सम्पादकीय

अवैध खनन का खतरनाक सिलसिला, जंगल, नदी और पहाड़ के बाद अब लोगों की जान का भी दुश्मन बना माफिया

Gulabi Jagat
24 July 2022 4:38 PM GMT
अवैध खनन का खतरनाक सिलसिला, जंगल, नदी और पहाड़ के बाद अब लोगों की जान का भी दुश्मन बना माफिया
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[पंकज चतुर्वेदी]। पिछले दिनों हरियाणा के नूंह जिले में खनन माफिया ने जिस तरह से डीएसपी सुरेंद्र सिंह को ट्रक से कुचल कर मार दिया, उससे एक बार फिर उनके निरंकुश इरादे उजागर हुए हैं। यह घटना अरावली पर्वतमाला में अवैध खनन से संबंधित है। इसका अस्तित्व गुजरात से दिल्ली तक है। इसी के चलते यह इलाका पाकिस्तान की तरफ से आने वाली रेत की आंधी और रेगिस्तान होने से बचा है। इसी अरावली के वन क्षेत्र में अतिक्रमण के कारण पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सवा लाख की आबादी वाले खोरी गांव को हटाया था।
यह वही अरावली है, जिसके बारे में 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि राजस्थान की कुल 128 पहाड़ियों में से 31 को क्या हनुमानजी उठा कर ले गए? इससे पता चलता है कि इतनी सारी पाबंदियों के बाद भी अरावली की पहाड़ियों पर चल रहे अवैध खनन से भारत पर किस तरह का खतरा है। जब किसी क्षेत्र के विकास का एकमात्र पैमाना चौड़ी सड़कें, गगनचुंबी इमारतें और भव्य प्रासाद बन जाते हैं तो इसका खामियाजा वहां की जमीन, जल, जंगल और जन को ही उठाना पड़ता है।
सच्चाई तो यही है कि निर्माण कार्य से जुड़ी प्राकृतिक संपदा का गैरकानूनी खनन खासकर पहाड़ से पत्थर और नदी से बालू अब हर राज्य की राजनीति का हिस्सा बन गया है। पंजाब हो या मध्य प्रदेश या बिहार या फिर तमिलनाडु, अवैध खनन के आरोप से कोई भी अछूता नहीं है। असल में इस दिशा में हमारी नीतियां ही 'गुड़ खाकर गुलगुले से परहेज' की हैं।
बरसात के दिनों में छोटी-बड़ी नदियां सलीके से बह सकें, इस उद्देश्य से एनजीटी (राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण) ने समूचे देश में नदियों से रेत निकालने पर 30 जून से चार महीने के लिए पाबंदी लगाई हुई है, लेकिन क्या इस तरह के आदेश जमीनी स्तर पर क्रियान्वित होते हैं? वास्तविकता तो यह है कि किसी भी राज्य में इस दौरान सरकारी या निजी निर्माण कार्य पर कोई रोक नहीं है। अब बगैर रेत-पत्थर के कोई निर्माण कार्य कैसे जारी रह सकता है। जाहिर है ऐसे आदेश कागजों तक सीमित हैं।
वैसे तो खनन माफिया की नजर दक्षिण हरियाणा की पूरी अरावली पर्वत शृंखला पर है, लेकिन अभी सबसे अधिक अवैध खनन गुरुग्राम, फरीदाबाद एवं नूंह इलाके में हो रहा है। यहां के अधिकतर भूभाग भूमाफिया वर्षों पहले ही खरीद चुके हैं। अवैध खनन की वजह से इन इलाकों की कई पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं। नूंह जिले के जिस गांव में डीएसपी सुरेंद्र सिंह बलिदान हुए, असल में वह गांव भी अवैध है। अरावली की पहाड़ी तक जाने का रास्ता इस गांव के बीच से ही जाता है। इस गांव से कोई पुलिस या अनजान गाड़ी गुजरती है तो अवैध खनन करने वालों को गांव से खबर कर दी जाती है।
