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ललित नारायण मिश्र का जन्म 2 फरवरी 1923 को सहरसा जिले के बसनपट्टी गांव में हुआ था
राज किशोर झा
पटना. ललित नारायण मिश्र का जन्म 2 फरवरी 1923 को सहरसा जिले के बसनपट्टी गांव में हुआ था. वह मिथिला समेत देश के कद्दावर कांग्रेस नेताओं में से एक थे. ललित नारायण मिश्र की हत्या 3 जनवरी 1975 को समस्तीपुर में बम विस्फोट में मौत हो गई. समस्तीपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर दो पर यह घटना हुई थी.
ललित बाबू को अपनी मातृभाषा मैथिली से अगाध प्रेम था…मैथिली की साहित्यिक संपन्नता और विशिष्टता को देखते हुए 1963-64 में ललित बाबू की पहल पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उसे 'साहित्य अकादमी' में भारतीय भाषाओं की सूची में सम्मिलित किया. अब मैथिली संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में चयनित विषयों की सूची में सम्मिलित है. ललित बाबू पिछड़े बिहार को राष्ट्रीय मुख्यधारा के समकक्ष लाने के लिए सदा कटिबद्ध रहे. उन्होंने अपनी कर्मभूमि मिथिलांचल की राष्ट्रीय पहचान बनाने के लिए पूरी तन्मयता से प्रयास किया. विदेश व्यापार मंत्री के रूप में उन्होंने बाढ़ नियंत्रण एवं कोसी योजना में पश्चिमी नहर के निर्माण के लिए नेपाल-भारत समझौता कराया था. उन्होंने मिथिला चित्रकला को देश-विदेश में प्रचारित कर उसकी अलग पहचान बनाई. मिथिलांचल के विकास की कड़ी में ही ललित बाबू ने लखनऊ से असम तक लेटरल रोड की मंजूरी कराई थी जो मुजफ्फरपुर और दरभंगा होते हुए फारबिसगंज तक की दूरी के लिए स्वीकृत हुई थी. रेल मंत्री के रूप में मिथिलांचल के पिछड़े क्षेत्रों में झंझारपुर-लौकहा रेल लाइन, भपटियाही से फारबिसगंज रेल लाइन जैसी 36 रेल योजनाओं के सर्वेक्षण की स्वीकृति उनकी कार्य क्षमता, दूरदर्शिता और विकासशीलता के ज्वलंत उदाहरण है.
कैसे हुई बम विस्फोट की घटना?
इंदिरा गांधी सरकार के रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पहुंचे थे. समस्तीपुर से मुजफ्फरपुर के बीच बड़ी लाइन का उद्घाटन करना था. ललित बाबू पहुंचे. भाषण पूरा किया और मंच से नीचे जब उतरने लगे तो वहां मौजूद दर्शकों की भीड़ में से किसी शख्स ने मंच की ओर बम फेंक दिया. ललित नारायण मिश्र जख्मी हो गए.
बच सकती थी जान!
समस्तीपुर रेलवे स्टेशन से दरभंगा मेडिकल कॉलेज की दूरी 40 से 42 किलोमीटर है. उस दिन DMCH में डॉक्टरों की हड़ताल थी. ब्लास्ट में घायल हुए कई लोगों को इलाज के लिए दरभंगा के मशहूर डॉक्टर नवाब के पास भेज दिया गया. मगर ललित बाबू को पटना भेजने का फैसला हुआ जो समझ से परे था, क्योंकि ललिल बाबू ऐसी शख्सियत थे जिन्हें अगर दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले जाया जाता तो शायद हड़ताली डॉक्टर इलाज करने से मना न करते. पटना भेजने के फैसले पर आज तक सवाल उठ रहे हैं.
समस्तीपुर से पटना जाने में लगे थे 14 घंटे
ललित बाबू को इलाज के लिए पटना ले जाने के लिए रेल को चुना गया. समस्तीपुर से पटना की दूरी करीब 132 किलोमीटर है, लेकिन ट्रेन को पटना पहुंचने में करीब 14 घंटे का वक्त लग गया. वर्ष 1975 में बहुत ज्यादा तो पटना पहुंचने में सात घंटे का वक्त लगता, लेकिन लग गया 14 घंटे, ये भी एक अहम सवाल है, जिसका जवाब आज तक नहीं मिला है.
ललित बाबू के बढ़ते ग्राफ से किसको डर था?
सियासी गलियारों में कहा ये जाता है कि मिथिला के सबसे बड़े जननेता ललित नारायण मिश्र की लोकप्रियता और बढ़ते कद से इंदिरा गांधी को सियासी खतरा का आभास था. इसीलिए कहा ये कहा जाता है कि जानबूझकर ट्रेन को लेट किया गया. हालांकि, इस बात का कोई प्रमाण नहीं है. इतना तो तय है कि, अगर आज ललित बाबू होते तो बिहार और मिथिलांचल की तस्वीर कुछ और होती.
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