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चेन्नई में 11वीं क्लास में पढ़ने वाली एक लड़की ने अपने पूर्व क्लासमेट की यौन प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली
मनीषा पांडेय। चेन्नई में 11वीं क्लास में पढ़ने वाली एक लड़की ने अपने पूर्व क्लासमेट की यौन प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली. आत्महत्या से पहले उसने एक लंबी चिट्ठी लिखकर पूरी घटना बयान की. लड़की ने लिखा कि एक लड़की या तो अपनी मां की कोख में सुरक्षित है या फिर कब्र में. उसने ये भी लिखा कि मां-बाप अपने लड़कों को लड़कियों की इज्जत करना सिखाएं.
वो लड़की अब दुनिया में नहीं है. परिवार, पुलिस, सरकार की कोई भी कोशिश अब उस खत्म हो गई जिंदगी को वापस नहीं ला सकती, लेकिन सवाल ये है कि इतनी सारी जिंदगियां ऐसे खत्म होती जा रही हैं और मर्दों के आधिपत्य वाली इस दुनिया में किसी को नहीं लगता कि ये कोई इतनी गंभीर समस्या है. ये तकलीफ की इंतहा है. ये ऐसी बीमारी है, जिसकी इलाज नहीं किया गया तो हजारों-हजार लड़कियां इसकी भेंट चढ़ेंगी. अभी भी चढ़ रही हैं.
पुलिस ने जब उस लड़के को गिरफ्तार किया तो उसने सारा सच कबूल लिया. दोनों के बीच कभी दोस्ती थी, संबंध भी बने. लेकिन जब दोस्ती नहीं रही तो लड़के ने क्या किया. लड़के ने उसे फोन पर, मैसेज में धमकाना शुरू किया. उसे अश्लील मैसेज और तस्वीरें भेजने लगा. बदनाम करने, जान से मारने की धमकियां देने लगा. जाहिरन उस लड़की को उस लड़के से खतरा महसूस हुआ होगा.
किसी भी इंसान को अगर कभी खतरा महसूस हो तो वो क्या करता है. वो उन सुरक्षित जगहों की तलाश करता है, जहां उसे मदद मिल सके. अपने बड़ों से, केयरगिवर्स से, फैमिली से मदद मांगता है. उस लड़की के केस में वो कौन-कौन लोग थे, जो मददगार हो सकते थे. वो सारे बड़े, वयस्क लोग, जो ज्यादा समझदार और ज्यादा दुनियादार हैं. स्कूल के टीचर्स, घर में माता-पिता. लेकिन इस सारे लोगों से मदद मांगने की बजाय लड़की ने अपनी जिंदगी खत्म करने का रास्ता चुना. हम सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं कि उसके मन में कितना भय, कितनी निराशा और कितना डर रहा होगा कि उसने मर जाना चुना, लेकिन मदद मांगना और मुकाबला करना नहीं.
इस लड़की की आत्महत्या और ऐसी तमाम लड़कियों की आत्महत्या के लिए सिर्फ वो लड़के अकेले जिम्मेदार नहीं हैं, जो यौन हिंसा करते हैं, ब्लैकमेल करते हैं. जिम्मेदार आसपास के वो सारे वयस्क लोग भी हैं, जो अपनी बेटियों को मदद और भरोसा देने में नाकाम होते हैं. उन्हें सुरक्षा देने में, विश्वास देने में नाकाम होते हैं. बेटियों को ये यकीन दिलाने में नाकाम होते हैं कि अगर जीवन में कुछ बुरा हो भी जाए तो इसमें कोई गलत नहीं है. अगर कोई उसे प्रताडि़त या ब्लैकमेल कर रहा है तो इसमें लड़की की कोई गलती नहीं है. अगर लड़की के कभी उस लड़के के साथ सेक्सुअल रिश्ते भी बने तो भी ये कोई अपराध नहीं है. ये कई बार नादानी हो सकती है, अपरिवक्वता भी हो सकती है, लेकिन ये कोई अपराध नहीं है और मर जाने की वजह तो कतई नहीं है. सेक्स कर लेना अपराध नहीं है, सेक्स करने के बाद लड़की को ब्लैकमेल और प्रताडि़त करना अपराध है. इस पूरी कहानी में अगर कोई सचमुच अपराधी है तो वो लड़का है. जिसने गलत किया है, सजा उसे मिलनी चाहिए, न कि लड़की को.
