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सिजोफ्रेनिया (Schizophrenia) एक बेहद गंभीर मेंटल डिसऑर्डर है
डॉ. संजय चुग
सिजोफ्रेनिया (Schizophrenia) एक बेहद गंभीर मेंटल डिसऑर्डर है. इस बीमारी की वजह हैल्युसिनेशन (मतिभ्रम) के लक्षण नजर आ सकते हैं. इसके अलावा मरीज के व्यवहार में भी दिक्कतें आ सकती हैं, जिससे दैनिक कामकाज प्रभावित होता है यह कुछ ऐसी बीमारी है, जो 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में बेहद असामान्य है. लेकिन उन किशोरों में सिजोफ्रेनिया के लक्षणों में अचानक इजाफा देखा गया, जिनकी उम्र 13 साल या उससे ज्यादा होती है. वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो 13 से 18 साल तक के 25 फीसदी बच्चों में इस बीमारी का प्रसार मिला है, जो एक काफी बड़ी संख्या है.यह कहना बेहद मुश्किल है कि इस तरह के मामलों की संख्या बढ़ रही है या नहीं, लेकिन इतना तय है कि इस तरह की मानसिक बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़ी है.
वहीं, इस बीमारी को लेकर तमाम उल्टी-सीधी मान्यताएं और भ्रांतियां कम हुई हैं. फिलहाल रिपोर्ट किए गए मामलों की संख्या पांच से 10 साल पुराने मरीजों की तुलना में काफी ज्यादा है. यह अभी स्पष्ट नहीं है कि अब इस बीमारी के मामलों को रिपोर्ट किया जा रहा है या सही में केस बढ़ रहे हैं. इस मसले पर सिर्फ ज्यादा रिसर्च ही स्थिति को स्पष्ट कर सकती है.
पहचान और इलाज
किशोरों में सिजोफ्रेनिया को पहचानने की कोशिश करना अक्सर बेहद मुश्किल होता है. जब मैं किसी किशोर में बीमारी के शुरुआती लक्षण के रूप में जो लक्षण देखता हूं तो वे अनुमान से काफी अलग होते हैं और वयस्कों में देखे जा सकते हैं.
इसके अलावा 'लड़कपन का व्यवहार' और बीमारी के लक्षण काफी आसानी से कंफ्यूज कर देते हैं. ऐसे में बच्चों को सोशल इंटरेक्शन में मुश्किलों से जूझना पड़ सकता है. इसके अलावा वह (लड़का या लड़की) समाज से पूरी तरह कट सकता है और उसका व्यवहार दूसरों से एकदम विपरीत हो सकता है. मेरे लिए तो बड़े होने के दौरान यह सब मेरी जिंदगी का हिस्सा रहा है.
ये होते हैं लक्षण
इस बीमारी की वजह से पढ़ाई करने की इच्छा में कमी आ जाती है. वहीं, इस मोड़ पर जिंदगी में इस कदर बदलाव होते हैं कि पढ़ाई-लिखाई मुख्य प्राथमिकता में ही नहीं रहती है. इसके बाद कुछ शारीरिक समस्याएं होती हैं, जिन पर ध्यान दिया जा सकता है. भूख लगने में बदलाव हो सकता है, जिसकी वजह से वजन घट सकता है और सुंदरता में भी कमी आ सकती है. ये लक्षण कुछ ऐसे हैं, जिन्हें हमें सही तरीके से समझ नहीं पाते हैं और बीमारी बिना पहचान के रह जाती है. यदि इस बीमारी की पहचान में देरी होती है तो इसकी गंभीरता और उग्रता में इजाफा होने लगता है. बाद में इसका इलाज करना मुश्किल हो जाता है.
क्या गेमिंग और सिजोफ्रेनिया के बीच कोई संबंध है?
हकीकत में मैं तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल, गेमिंग के बढ़ते ट्रेंड और वीडियो गेम के बढ़ते उपयोग के बीच कोई संबंध नहीं देखता हूं, जिससे किशोरों में सिजोफ्रेनिया का प्रसार या मामलों में इजाफा होता है.
क्या साइकोट्रोपिक दवाएं ओवर-द-काउंटर उपलब्ध हैं?
एक समय था, जब आप देश के किसी भी हिस्से में किसी भी केमिस्ट के पास जा सकते थे और मनचाही दवा ले सकते थे और वह दवा आपको मिल जाती थी. लेकिन अब कानून सख्त हो गए हैं और फार्मेसियां, खासकर बड़े शहरों में अधिक सतर्क हो गई हैं.
मुझे पता है कि मेरे मरीज, जो ऐसी दवाओं के लिए किसी फार्मेसी पर गए तो उनमें से लगभग सभी को डॉक्टर का पर्चा लाने के लिए कहा गया.
लेकिन ऐसे मरीजों की संख्या भी काफी ज्यादा है, जो दो से पांच साल पहले इलाज के लिए मेरे संपर्क में आए थे, उनके पास आज भी पुराने प्रिस्क्रिप्शन मौजूद हैं. और जब आप उनसे इलाज के बारे में पूछते हैं तो वे कहते हैं कि इलाज चल रहा है. ऐसे में आपके पड़ोस में मौजूद केमिस्ट बेहद खुशी के साथ आपको दवाएं दे देते हैं. यह बेहद दुखद है, लेकिन भारत की गंभीर हकीकत है.
सोर्स- tv9hindi.com
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Rani Sahu
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