सम्पादकीय

बेटियां भयमुक्त, बेटे संस्कारयुक्त हों

Rani Sahu
25 May 2022 7:10 PM GMT
बेटियां भयमुक्त, बेटे संस्कारयुक्त हों
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किसी ज़माने में बहुत कम लड़कियां शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा ग्रहण करती थी

किसी ज़माने में बहुत कम लड़कियां शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा ग्रहण करती थी। विभिन्न विभागों में महिला कर्मचारियों की संख्या न के बराबर होती थी। महिलाओं का नौकरी करना तथा घर से बाहर निकलना सामाजिक दृष्टि से अच्छा नहीं समझा जाता था। पुलिस तथा फौज में तो महिला कर्मियों की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। आर्थिक अभाव, अधिकारों की जागरूकता के अभाव तथा अशिक्षा के कारण यह समाज में एक आम प्रचलन था। उन्हें बचपन से ही दूसरे घर की अमानत या सम्पत्ति समझा जाता था। छोटी उम्र में ही उनकी शादी कर पारिवारिक बोझ डाल दिया जाता। सामाजिक तथा पारिवारिक प्रचलन में अशिक्षित लड़कियां न तो अपने अधिकारों की जानकारी रखती और न ही विरोध में बोलने की हिम्मत रखती। अब तो जमाना बदला है। अब बेटियां और महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं। बेटियां उच्चतर शिक्षा प्राप्त कर बड़े से बड़े पदों पर आसीन हैं। पुलिस, सेना, प्रशासन, राजनीति, शिक्षा जगत, स्वास्थ्य, विज्ञान, खेल, फैशन वल्र्ड, सिनेमा जगत, बहुराष्ट्रीय कंपनियों तथा समाज सेवा के क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी प्रतिभा तथा क्षमताओं को साबित किया है। अब महिलाएं हवाई जहाज़ तथा फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं। ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहां बेटियों तथा महिलाओं ने अपनी सफलता के झंडे न गाड़े हों।

विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त कर रही लड़कियों की संख्या में आशातीत वृद्धि हुई है। सार्वजनिक क्षेत्रों तथा कार्यालयों में महिलाएं पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर राष्ट्रीय निर्माण तथा विकास में अपना योगदान दे रही हैं। इस दिशा में महिला कानून तथा महिला अधिकारों ने भी उन्हें संरक्षण दिया है। बेटियों को स्वतंत्र रूप से आगे बढऩे के अवसर मिले हैं। विभिन्न क्षेत्रों में उनके लिए रोजग़ार के अवसर मिले हैं। वे आर्थिक रूप से सबल और स्वतंत्र हुई हैं। अब वे अपने फैसले स्वयं लेने में सक्षम हुई हैं। कुल मिलाकर आज बेटियां, महिलाएं सभी क्षेत्रों में पुरुषों को पीछे छोड़ चुकी हैं। ये सब परिवर्तन होने के बावजूद विचारणीय है कि क्या हम बेटियों तथा महिलाओं को पूर्ण रूप से सामाजिक संरक्षण दे पाए हैं? क्या सच में वे साधन सम्पन्न हो चुकी हैं? क्या वे आज भी स्वतंत्र आर्थिक फैसले ले सकती हैं? क्या वे सामाजिक रूप से पूर्णत: सुरक्षित हैं? आज भी वे सिरफिरों तथा दरिंदों की गिद्ध दृष्टि से नहीं बच पाती। आज भी उनका मानसिक तथा शारीरिक शोषण होता है। आज भी बलात्कार, जोर-जबरदस्ती, हत्या के समाचार समाचारपत्रों में छपना सामान्य बात है। आज भी वे छेड़छाड़, घरेलू हिंसा, जोर-जबरदस्ती, बलात्कार तथा हत्या की शिकार होती हैं।
गुडिय़ा तथा प्राची राणा जैसी बेटियों को दरिंदों ने अकारण मौत की नींद सुला दिया। अभी हाल ही में किन्नौर के भावानगर में तेरह वर्षीय नेपाली मूल की छात्रा की हत्या कर लाश को बैड बॉक्स में छुपाने जैसी घटनाएं बेटियों की सुरक्षा पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह है। दुनिया के आसमान पर बुलंदियों के झंडे गाडऩे वाली बेटियां या महिलाएं आज कितनी सुरक्षित हैं, यह विचारणीय है। यहां यह भी जानना, समझना तथा विचार करना आवश्यक है कि भौतिकवाद के नशे में अधिकारों की स्वतंत्रता, आर्थिक आज़ादी तथा फैसले लेने की स्वतंत्रता ने कुछ बेटियों और महिलाओं को पारिवारिक तथा सामाजिक मर्यादाओं से दूर कर दिया है। आए दिन विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में पढऩे वाली बिगड़ैल छात्राओं के गाली-गलौच, मारपीट तथा अमर्यादित आचरण के वीडियो वायरल होते हुए देखे जा रहे हैं। संयमित एवं मर्यादित आचरण प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकता है, फिर चाहे वह पुरुष हो या महिला। आज आधुनिकता की चकाचौंध में लिंगभेद रहित अधिकारों की स्वतंत्रता के दौर में बहुत सी युवतियों तथा महिलाओं को सिगरेट के धुएं के छल्ले उड़ाते भी आसानी से देखा जा सकता है। शराब के नशे में धुत कई लड़कियों को लडख़ड़ाते तथा हुल्लड़ बाजी करते हुए देखा गया है। आज लडक़ी द्वारा लडक़ी को सरेआम पीटने के वीडियो वायरल होते अक्सर देखे जा रहे हैं। वर्तमान में अनेकों प्रकार के नशे लड़कियां भी कर रही हैं। यद्यपि परिधान किसी भी व्यक्ति का व्यक्तिगत विषय हो सकता है तथा इस पर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती, तथापि सौम्य तथा संस्कारित परिधान हमारे शरीर की सुंदरता को कई गुणा बढ़ा देता है। सुंदरता शरीर की नग्नता में नहीं, बल्कि परिधान की मर्यादा में होती है। बेटियों तथा महिलाओं से बदतमीजिय़ों तथा छेड़छाड़ के अनेक कारण हो सकते हैं जिसके लिए केवल लडक़ों को ही उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। बहुत से मामलों में उकसाने के लिए लड़कियां भी जि़म्मेदारी होती हैं।