पहाड़ी पर भी कई लोग इस बात की निगरानी करते हैं और सूचना देते हैं कि पुलिस की गाड़ी आ रही है। यहां क्रशर भी धड़ल्ले से चल रहे हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि क्रशर के लिए कच्चा माल ऐसे अवैध खनन से मिल जाता है। हरियाणा के नूंह जिले की पुलिस डायरी बताती है कि वर्ष 2006 से अभी तक 86 बार खनन माफिया ने पुलिस पर हमले किए हैं। यह एक बानगी है कि खनन माफिया पुलिस से भी टकराने में नहीं डरता।
यही नहीं, अवैध खनन लोगों की भी जान ले रहा है। बीते करीब एक वर्ष में नदियों से रेत निकालने के दौरान हमारे देश में कम से कम 418 लोग मारे गए और 438 घायल हुए हैं। इनमें से 49 मौतें खनन के लिए नदियों में खोदे गए कुंड में डूबने से हुई हैं। अवैध खनन के खिलाफ आवाज उठाने वालों पर हमले भी खूब हुए हैं। खनन माफिया के हमले में दो सरकारी अधिकारियों की मौत हुई है और 126 अधिकारी घायल हुए हैं। अवैध खनन से जुड़े लोगों के बीच भी झगड़े होते हैं। ऐसे ही गैंगवार में सात लोगों की मौत हुई है और इतने ही घायल हुए।
वास्तव में नदी एक जीवित संरचना है। रेत उसके श्वसन तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है। भीषण गर्मी में सूख गए नदियों के आंचल को जिस निर्ममता से उधेड़ा जा रहा है वह इस बार के विश्व पर्यावरण दिवस के नारे 'केवल एक धरती' और 'प्रकृति के साथ सामंजस्य से टिकाऊ जीवन' के बिल्कुल विपरीत है। हमें पता होना चाहिए कि मानव जीवन के लिए जल से ज्यादा जरूरी जलधाराएं हैं।
नदी महज पानी के परिवहन का मार्ग नहीं होती, वह धरती के तापमान को संतुलित करती है, जलतंत्र के अन्य अंग जैसे जलीय जीवों एवं पौधों के लिए आसरा होती है, लेकिन आज अकेले नदी ही नहीं मारी जा रही, बल्कि उसकी रक्षा का साहस करने वाले भी मारे जा रहे हैं। याद होगा वर्ष 2012 में मध्य प्रदेश के मुरैना में नूंह की ही तरह युवा आइपीएस अफसर नरेंद्र कुमार को पत्थर से भरे ट्रैक्टर द्वारा कुचल कर मार दिया गया था। आगरा, इटावा, फतेहाबाद से लेकर गुजरात तक ऐसी घटनाएं हर रोज होती हैं। कुछ दिन इस पर रोष होता है। सख्ती होती है, लेकिन फिर सब कुछ पुराने ढर्रे पर लौट आता है। खनन-माफिया यथावत काम करने लगते हैं। पर्यावरण संरक्षण और कानून अनुपालन पर बात ही नहीं होती है।
जब तक निर्माण कार्य से पहले उसमें लगने वाले पत्थर, रेत, ईंट की आवश्यकता का आकलन नहीं होगा। जो उस निर्माण का ठेका ले रहा है उससे पहले ही सामग्री जुटाने के स्रोत नहीं पूछे जाएंगे, तब तक अवैध खनन और खनन में रसूखदार लोगों के दखल को रोका नहीं जा सकता। आधुनिकता और पर्यावरण के बीच संतुलित विकास की नीति पर गंभीरता से काम करना जरूरी है। अवैध खनन जंगल, नदी, पहाड़ और अब जन की जान का भी दुश्मन बन चुका है। यह केवल कानून का नहीं, बल्कि मानवीय और पर्यावरणीय अस्तित्व का भी मसला है।
(लेखक पर्यावरण मामलों के जानकार हैं)
Gulabi Jagat

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