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Written by जनसत्ता: बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम के चार विधायकों को आरजेडी ने अपने पाले में खींच कर सीमांचल में पार्टी मजबूत बेशक कर लिया हो, लेकिन यह धर्मनिरपेक्ष का तगमा लेकर चलने वाले राजनीतिक दलों की आपसी खींचतान का नतीजा है। दलबदल कानून के लचीलेपन का फायदा उठा कर सभी राजनीतिक दल अपनी पार्टियों को मजबूत करने में लगे हुए हैं, लेकिन लोकतंत्र को कमजोर कर रहे हैं। पिछले दस वर्षों में देखा जाए तो उत्तराखंड, गोवा, झारखंड, हरियाणा और पूर्वोत्तर के राज्यों में दलबदल कानून की धज्जियां उड़ाते हुए अनेक राजनीतिक दल सत्ता पर काबिज हुए हैं। यह किसी भी देश के लिए बहुत खतरनाक परंपरा है।
आखिर यह कब तक चलेगा कि अपनी पार्टी में से विधायकों का एक समूह बना लो, दूसरी पार्टियों से सांठगांठ करो और सत्ता पर काबिज हो जाओ। नैतिकता और शुचिता की दुहाई देने वाले इन राजनीतिक दलों को कहीं तो रोकना होगा। अब समय आ चुका है कि दलबदल कानून को और मजबूत किया जाए। चुनाव आयोग को इस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है और एक उच्च स्तरीय समिति का गठन कर सुझाव तैयार कर इसको केंद्र के पास भेजा जाए, ताकि संसद में प्रस्ताव पास कर दलबदल कानून में आवश्यक संशोधन किया जा सके।
बढ़ती महंगाई के लिए कई बिंदुओं को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। कोरोना महामारी में पूर्णबंदी की वजह से उत्पादन, आयात-निर्यात सब कुछ रुक गया था। इसके कारण देश में बेरोजगारी और गरीबी बढ़ी। फिर महंगाई और कालाबाजारी को भी प्रोत्साहन मिला। आज देश में पेट्रोल, डीजल सहित खाद्य तेलों में जो आग लगी हुई है इसका सीधा असर खुदरा और थोक महंगाई के रूप में सामने आ रहा है। आज आबादी का बड़ा हिस्सा जैसे-तैसे दो जून की रोटी जुटा पा रहा है। यह सही है कि सरकारें अपना राजस्व बढ़ाने के लिए हर तरह के प्रयास करती हैं, पर आम आदमी की रोटी की कीमत पर तो यह कतई नहीं होना चाहिए।