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- खतरा बनता नशे का धंधा
अभिषेक कुमार सिंह; किसी समाज और देश को भीतर से खोखला करना हो तो उसकी युवाशक्ति को नशे के गर्त में धकेलना काफी है। हाल के वर्षों में देश के अलग-अलग हिस्सों में नशीले पदार्थों की बरामदगी, जब्ती और मादक पदार्थों की आपूर्ति के संजाल के खुलासों पर नजर दौड़ाई जाए, तो कह सकते हैं कि नशे की गिरफ्त में जाती हमारी युवा पीढ़ी ऐसे ही संकट से दो-चार है।
मामला सिर्फ यह नहीं है कि चौकसी बरते जाने के कारण देश में मादक पदार्थों की भारी-भरकम खेपें पकड़ी जा रही हैं, बल्कि गंभीर पहलू यह भी है कि आखिर इस नेटवर्क में कौन लोग शामिल हैं, ये मादक पदार्थ कहां से आ रहे और कहां जा रहे हैं और इतनी भारी खपत हमारे देश के किन इलाकों व समाज के किन वर्गों के बीच हो रही है।
इस समस्या का एक सिरा इससे भी जुड़ता है कि दिखावे की परंपरा, अमीरों जैसी रहन-सहन वाली शैली, परिवारों की टूटन, बेरोजगारी या अकेलेपन आदि ने ही तो कहीं हमारी युवा पीढ़ी को जाने-अनजाने नशे की अंधेरी गलियों में नहीं धकेल दिया है!
देश के विभिन्न हिस्सों में मादक पदार्थों की धरपकड़ में इधर काफी तेजी आई है। हाल में मुंबई की मादक द्रव्य निरोधी इकाई (एंटी नारकोटिक्स सेल) ने गुजरात के भरूच जिले के अंकलेश्वर में नशीले पदार्थ बनाने वाली फैक्ट्री का भंडाफोड़ कर एक हजार करोड़ रुपए से ज्यादा के पांच सौ तेरह किलो नशीले पदार्थों की बरामदगी के साथ सात लोगों को पकड़ा था।
इसी तीन अगस्त को मुंबई के नालासोपारा से चौदह अरब रुपए की नशीली दवा मेफेड्रान-एमडी पकड़ी गई थी। पता चला था कि ये खेपें उच्च वर्ग के युवाओं के दायरों में बेची जा रही हैं। यही नहीं, मादक पदार्थों के इस गोरखधंधे में लगे लोग कारोबार के लिए सोशल मीडिया और अन्य आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, ताकि उनकी आसानी से धरपकड़ न हो सके।
उल्लेखनीय यह भी है कि मादक पदार्थों की यह आपूर्ति देश के बाहर के कई ठिकानों से हो रही है। गुजरात में मुंद्रा और पीपीववा जैसे निजी बंदरगाह देश में बाहर से नशीले पदार्थों के कारोबार के प्रवेश द्वार बन गए हैं। वर्ष 2017 से 2020 के दौरान गुजरात में ढाई लाख करोड़ रुपए की नशीली दवाएं पकड़ी जाना इस बात का संकेत है कि एजंसियां इस गोरखधंधे में शामिल लोगों को पकड़ने में नाकाम रही हैं।
वरना कैसे ये मादक पदार्थ हमारे यहां पहुंच रहे हैं? शायद इसकी एकमात्र वजह यही है कि इस कारोबार में लगे लोगों को कहीं न कहीं राजनीतिक संरक्षण हासिल है और इसलिए पुलिस व केंद्रीय एजंसियां अवैध कारोबार में लगे असली दोषियों को पकड़ने में हिचकिचाती हैं।
नशीले पदार्थों की तस्करी में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल बढ़ना और चिंता पैदा कर रहा है। यह एक किस्म का नार्को आतंकवाद है जिस पर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। वर्ष 2019 में अटारी-वाघा सीमा पर पांच सौ किलो से ज्यादा हेरोइन बरामद होने के दो साल बाद पिछले साल दिसंबर में गुजरात तट पर एक पाकिस्तानी नाव से सतहत्तर किलो हेरोइन की जब्ती से ऐसा संकेत मिला था कि सीमा पर सख्ती के चलते आतंकवादियों को हथियार व गोला-बारूद जुटाने में मदद के लिए नशे की खेपों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
इसके सबूत भी मिल चुके हैं कि बड़े पैमाने पर ड्रोनों का इस्तेमाल भारतीय क्षेत्रों में नशे की खेप पहुंचाने के लिए किया जाता रहा है। सितंबर, 2020 में गुजरात के कच्छ इलाके में मुंद्रा बंदरगाह पर करीब तीन हजार किलो हेरोइन की बरामदगी ने देश को चौंका दिया था। इससे यह पता चला था कि नशे की तस्करी के लिए समुद्री मार्गों का भी लगातार इस्तेमाल हो रहा है।