उस लड़की ने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि उसे टीचरों पर भी कोई भरोसा नहीं है. स्कूल भी बिलकुल सुरक्षित नहीं है. टीचरों पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता. इस तरह मर जाना आसान नहीं होता. बहुत हिम्मत चाहिए होती है, अपने ही हाथों अपनी जिंदगी खत्म कर देने के लिए. ये मुमकिन नहीं कि मर जाने से पहले उस लड़की ने मदद का एक अदद हाथ नहीं ढूंढा होगा. बचा लिए जाने के लिए नहीं छटपटाई होगी लेकिन आखिरकार उसने मरना चुना क्योंकि मदद का कोई हाथ आगे नहीं आया होगा. किसी ने नहीं थामा होगा, किसी ने नहीं बचाया होगा.
मां-बाप, टीचर्स, समाज, लोग सब अपनी बेटियों को इस तरह मरने से बचाने में नाकाम हो रहे हैं क्योंकि उनका सारा दिमाग अपने बेटों को लड़कियों की इज्जत करना सिखाने में नहीं, बेटियों को ये सिखाने में खर्च हो रहा है कि वो अपनी इज्जत बचाकर रखें. और इज्जत भी क्या भला. वो एक बेहूदी सी चीज, जो समाज ने लड़कियों की देह में रख दी है. लड़का सौ कांड करे, उसकी इज्जत नहीं जाती. लड़की कर ले तो लड़की के साथ-साथ पूरे घर-परिवार-समाज-देश की इज्जत चली जाती है.
हमारा समाज अपने लड़कों को ये कभी नहीं सिखाता कि लड़कियों के साथ अदब से पेश आना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती नहीं करनी चाहिए, एक बार किसी के साथ सो लेने, सेक्स कर लेने का मतलब ये नहीं है कि अब वो जीवन भर के लिए तुम्हारी गुलाम हो गई है. उसे ना कहने का हक है और लड़कों को उस ना का सम्मान करना चाहिए. आप किसी का दिल जीतने की कोशिश कर सकते हैं, उसे डरा-धमकाकर, बल और छलपूर्वक हासिल करने की नहीं.
और सबसे जरूरी बात ये कि सेक्स का परिवत्रता-अपवित्रता से कोई लेना-देना नहीं है. सही और गलत की, नैतिक और अनैतिक की परिभाषा लड़का और लड़की दोनों के लिए एक जैसी है. जो चीज लड़के के लिए गलत है, वो लड़की के लिए भी गलत है और जो लड़के के लिए गलत नहीं, वो लड़की के लिए भी गलत नहीं. सीधी सी बात है कि नैतिकता का पैरामीटर अलग-अलग नहीं हो सकता. नहीं होना चाहिए.
सिर्फ तमिलनाडु में पिछले एक महीने के भीतर सेक्सुअल हैरेसमेंट से तंग आकर 4 लड़कियों ने आत्महत्या कर ली है. पूरे देश में यह संख्या 111 है और एनसीआरबी के आंकड़ों की मानें तो पिछले साल 32,000 लड़कियों लड़कों के हाथों यौन प्रताड़ना की शिकार हुईं, जिनमें से 997 लड़कियों ने आत्महत्या की.
अगर ये आंकड़े आपको तकलीफ से नहीं भर रहे, चिंता में नहीं डाल रहे, परेशान नहीं कर रहे तो यकीन मानिए आपकी आत्मा मर चुकी है. आप उसे बेहूदे और बेशर्म समाज के प्रतिनिधि नुमाइंदे हैं, जो खुद औरत के पेट से पैदा होकर उसी औरत को इज्जत का सर्टिफिकेट बांटते फिरते हैं.
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