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- मौत के सीवर
Written by जनसत्ता: पिछले कई वर्षों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि प्रत्येक पांच दिन में एक व्यक्ति की सफाई करते हुए जहरीली गैस के कारण मौत हो जाती है, जो सीवर की सफाई करते हुए पूरे क्षेत्र और उसमें निवास करने वाले व्यक्तियों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाता है और इस खतरनाक जहरीली गैस का सामना करते हुए अनेकों बार विभिन्न तरह की बीमारियों का भी शिकार हो जाता है।
सरकार ने इस काम का भी लगभग निजीकरण कर दिया है, उसके बाद भी ठेकेदारों को सफाईकर्मियों की जान की परवाह करना जरूरी नहीं लगता। न केवल काम के दौरान सुरक्षा उपकरण नहीं मिलते, बल्कि उनकी मौत हो जाने पर पीड़ित परिवार को समय पर मुआवजा भी नहीं मिलता और न ही करुणामूलक या अनुकंपा के आधार पर नौकरी। उसकी मौत के लिए शायद ही किसी को जिम्मेदार ठहराया जाता है और उसे कानून के कठघरे में खड़ा किया जाता है।
आज हम आज आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, मगर हकीकत तब नजर आती है जब सीवर में सफाई के लिए आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूर इंसानों को उतारा जाता है और उनकी मौत के बावजूद हालात में कोई बदलाव नहीं आता।
हाल ही में छत्तीसगढ़ में एक युवक ने अपनी मां को तंत्र विद्या के चक्कर में मौत के घाट उतार दिया। वह मां की बलि देकर तंत्र सिद्धि पाना चाहता था। भारत के कई राज्यों में इस प्रकार का अंधविश्वास जोर-शोर से फैला हुआ है, न जाने कितने ही मासूम, निर्दोष बेगुनाह लोगों को अंधविश्वास की वजह से मौत की नींद सुलाया जा रहा है। ऐसी घटनाएं आए दिन पढ़ने और सुनने को मिल जाती हैं।सवाल है कि क्या हम इस पर लगाम नहीं लगा सकते?
आज हम विज्ञान युग में जी रहे है। विज्ञान की बदौलत हम धरती से आसमान में पहुंच चुके हैं। फिर भी भारत जैसे देश में ये अंधविश्वास का जाल फैला हुआ है। जगह-जगह तंत्र विद्या तांत्रिकों के झूठे खेल की वजह से न जाने कितने बेगुनाह लोग शिकार हो रहे हैं, कइयों की जान जा रही है। हम डिजिटल इंडिया की बात करते हैं।
क्या ऐसे अंधविश्वास से हम एक विकासशील भारत की रचना कर पाएंगे, जहां आज भी लोग मूर्खतापूर्ण सोच रख निर्दोषों का बलि देकर अपने सपने को पूरा करने का सोचते हैं। सिर्फ साक्षरता दर बढ़ाने से कोई फायदा नहीं। साक्षरता के साथ-साथ लोगों में ऐसे अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता और वैज्ञानिक चेतना भी बहुत जरूरी है।