भारत को यह खेप अफगानिस्तान से ईरान के रास्ते भेजी गई थी, जो यह बताता है कि नई पीढ़ी को पथ भ्रष्ट करने के लिए किस तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साजिशें हो रही हैं। असल में नशीले पदार्थों की तस्करी में जिस तरह के तरीके अपनाए जाने लगे हैं, उनके कारण भी इनकी आपूर्ति को रोक पाना मुश्किल होता रहा है। जैसे कच्छ में मुंद्रा बंदरगाह पर तीन हजार किलो हेरोइन ईरानी टेल्कम पाउडर की शक्ल में बरामद हुई थी।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में इक्कीस हजार करोड़ रुपए कीमत वाली इस खेप को सबसे बड़ी बरामदगी बताया गया था। वर्ष 2021 में मादक पदार्थों की धरपकड़ के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन बताता है कि पहले पूरे साल जांच एजंसियां नशे की जो खेपें पकड़ती थीं, उसमें कुल मिला कर सालाना बरामदगी ढाई हजार किलो तक रहती थी, लेकिन मुंद्रा पोर्ट पर एक ही बार में तीन हजार किलो हेरोइन का देश में आना बताता है कि देश में या तो इसकी खपत कई गुना बढ़ गई है या फिर भारत नशीले पदार्थों की आपूर्ति के किसी नेटवर्क का बड़ा केंद्र बन गया है। दोनों ही सूरतों में हालात चिंताजनक हैं।
यदि पकड़ी गई खेप विशुद्ध हेरोइन हुई तो देश में खपत को आधार बनाने से जुड़ा आकलन बताता है कि इसे पचहत्तर लाख युवाओं को नशे की चपेट में लाया जा सकता था। इस तरह तीन हजार किलो हेरोइन एक व्यक्ति द्वारा एक दिन में सेवन की जाने लायक चार सौ साठ मिलीग्राम की न्यूनतम पचहत्तर लाख खुराकों में तब्दील हो सकती है। अगर यह हेरोइन मिलावटी हुई तो भी इससे पंद्रह लाख लोगों के इस्तेमाल लायक खुराकों में बदला जा सकता है।
ऐसी धरपकड़ अकेले गुजरात में नहीं हुई हैं, बल्कि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब, तेलंगाना, तमिलनाडु, राजस्थान और मध्यप्रदेश आदि राज्यों में मादक पदार्थ तस्करी के कई बड़े गिरोहों का का भंडाफोड़ हुआ है। यह भी उल्लेखनीय है कि जांच एजंसियों को इनकी तस्करी के रास्तों का अंदाजा है। वैसे तो सबसे ज्यादा मादक पदार्थ अफगानिस्तान से आते हैं।
इसके अलावा नेपाल, पाकिस्तान, म्यांमा और बांग्लादेश के रास्ते से भी नशीले पदार्थ भारत आ रहे हैं। इससे यह अंदाजा सहज लगाया जा सकता है कि देश में युवा बड़ी तेजी से नशे की जद में आ रहे हैं। सरकार, पुलिस प्रशासन और जांच एजंसियां अगर सख्ती करें और चुस्त निगरानी करें तो मादक पदार्थों के अवैध कारोबार को ध्वस्त करना कोई मुश्किल काम है। लेकिन इसमें तकनीकी चुनौतियां भारी पड़ रही हैं।
देखा गया है कि कोरोना काल में नशीले पदार्थों का कारोबार इंटरनेट के अवैध स्वरूप डार्कनेट और समुद्री मार्ग के जरिए बढ़ा है। दावा है कि डार्कनेट बाजार में नब्बे प्रतिशत बिक्री कथित तौर पर नशीले पदार्थों से संबंधित है। संभवत: यह एक बड़ी वजह है जिसके कारण देश में हेरोइन की बरामदगी तीन गुना से अधिक हो गई है।
तस्कर आधुनिक तकनीकों का सहारा लेकर कानून-व्यवस्था की आंख में धूल झोंकने में कामयाब हो जाते हैं। ऐसे में सरकारी एजंसियों को साइबर मोर्चे पर अंकुश लगाने के लिए उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करना होगा। हालांकि यह समस्या तब तक नहीं सुलझेगी, जब तक कि समाज इसकी रोकथाम में अपनी सक्रियता नहीं दिखाएगा। नशीले पदार्थों का सेवन असल में एक सामाजिक समस्या भी है।