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भारतीय मूल के जाने-माने लेखक सलमान रुश्दी पर न्यूयार्क में प्राणघातक हमला सभ्य समाज को आतंकित करने और साथ ही मजहबी अतिवाद के भयावह खतरे को फिर से रेखांकित करने वाला है
सोर्स- Jagran
भारतीय मूल के जाने-माने लेखक सलमान रुश्दी पर न्यूयार्क में प्राणघातक हमला सभ्य समाज को आतंकित करने और साथ ही मजहबी अतिवाद के भयावह खतरे को फिर से रेखांकित करने वाला है। इस हमले की विश्व समुदाय को एक सुर से निंदा करनी चाहिए। यह खेद की बात है कि ऐसा होता नहीं दिख रहा है। खुद के सीने पर लिबरल-सेक्युलर होने का तमगा लगाने और दूसरों को उदार-अनुदार होने का प्रमाण पत्र देने वाले सलमान रुश्दी पर हमले को लेकर जिस तरह मौन हैं, उससे उनके दोहरे मानदंडों का ही पता चलता है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए ऐसे दोहरे मानदंड न केवल घातक हैं, बल्कि सलमान रुश्दी पर हमला करने वाले लेबनानी मूल के अमेरिकी नागरिक हादी मतार सरीखे अतिवादियों का दुस्साहस बढ़ाने वाले भी हैं। हादी 24 साल का है। इसका अर्थ है कि उसका जन्म विवादों का कारण बनी सलमान रुश्दी की पुस्तक द सैटेनिक वर्सेस के प्रकाशन के बाद हुआ। 1988 में प्रकाशित इस पुस्तक के आलोचकों की तरह हादी को भी उसकी विषय वस्तु के बारे में शायद ही कोई जानकारी हो।
हादी मतार ईरान के कट्टरपंथी तत्वों से प्रभावित था। ध्यान रहे कि ईरान के ही सर्वोच्च मजहबी नेता अयातुल्ला खुमैनी ने सलमान रुश्दी के खिलाफ मौत का फतवा जारी किया था। इसके पहले भारत पहला देश बना था, जिसने द सैटेनिक वर्सेस पर पाबंदी लगाई थी। कहना कठिन है कि तत्कालीन राजीव गांधी सरकार यह पहल न करती तो क्या परिस्थिति अलग होती? जो भी हो, इससे इन्कार नहीं कि कट्टरपंथी मुल्ला-मौलवियों और जिहादी संगठनों ने ही हादी के मन में सलमान रुश्दी के खिलाफ जहर भरा होगा। इसका पता इससे भी चलता है कि ईरान, पाकिस्तान और अन्य देशों में हादी की तारीफ करने वालों की कमी नहीं। ऐसे तत्व भारत में भी दिख रहे हैं।
यह एक तथ्य है कि भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नुपुर शर्मा को जान से मारने की धमकियों का सिलसिला थम नहीं रहा है। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि महज नुपुर शर्मा का समर्थन करने के कारण कन्हैयालाल और उमेश कोल्हे समेत कई अन्य लोग मुस्लिम अतिवादियों का शिकार बन चुके हैं। यह अतिवाद एक तरह आतंकवाद ही है।
पूरी दुनिया और यहां तक कि अमेरिका और यूरोप में भी मुस्लिम अतिवाद जिस तरह बेलगाम हो रहा है, उस पर मुस्लिम देशों को न केवल चिंतित होना चाहिए, बल्कि उसे थामने के लिए ईमानदारी से सक्रिय भी होना चाहिए, क्योंकि हादी जैसे अतिवादियों के किए की सजा आम मुस्लिम नागरिक भुगतते हैं। मुस्लिम जगत को उन कारणों की तह तक भी जाना होगा, जिनके चलते पढ़े-लिखे मुस्लिम युवक भी अतिवादी बन रहे हैं।
Rani Sahu
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