वे अंधाधुंध कर्ज लेकर अपने हित पूरे करती हैं।
तीसरा कारण है राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी। रेवड़ी संस्कृति रोकने के लिए राजनीतक दलों में आपसी सहमति ना बन पाना। चौथा कारण है दूरदर्शिता का अभाव, क्योंकि यह आज स्पष्ट दिख रहा है कि राज्यों के पास कोई बेहतर नीतियां या मॉडल नहीं हैं जो उन्हें इस संकट से उबार सके। वे केवल और केवल संघवाद की आड़ में अभी तक सुरक्षित हैं। पांचवा कारण है संवैधानिक महत्वपूर्ण संस्थाओं और नौकरशाही का राजनीतिकरण।
राजनीतिक और प्रशासनिक हर स्तर पर बढ़ता भ्रष्टाचार भी राज्यों की माली हालत खराब करने में बड़ी भूमिका निभा रहा है। आए दिन ये खबरें सुनने को मिलती रहती हैं कि फलां नेता या अफसर के यहां इतने करोड़ रुपए और बेनामी संपत्ति के दस्तावेज मिले। सवाल यह भी है कि अगर राज्य इसी तरह कर्ज के बोझ तले दबते जाएंगे तो कैसे भावी लक्ष्यों को हासिल किया जा सकेगा? कैसे भारत का पांच लाख करोड़ डालर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना पूरा होगा?