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नशा समाज के लिए ऐसा दीमक है जो समय से पहले ही जीवन को समाप्त कर रहा है
डॉ. ऐश्वर्या झा
सोर्स- अमर उजाला
नशा समाज के लिए ऐसा दीमक है जो समय से पहले ही जीवन को समाप्त कर रहा है। नशीले पदार्थों के सेवन से व्यक्ति न केवल अपनी शारीरिक हानि करता है बल्कि अपने परिवार के साथ-साथ सामाजिक वातावरण को भी दूषित करता है। नशे के प्रभाव से बच्चे, बुजुर्ग और युवा कोई भी अछूता नहीं है। मादक पदार्थों के सेवन के दुष्प्रभाव से सिर्फ भारत ही नहीं पूरा विश्व जूझ रहा है। युवा पीढ़ी इसका शिकार होकर अपने भविष्य को नष्ट कर रही है, स्त्रियां इसके कारण उत्पीड़न का शिकार हो रही हैं।
नशा व्यक्ति, परिवार की खुशियां लील जाता है। नशीली दवाओं के दुरुपयोग के साथ-साथ मादक पदार्थों के अवैध व्यापार के खिलाफ लड़ाई के लिए जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 7 दिसंबर 1987 को प्रतिवर्ष 26 जून को नशीली दवाओं के दुरुपयोग और अवैध तस्करी के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय नशा निषेध दिवस मनाने का फैसला लिया। 2022 का थीम "स्वास्थ्य और मानवीय संकटों में नशीली दवाओं की चुनौतियों का समाधान' है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 के कारण बढ़ती बेरोजगारी और घटते अवसरों का सबसे ज्यादा असर निर्धनतम समुदायों पर हो रहा है और मादक पदार्थों (ड्रग्स) या नशे की लत का शिकार होने की आशंका है।
मादक पदार्थों की तस्करी
अंतरराष्ट्रीय अपराध में मादक पदार्थों की तस्करी, मानव तस्करी, आग्नेयास्त्रों की तस्करी एवं साइबर अपराध शामिल हैं। इन सब में सबसे अधिक खतरनाक ड्रग्स का व्यापार है। पिछले 15-20 वर्ष में अपने देश के लिए यह ज्वलंत मुद्दा बनकर उभरी है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार देश में ड्रग का खतरा बढ़ता जा रहा है और युवा इसके शिकार होते जा रहे हैं। इसलिए गृह मंत्रालय ने भी ड्रग्स के खिलाफ जंग को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।
राष्ट्रीय व्यापक सर्वेक्षण 2019 के अनुसार, देश में 2.1% लोग (करीब 2.26 करोड़ से अधिक) लोग ड्रग के शिकार हैं, वास्तविक आंकड़े कई गुणा अधिक होंगे। इस समूह में 10-17 वर्ष के आयु वर्ग के लोग भी हैं।
सरकारी आंकड़ों में बहुत ज्यादा नशा करने की वजह से 2017 में 745, 2018 में 875 एवं 2019 में लोगों की मौत हुई। सबसे ज्यादा मौत राजस्थान, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में हुई। इनमें 30 से 45 आयु वर्ग के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है। नशाखोरी से उपजी समस्याओं के चलते औसतन सात आठ लोग रोज आत्महत्या करते हैं।
भारत में एनडीपीएस कानून में व्यक्ति को किसी भी मादक दवा या मनोदैहिक पदार्थ के उत्पादन, रखने, बेचने, खरीदने, परिवहन, भंडारण और/या उपभोग करने सजा का प्रावधान है। इस कानून में चल रहे अपराध पर बारीकी से देखें तो पता चलता है कि हम उपयोग करने वाले शख्स एवं कुछ छोटे-मोटे बिचैलिए पर अपना शिकंजा कसते हैं।
मास्टरमाइंड कानून की पकड़ से दूर ही रहते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2020 में कुल 59,806 मामले में से 33,246 के पास नशा करने के लिए ड्रग्स मिला।
मादक पदार्थों को लेकर कानून
कानून में मादक पदार्थ के 'अवैध यातायात' के परिभाषा में कुछ विसंगति थी। कमी को देखते हुए त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने ये आदेश दिया जब तक एनडीपीएस अधिनियम की धारा 27 A में उचित रूप से संशोधन करके उचित विधायी परिवर्तन नहीं होता है, तब तक एनडीपीएस अधिनियम की धारा 2 के खंड (viii-a) के उप-खंड (i) से (v) को निष्क्रिय कर दिया गया है। केंद्र सरकार को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (संशोधन) अध्यादेश 2021 के स्थान पर संसद में नया प्रारूप लाने की कोशिश हो रही है
नशे से बचाने के लिए कानून सख्त किए जाने के साथ-साथ सबसे प्रभावी उपाय जागरूकता, परिवारों की सजगता और सहयोग पर केंद्रित किया जाना चाहिए। इससे नशे के दुष्प्रभाव के प्रति लोगों को न केवल सचेत किया जा सकता है, बल्कि इस अवैध कारोबार की सूचना भी नियामक संस्थाओं तक पहुंचाई जा सकती है।
15 अगस्त 2020 को नशीले पदार्थों के सेवन की समस्या से निपटने के लिए सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय ने 272 जिलों में नशा मुक्त भारत अभियान शुरू किया।
वित्त वर्ष 2021-22 में नेशनल एक्शन प्लान फॉर ड्रग डिमांड रिडक्शन (एनएपीडीडीआर) के तहत इन 272 जिलों में करीब 11.80 लाख लोग को लक्षित कर नशा मुक्त किया जाएगा। साथ ही 13,000 युवा स्वयंसेवियों को प्रशिक्षित कर इस समस्या के प्रति जागरूकता फैलाने का काम दिया गया था।
नशीले पदार्थों के उपभोग के मुद्दों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए लघु एवं दीर्घकालीन इलाज के साथ-साथ नशा मुक्ति के बाद पुनर्वास पर भी जोर देना चाहिए। आधे से अधिक लोग एक बार नशा को त्यागने के बाद फिर से नशे के चपेट में आ जाते हैं।
इस अभियान से जुड़े विभिन्न लोगों और संस्थाओं का क्षमता निर्माण, शैक्षणिक संस्थानों के साथ सकारात्मक साझेदारी, ड्रग्स हॉट स्पॉट वाले स्थान के स्पेशल ड्राइव और उपचार, पुनर्वास और परामर्श सुविधाओं में वृद्धि कर हम नशीली दवाओं के दुरुपयोग पर लगाम कस सकते है।
आवश्यकता इस बात की है कि पथभ्रष्ट करने वाली इस मानसिक बीमारी को लेकर लोगों में जागरूकता लायी जाए तभी इस नशा रुपी संक्रमण से बचा जा सकेगा।
Rani Sahu
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