हां, यहां परिधान ही नहीं बल्कि किसी व्यक्ति की मानसिकता तथा अंतर्मन में क्या चल रहा है, कहा नहीं जा सकता। सुशिक्षा, परवरिश तथा संस्कारों के अभाव में पता नहीं कितने अविवाहित तथा विवाहित लडक़ों तथा लड़कियों के जीवन तबाह होते देखे गए हैं। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ तथा बेटा समझाओ के इस दौर में अभिभावकों का सजग तथा जागरूक होना बहुत आवश्यक है। यह ठीक है कि बेटी के बिना सृष्टि नहीं है, लेकिन बेटे के बिना भी तो सम्पूर्णता नहीं है। बेटे और बेटी में किसी भी तरह का लिंगभेद तथा भेदभाव न होते हुए यह आवश्यक है कि बेटों को अच्छे संस्कार दिए जाएं। उन्हें यह बताया तथा समझाया जाए कि महिला सम्मान के विपरीत न जाएं। सभी को मान-सम्मान, स्वाभिमान तथा भयमुक्त होकर जीवन जीने का अधिकार है। उन्हें पारिवारिक संस्कारों के साथ किसी की निजता तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता का ध्यान रखना होगा। बेटियों के लिए भयमुक्त वातावरण तथा बेटों के लिए संस्कार युक्त जीवन सामाजिक सौहार्द, शांति तथा समरसता के लिए बहुत ही आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति में विचारों की शुद्धता, मानसिक पवित्रता तथा आचरण में व्यावहारिकता आवश्यक है। विचारों के प्रदूषण, गैर जि़म्मेदार आचरण से समाज में अनाचार पैदा होता है। संस्कारों के अभाव में लड़कियां भी अपनी मान-मर्यादा से पथभ्रष्ट होती हुई देखी गई हैं और लडक़े भी अपनी स्वतंत्रता की सीमाओं को लांघते हुए पाए गए हैं। अभिभावकों को अपने अच्छे आचरण एवं उदाहरण से बच्चों को अच्छे संस्कार देने चाहिए। तभी यह समाज भयमुक्त, संस्कार युक्त तथा चिंता मुक्त होगा। याद रखें, संस्कार ही अपराध को रोक सकते हैं, सरकार नहीं।
प्रो. सुरेश शर्मा
लेखक घुमारवीं से हैं

सोर्स -divyahimachal



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