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- भोर भए टैंकर पर
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मत पूछो, लड़ते लड़ते अब मेरी बीवी कितनी लड़ाकू टाइप की बीवी हो गई है। नेताओं से भी लड़ाकी! पर माफ करना, जब तक मेरा तबादला इस शहर नहीं हुआ था, तब तक वह बहुत ही शांत टाइप की बीवी थी। तब मैं कुछ भी कहता था तो वह सब हंसी हंसी में टाल जाती थी, पर आज मैं कुछ नहीं कहता, तब भी पतीले में रखे अंडे की तरह हर वक्त उबलती हुई। असल में उसे लडऩा मैंने नहीं, सरकारी राशन की दुकान वाले ने सिखाया। असल में उसे लडऩा मैंने नहीं, पानी विभाग वालों के नलों की सूखी हल्खों ने सिखाया, असल में उसे लडऩा मैंने नहीं, बिजली विभाग वालों के बिजली के बुझे बल्बों ने सिखाया। अब उसके लडऩे के कौशल को देख मैंने भी उसका पति होने के नाते उसके लडऩे के सारे हाथ मजबूत करने के नेक इरादे से अपने लडऩे की जीपीओ उसके नाम कर दी है। अब बल्ब में बिजली नहीं तो वह बेकिचक बिजली वालों से वही लड़ती है। मैं चुपचाप उसके सामने भीगा बिल्ला बना रहता हूं। अब नल में जल नहीं तो वह बेकिचक पानी वालों से वही लड़ती है। मैं चुपचाप उसके सामने भीगा बिल्ला बना रहता हूं। सरकारी राशन की दुकान में राशन नहीं मिलता तो वह बेकिचक राशन की दुकान वाले से भी वही लड़ती है। मैं चुपचाप उसके सामने भीगा बिल्ला बना रहता हूं।
लडऩे के बाद थक कर वह मुझे आराम करती समझाते हुए कहती है, सुनो! पार्थ! इस देश में लड़े बिना कुछ मिलने वाला नहीं। यहां बात बात पर लडऩे की कला ही स्वस्थ जीवन जीने की कला है। जबसे हम इस कालोनी में सिधारे हैं, मानसून के आ जाने के बावजूद भी रोज पानी की लड़ाई लड़ रही है पानीपत की लड़ाई से भी खतरनाक लड़ाई। पर खुशी की बात! वह हर बार तय बाल्टियों में पानी लेकर ही विजय की मुद्रा में लौटती है। रोज सुबह सुबह चार बजे उठकर भगवान का नाम लेने के बदले पानी विभाग और मुझे मन ही मन गालियां देती हुई पानी का टैंकर आने वाली जगह अपनी बाल्टियां छोड़ आती है। उसके बाद घर आकर आधे चैन से मन ही मन मुझसे लड़ती हुई सो जाती है। जैसे ही उसे पक्षियों के चहचहाने के बदले पानी के टैंकर के आने की आवाज सुनाई देती है, वह झटके से उठ चलते चलते ही अनुलोम विलोम करती टैंकर की ओर लपकती है।
तब तक वहां पर पानी के लिए पानीपत का युद्ध शुरू हो चुका होता है। हनुमान द्वारा लंका में आग लगाए जाने के बाद रावण की रानियों का पानी! पानी! पानी! सब रानी अकुलानी कहैं, जाति हैं परानी, गति जानी गजचालि है। पानी के लिए पानी वालों से अधिक उनके बरतन आपस में लड़ भिड़ रहे होते हैं तो पानी के बरतनों से अधिक पानी को लेकर पानी वालों के हाथ मुंह। पानी के लिए लडऩे के पूरे मूड में जब वह वहां जाकर देखती है कि जिस जगह उसने लाइन में पानी के लिए अपनी लड़ लड़ कर पिचकी बाल्टियां रखी थीं, वे वहां से बहुत पीछे सरकाई जा चुकी हैं तो वह पानी के हक के लिए अपनी जगह पानी को रखे बरतन वाले के साथ उलझ लेती है दोकलाम वाली मुद्रा में। पानी के लिए इस छीना झपटी में जहां उसने पानी के लिए बाल्टियां रखी होती हैं, वह उन्हें उससे आगे रखने में वह कामयाब हो जाती है। …और जब वह पानी की बाल्टियां दोनों हाथों में उठाए गजगामिनी घर आती है तब ऐसा लगता है मानों वह पानी की नहीं, अमृत की बाल्टियां भर कर ला रही हो। मत पूछो, उस वक्त उसके चेहरे पर विजयी होने के भाव इतने प्रखर हुए होते हैं कि घर में पानी आ जाने की खुशी के बाद भी मुझे उससे अजीब सी किस्म का भय लगने लगता है।
अशोक गौतम
By: divyahimachal
Rani Sahu
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