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- ये मौत एक सवाल है
मुद्दा यह नहीं है कि फादर स्टेन स्वामी पर जो आरोप राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने लगाए थे, वे सही हैं या नहीं। उन आरोपों को सही साबित करना एनआईए की जिम्मेदारी है। यह काम अदालतों का है कि वे एनआईए की तरफ से पेश सबूतों का परीक्षण करते हुए इस बारे में अपना निर्णय दें। लेकिन सवाल उस न्याय तक पहुंचने की प्रक्रिया का है। कभी भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने एक सिद्धांत स्थापित किया था कि बेल नियम है और जेल अपवाद। प्रश्न है कि कोरोना महामारी के विकट काल में एक 84 साल का पार्किंसन रोग से पीड़ित व्यक्ति के लिए ये सिद्धांत क्यों नहीं लागू हुआ? हालांकि आज देश में न्याय व्यवस्था का जो हाल है, उसे जानने वाले किसी व्यक्ति के लिए ये सवाल अनुत्तरित नहीं है, इसके बावजूद इसे बार-बार उठाए जाने की जरूरत है। क्या अगर व्यक्ति की संविधान प्रदत्त आजादी की रक्षा जब न्यायपालिका की प्राथमिकता ना रह जाए, तो उससे खुद न्याय व्यवस्था कठघरे में खड़ी नहीं होती है? फादर स्टेन स्वामी ने रिहाई की गुहार लगाते-लगाते जेल में ही दम तोड़ दिया।