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- आटे पर डाटा भारी

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हम घर के चार जन हैं। पहले हमारे घर में महीने का बीस किलो आटा, दस किलो चावल लगते थे। कई बार तो ऐसा होता था कि महीने की सत्ताईस तारीख को आटा, चावल पड़ोसियों से उधार लेना पड़ता था मुंह लटकाए हुए। बच्चों की भूख थी कि शैतान की आंत की तरह बढ़ती ही जा रही थी। लगने लगा था अब सरकार को अपनी सरकारी राशन की दुकानों पर पर व्यक्ति आटा-दाल का कोटा बढ़ा देना चाहिए। पर जबसे मैंने घरवालों की मांग पर घर में अनलिमिटिड डाटे वाला कनेक्शन लगवाया है, तबसे हमारे घर में आटे, दाल, चावल की खपत कम होती जा रही है। जब तक पर डे डेढ़ जीबी डाटे वाला पैक हम सबके मोबाइल में होता था, घर में आटे पर जोर था। तब सब संभल संभल कर अपने डाटे का प्रयोग करते थे कि कहीं वह खत्म न हो जाए। खत्म हो गया तो रहो डाटा उधार देने वाले के फोन की ओर टकटकी लगाए। या फिर उससे डाटा उधार इस शर्त पर कि कल जो उधार देने वाले को डाटे की जरूरत पड़ेगी तो वह उधार लिया डाटा सादर लौटा देगा। सच कहूं तो जबसे घर में अनलिमिटिड डाटे वाला कनेक्शन लगा है, पड़ोसियों से आटा, दाल, चावल उधार मांगना तो दूर, हम सरकारी राशन की दुकान से मिला अपना आटा, दाल, चावल ही खत्म नहीं कर पा रहे हैं। उसमें कीड़े पडऩे लगे हैं। जिसको पहले आठ चपातियों की भूख होती थी वह अब दो भी बड़ी मुश्किल से खा पा रहा है।
पत्नी रसोई में कुछ बनाने के बदले हर वक्त यूट्यूब पर खाना बनाने की एक से एक रैसिपियां देख बारह महीने फटे होंठों पर जीभ फेरती रहती है। पर घर में खाना बनता ही नहीं। बनता है तो उसे खाने वाला कोई नहीं। पता नहीं हमारी भूख को किसकी नजर लग गई? बच्चों को खाना खाने को कहता हूं तो वे बुरा सा मुंह बना किनारे हो लेते है। सच कहूं तो कई बार डाटे का रसपान करते करते मैं भी कई बार इतना थक जाता हूं कि कुछ भी न खाने के बाद भी पेट भरा भरा सा लगता है। लगता है, आधी चपाती भी अब खा ली तो पेट खराब हो जाएगा। फिर खाते रहो हाजमा ठीक करने की गोलियां। कई बार तो लगता है कि जो मजा डाटा खाने में है वह आटा खाने में कहां! एक मीठा सच आपसे साझा करूं तो अब तो हमारे घर में ब्रेक फास्ट डाटे का होता है। लंच भी डाटे का ही होता है। और डिनर भी। वह दिन दूर नहीं जब हम पानी के बदले भी डाटा पीने लगेंगे। सांस हवा की लेने के बदले डाटे की लेने लगेंगे। अब तो कई बार तो जब कोई गेस्ट हमारे यहां आता है तो जो उसे गलती से चाय बनाने का समय निकाल ही दिया जाए तो वह झल्ला कर कहता है,‘ क्या यार! चाय? घर में है डाटा है तो चार घूंट गर्मा गर्म डाटा पिला दो। डाटा पीने में जो मजा है वह कहवा पीने में कहां! डाटा में जो मिठास है, वह गुलाब जामुन में कहां।’ हे फ्री के सिर पर सत्ता में आने वालो सावधान! डर है कल को कहीं देश डाटाल्कोहिलिक न हो जाए। डर है कि कल को कहीं हम चपाती चबाना न भूल जाएं। डर है कल को हम पानी पीना ही न भूल जाएं। अत: देश के स्वास्थ्य पर पल-पल नजर रखने वालों से आग्रह है कि जन हित में वे मल्टीग्रेन आटे की जगह अब बाजार में मल्टीग्रेन डाटा उतारें तो देश के पेट में कुछ जाए। वर्ना लेते रहो डाटे के डकार।
अशोक गौतम
By: divyahimachal

Rani Sahu
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