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हमारे देश में ठसक से भरा आदमी जब कहीं अपनी ठसक छोड़ता है
हमारे देश में ठसक से भरा आदमी जब कहीं अपनी ठसक छोड़ता है तो अक्सर लोग उसे ताना देते हुए सुनाई पड़ते हैं, 'तू बड़ा डीसी लगा है!' इसका अर्थ हुआ कि डीसी में ठसक होती है या डीसी ठसक से भरा होना चाहिए। पर ज़रूरी नहीं कि कोई वास्तव में ही डीसी हो, पर पैदायशी डीसी हो सकता है। लेकिन प्रश्न उठता है कि क्या डीसी बनने के बाद व्यक्ति ठसकी हो जाता है या ठसकी होने के लिए डीसी बनता है। पर जिस तरह छुरी खरबूजे पर गिरे या खरबूजा छुरी पर, कटता खरबूजा ही है, उसी तरह व्यक्ति डीसी बनने के बाद ठसकी हो जाता है या ठसकी होने के लिए डीसी बनता है। दर्शन खरबूजे वाला ही है अर्थात् डीसी ठसकी होता है या ठसकी डीसी होता है, बात एक ही है। प्रश्न उठता है कि क्या व्यक्ति केवल डीसी होने के बाद ही ठसकी होता है या निरंकुश होने पर। लेकिन दर्शन कहता है कि कोई प्रतिबंध न होने पर व्यक्ति सत्ता मिलते ही निरंकुश हो जाता है अर्थात् डीसी बनाम ठसकी हो जाता है। शायद इसीलिए कहीं डीसी बनते ही व्यक्ति कोरोना प्रतिबंधों की आड़ में बदतमीज़ी करते हुए शादी में चांटे मारता है और परमिट फाड़ कर फैंक देता है या कहीं मंदिरों के नियमों में छेड़छाड़ शुरू कर देता है।
कुल मिला कर कहा जा सकता है कि ठसकने पर जब आम व्यक्ति भी ठसक मारे बिना नहीं रह पाता, तो डीसी बनने पर उसकी ठसक का क्षितिज पार करना स्वाभाविक है। इसी तरह एक बार एक सचमुच के डीसी साहिब को पुत्र रत्न की प्राप्ति होते ही उन्हें उसे दुनिया की बेहतरीन परवरिश देने की कसक पैदा हो गई। किसी ने उन्हें बताया कि बच्चे को देसी गाय का दूध पिलाने से न केवल उसका शरीर मजबूत बनता है बल्कि उसका दिमाग़ भी तेज़ी से बढ़ता है। इतना सुनते ही डीसी पिता के मन में देसी गाय पालने की कसक पैदा हो गई। धीरे-धीरे कसक, ठसक में बदलने लगी। डीसी का सरकारी आवास प्रायः इतनी ज़मीन पर बना होता है कि वहां पूरी एक कॉलोनी बसाई जा सकती है। उन्होंने सोचना आरंभ किया कि किस तरह जि़ला में चलाई जा रही तमाम स्कीमों से देसी गाय और उसे पालने की तरक़ीब निकाली जा सकती है। पिछले दो सालों से जि़लाधीशी करते हुए उन्हें नेताओं और अपने वरिष्ठ अधिकारियों के लिए ऐसी तरक़ीबें निकालने और जुगाड़ने से ऐसे कार्यों का काफी अनुभव हो गया था।
यूँ भी संतान के लिए आदमी संसार क्या सात लोकों की सारी जुगत भिड़ाता है। मामले की गंभीरता को देखते हुए कृषि और बाग़वानी विभागों के अधिकारी छुट्टी वाले दिन भी उनके आवास पर आ जुटे। घोर मंत्रणा के बाद कृषि विभाग के उप निदेशक ने बताया कि प्राकृतिक खेती या ज़ीरो बजट खेती की योजना के तहत कुछ सरकारी बजट ज़ीरो करने के बाद उपायुक्त आवास में देसी गाय पालन की प्रदर्शनी विंडो स्थापित की जा सकती है। लगे हाथ साहिब के आवास में देसी खाद बनाने के संयंत्र और सब्ज़ी-खेती का जुगाड़ भी किया जा सकता है। अब ऐसे उप निदेशक पर कौन बलिहारी नहीं जाता। सो लगे हाथ उनकी पर्सनल फाइल भी क्लियर हो गई। योजना को साकार रूप देने के लिए कृषि विभाग के उप निदेशक की अगुवाई में उन तमाम विभागों के अधिकारियों की टीम गठित की गई, जो देसी गाय ख़रीद समिति के सदस्यों के रूप में राजस्थान भ्रमण पर जाना चाहते थे। राजस्थान के लिए टीम भेजने के अन्य कारणों में आजकल वहां मौसम का अच्छा होना और देसी गाय की थार जैसी उन्नत नस्लों का पाया जाना भी शामिल था। देखते ही देखते उपायुक्त आवास में ज़ीरो बजट खेती योजना के तहत उन्नत नस्ल की तीन गायों के आने से पहले उनके उच्च स्तरीय लालन-पालन के लिए आधुनिकतम शेड का निर्माण मुकम्मल हो चुका था। योजना के पावन लोकार्पण के लिए स्वयं कृषि और पशुपालन मंत्री उपस्थित थे।
पी. ए. सिद्धार्थ
लेखक ऋषिकेश से हैं
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